रफ्तार धीमी फिर भी हम तेज, घरेलू अर्थव्यवस्था मजबूत पर निर्यात मोर्चे पर चुनौती
देश की आर्थिक वृद्धि दर अगले वित्त वर्ष (2023-24) में कुछ धीमी पड़कर 6 से 6.8 प्रतिशत रहने का अनुमान है।
![]() नई दिल्ली : वित्त वर्ष 2023-24 के बजट को वित्त मंत्रालय में अंतिम रूप देने के दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण। |
इसका एक बड़ा कारण वैश्विक स्तर पर विभिन्न चुनौतियों से निर्यात प्रभावित होने की आशंका है। हालांकि इसके बावजूद देश दुनिया में बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले तीव्र आर्थिक वृद्धि हासिल करने वाला बना रहेगा।
समीक्षा तैयार करने वाले मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) वी अनंत नागेरन ने कहा, ‘वर्ष 2020 से कम-से-कम तीन झटकों ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को झकझोरा है।’ उन्होंने कहा कि इसकी शुरुआती महामारी और उसकी रोकथाम के लिये लगाये गये ‘लॉकडाउन’ के कारण वैश्विक उत्पादन में गिरावट से हुई।
उसके बाद पिछले साल से रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण दुनिया के विभिन्न देशों में महंगाई बढ़ी। उसके बाद अमेरिकी फेडरल रिजर्व समेत विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंकों ने मुद्रास्फीति को काबू में लाने के लिये नीतिगत दरें बढायी।
अमेरिकी केंद्रीय बैंक के नीतिगत दर बढ़ाने से दूसरे देशों से पूंजी अमेरिकी बाजार में गयी और इससे दुनिया की अन्य प्रमुख मुद्राओं की तुलना में डॉलर में मजबूती आई। इससे भारत जैसे शुद्ध आयातक देशें में चालू खाते का घाटा और मुद्रास्फीति दबाव बढ़ा।
समीक्षा में कहा गया है, ‘हालांकि महामारी से प्रभावित होने के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था आगे बढ़ी और 2021-22 में यह पूरी तरह से पटरी पर आ गयी तथा इस मामले में कई देशों से आगे रही। देश की अर्थव्यवस्था ने 2022-23 में महामारी पूर्व स्तर पर आगे बढ़ती दिखी।’
इसके बावजूद चालू वर्ष में भारत को मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखने के लिये चुनौती का भी सामना करना पड़ा। हालांकि अमेरिकी फेडरल रिजर्व के नीतिगत दर में वृद्धि की संभावना को देखते हुए रुपये की विनिमय दर में गिरावट को लेकर चुनौती बनी हुई है।
मुख्य बातें
- देश की आर्थिक वृद्धि दर 2023-24 में 6.5 प्रतिशत रहेगी
- जीडीपी अगले वित्त वर्ष में छह प्रतिशत से 6.8 प्रतिशत रहने का अनुमान
- आरबीआई का चालू वित्त वर्ष में मुद्रास्फीति 6.8 प्रतिशत रहने का अनुमान संतोषजनक सीमा से ऊपर है
- कर्ज की लागत लंबे समय तक ऊंची बनी रह सकती है
- रुपए की विनिमय दर में गिरावट को लेकर चुनौती बरकरार
- देश के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार। रुपए में उतार-चढ़ाव को रोकने के लिए बाजार में हस्तक्षेप किया जा सकता है
- केंद्र सरकार का पूंजीगत व्यय चालू वित्त वर्ष में अप्रैल-नवम्बर के दौरान 63.4 प्रतिशत बढ़ा
- विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के बाजार से लगातार पैसा निकालने के बावजूद शेयर बाजार ने 2022 में सकारात्मक रिटर्न दिया
- चालू वित्त वर्ष में आर्थिक वृद्धि की अगुवाई में निजी खपत और पूंजी निर्माण से रोजगार सृजन में मदद मिली है
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