UPSC परीक्षा को लेकर बवाल जारी, आखिर क्या है सीसैट?

Last Updated 25 Jul 2014 12:56:48 PM IST

संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की परीक्षा को लेकर छात्रों का बवाल जारी है. आइए जानते हैं कि आखिर बवाल की वजह सीसैट क्या है.


UPSC परीक्षा को लेकर बवाल (फाइल)

पिछले दिनों यूपीएससी परीक्षा पैटर्न में बदलाव की मांग पर केंद्र सरकार ने UPSC से प्रारंभिक परीक्षा तब तक टालने का आग्रह किया था जब तक पाठ्यक्रम और परीक्षा के प्रारूप पर स्थिति साफ नहीं हो जाती.

लेकिन UPSC ने गुरुवार से 24 अगस्त को होने वाली प्रारंभिक परीक्षा के लिए एडमिट कार्ड जारी करना शुरू कर दिया जिसके बाद छात्रों का गुस्सा फूट पड़ा.

UPSC ने 2011 में प्रारंभिक परीक्षा के पाठ्यक्रम में कॉमन सिविल सर्विसेस एप्टीट्यूड टेस्ट (सीसैट) को जोड़ा. इसमें 400 अंकों की परीक्षा में 200 अंकों का जनरल स्टडीज और 200 अंकों का सीसैट होता है.

यह एडमिनिसिट्रैटिव एप्टीट्यूड जानने के मकसद से किया गया लेकिन ग्रामीण इलाके के छात्र इसमें पिछड़ने लगे. हिंदी माध्यम के छात्र अंग्रेजी कप्रीहेंशन के सवालों मे फंस जाते हैं. इन सवालों का हिंदी ट्रांसलेशन भी काफी जटिल रहता है.

अंग्रेजी कप्रीहेंशन का हिंदी ट्रांसलेशन समझने में ही काफी समय निकल जाता है जिसके कारण छात्र पिछड़ जाते हैं.

सीसैट से पहले प्रारंभिक परीक्षा में दो पेपर होते थे. प्रथम पत्र परीक्षा ऑप्शनल होता था जिसमें छात्र खुद विषय चुनकर परीक्षा देते थे. दूसरा पेपर जनरल स्टडीज का होता था. अंक दोनों पत्र की परीक्षा के आधार पर बनता था. जिसका फायदा भारतीय भाषाओं के छात्रों को मिलता था

हालांकि सीसैट के बाद भी दो ही पत्र होते हैं- जनरल स्टडीज पार्ट वन और पार्ट टू. लेकिन पार्ट वन अब ऑप्शनल नहीं रहा. अब इसमें ताजा घटनाक्रम, इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र, विज्ञान के साथ कई विषयों को भी शामिल कर दिया गया है.

जनरल स्टडीज पार्ट टू में अंग्रेजी कप्रीहेंशन, संचार कौशल, तार्किक तर्क और विश्लेषणात्मक क्षमता, निर्णय लेने और समस्या को हल करने, सामान्य मानसिक योग्यता, अंग्रेजी भाषा समझ के कौशल और पारस्परिक कौशल सहित कई क्षमता परख विषयों को शामिल कर दिया गया है.

छात्र पार्ट टू के अंग्रेजी के प्रश्नों और एप्टीट्यूड टेस्ट के सवालों का विरोध कर रहे हैं. भारतीय भाषी छात्र पार्ट टू में फंस जाते हैं, दोनों पत्र अनिवार्य होने के कारण अंग्रेजी भाषी छात्र आगे निकल जाते हैं.

प्रारंभिक परीक्षा पासमार्क के कटऑफ को UPSC तय करता है. लेकिन यह कैसे तय किया गया जाता है UPSC इसे बताने से इनकार करता है.

सिविल सर्विसेज परीक्षा का वर्तमान पैटर्न लगभग वही है जो अंग्रेजों समय था. सिविल सर्विस में अंग्रेजी मानसिकता के वर्चस्व के कारण आम भारतीय कठिनाई महसूस करते हैं.

आजादी के बाद करीब 1989 तक UPSC की परीक्षा का माध्यम अंग्रेजी रहा. लेकिन इसके बाद आंदोलन के कारण सिविल सेवाओं की परीक्षा में अन्य भाषाओं को भी जगह मिल सकी.

परीक्षा में हिंदी और दूसरी भाषाओं को जगह मिलने के बाद भारतीय भाषाओं के छात्र बड़ी संख्या में प्रशासनिक सेवाओं में आने लगे. लेकिन अंग्रेजी मानसिकता के लोगों ने 2008 से मुख्य परीक्षा में अंग्रेजी और हिंदी दोनों के प्रश्नपत्रों को अनिवार्य कर दिया गया. इससे हिंदी भाषी छात्रों की परेशानी फिर बढ़ गई.

इतना ही नहीं 2011 में उसे सीसैट परीक्षा पैटर्न में अंग्रेजी के अंकों को मेरिट में जोड़ने की प्रक्रिया ने हिंदी माध्यम के छात्रों की कमर तोड़ दी.

UPSC मुख्य परीक्षा में अंग्रेजी के कठिन प्रश्नपत्र और सी-सैट के कारण 2014 में 1100 सफल उम्मीदवारों में से भारतीय भाषाओं में परीक्षा देने वाले सिर्फ 26 परीक्षार्थी ही पास हो सकें

अंग्रेजी माध्यम वाले एक हजार से ज्यादा छात्रों के पास होने नौकरशाही पर एक बार फिर अंग्रेजियत के हावी होने का अंदेशा है.

UPSC सिविल सेवा परीक्षा से सीसैट को खत्म करने की मांग करने वाले छात्रों का कहना है कि इस प्रारूप से हिन्दी में परीक्षा देने वाले उम्मीदवारों को नुकसान का सामना करना पड़ता है.

यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा में सीसैट के कारण हिन्दी माध्यम से सफल होने वाले छात्रों की संख्या साल 2010 के 35.6 प्रतिशत से घटकर अब 15.3 प्रतिशत रह गई है.

संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) के आंकड़ों के मुताबिक, यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा में अंग्रेजी भाषा से सफलता प्राप्त करने वालों की दर 2008 में 50.57 प्रतिशत थी जो 2009 में बढ़कर 54.50, 2010 में 62.23 और 2011 में 82.93 प्रतिशत हो गयी.

साल 2009 में कुल 11504 छात्रों ने सिविल सेवा की मुख्य परीक्षा दी थी जिसमें से 6270 छात्रों ने अंग्रेजी भाषा में परीक्षा दी थी.

वर्ष 2010 में सिविल सेवा मुख्य परीक्षा देने वाले 11859 छात्रों में 7371 छात्रों ने अंग्रेजी में परीक्षा दी.

2011 में मुख्य परीक्षा देने वाले 11230 छात्रों में से 9316 छात्रों ने अंग्रेजी भाषा में और 2012 में 12176 छात्रों में से 9961 छात्रों ने अंग्रेजी भाषा में परीक्षा दी थी.

पूर्व सांसद रघुवंश प्रसाद सिंह ने कहा कि हिन्दी भाषा से परीक्षा देने वाले छात्रों की संख्या में लगातार गिरावट आ रही है. 2008 में 5082 छात्रों ने हिन्दी भाषा में सिविल सेवा परीक्षा दी थी जो 2011 में घटकर 1682 रह गयी. 2008 में तेलगू भाषा में 117 छात्रों ने परीक्षा दी थी जो 2011 में घटकर 29 रह गयी. 2008 में तमिल भाषा में 98 छात्रों ने परीक्षा दी थी जो 2011 में घटकर 5 रह गयी.
 



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