रूसी तेल आयात पर भारत के प्रति पश्चिमी देशों का दोहरा मापदंड : रूसी राजदूत

Last Updated 29 Aug 2022 08:57:17 AM IST

रूस के राजदूत डेनिस अलीपोव ने रविवार को कहा कि उनके देश से कच्चा तेल आयात करने पर भारत की आलोचना करना, लेकिन ‘अपने अवैध प्रतिबंधों’ से खुद को छूट देना पश्चिमी देशों के सिद्धांतहीन रुख और दोहरे मापदंड को प्रदर्शित करता है।


रूस के राजदूत डेनिस अलीपोव

ऐतिहासिक रूप से भारत के लिए जीवाश्म ईधन का प्रमुख स्रोत रूस नहीं रहा है, लेकिन पिछले कुछ महीनों में भारत में रियायती दर पर रूसी कच्चे तेल के आयात में भारी वृद्धि देखी गई है, जबकि पश्चिमी देश इस पर आपत्ति जता चुके हैं।

अलीपोव ने कहा, ‘‘भारत की आलोचना करने वाले पश्चिमी देश स्वयं को अपने अवैध प्रतिबंधों से छूट देकर रूसी ऊर्जा संसाधन खुद सक्रियता से खरीदने के तथ्य के प्रति ना केवल चुप्पी साधे रहते हैं, बल्कि ऐसा करके वे अपने सिद्धांतहीन रुख और दोहरे मापदंडों को भी स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करते हैं।’’ उन्होंने कहा कि यूरोप ने शक्ति की अमेरिका की महत्वाकांक्षा का ‘तुष्टीकरण’ करने की प्रक्रिया में अपनी स्वतंत्र आवाज ‘पूरी तरह खो’ दी है और अब वह शेष विश्व के लिए ऊर्जा (तेल और गैस) की कीमतों में वृद्धि करके अपने आर्थिक कल्याण को जारी रखने की कोशिश कर रहा है। अलीपोव ने कहा, ‘इसकी कीमत भारत को क्यों चुकानी चाहिए?’ अलीपोव ने रूस से भारत के तेल खरीदने पर कहा कि नई दिल्ली ने लगातार कहा है कि उसका दृष्टिकोण अपने राष्ट्रीय हितों पर आधारित हैं और यह बढ़ती भारतीय अर्थव्यवस्था की जरूरत एवं इसके लोगों के कल्याण को दर्शाता है।

पश्चिमी प्रतिबंधों का भारत-रूस व्यापार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा : रूसी राजदूत ने कहा कि रूस के खिलाफ पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों का भारत-रूस व्यापार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है और केवल इस वर्ष के पहले छह महीनों में 11.1 अरब डॉलर का व्यापार हुआ है, जो 2021 में लगभग 13 अरब डालर था। उन्होंने कहा, ‘हमारे पास यह यकीन करने का उचित कारण है कि इस साल के अंत तक हम ऐतिहासिक रिकॉर्ड बना लेंगे और यह केवल हाइड्रोकार्बन की बड़े पैमाने पर आपूर्ति के कारण नहीं है, जो 10 गुना से अधिक बढ़ गया है।’

अलीपोव ने कहा कि ‘उभरते अवसरों’ का लाभ उठाकर व्यापार सहयोग में और विविधता लाने में रूस और भारत की दिलचस्पी बढ़ रही है। उन्होंने कहा, ‘‘समग्र उद्देश्य एक दूसरे की आर्थिक रणनीतियों का पूरक बनना है, क्योंकि दोनों देशों का लक्ष्य आत्मनिर्भरता के स्तर को बढ़ाना है और दोनों वित्तीय लेनदेन और साजो-सामान के स्थायी तंत्रों की मदद से नए बाजार की तलाश करने के इच्छुक हैं।’’

दोनों देशों के बीच भुगतान की कई प्रणालियां मौजूद : द्विपक्षीय व्यापार की कई भुगतान प्रणालियों का जिक्र करते हुए अलीपोव ने कहा कि उनमें से एक प्रणाली राष्ट्रीय मुद्रा का इस्तेमाल है। उन्होंने कहा कि हालिया वर्षो में राष्ट्रीय मुद्राओं में व्यापार की मात्रा 40 प्रतिशत से अधिक रही है। उन्होंने कहा, ‘‘इसके अलावा एशिया एवं पश्चिम एशिया में व्यवहार्य विकल्पों की पेशकश करने वाले कुछ साझेदारों के साथ तीसरे देशों की मुद्राओं का उपयोग करने का भी एक अन्य विकल्प है। हम ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका का समूह) अंतरराष्ट्रीय आरक्षित निधि की स्थापना में भी अपार संभावनाएं देखते हैं।’’ अलीपोव ने कहा कि जिन रूसी कंपनियों एवं बैंक पर प्रतिबंध नहीं लगाए गए हैं, वे अब भी डॉलर और यूरो का उपयोग करके आर्थिक गतिविधियां कर सकते हैं।

यूक्रेन संकट पर भारत के रुख को सराहा

यूक्रेन संकट पर भारत के रुख के बारे में पूछे जाने पर अलीपोव ने कहा कि नई दिल्ली का रुख निरंतर एक जैसा रहने का रूस सम्मान करता है और उसकी सराहना करता है, क्योंकि यह अंतरराष्ट्रीय कानून की ठोस नींव और राष्ट्रीय हितों की रणनीतिक सोच पर आधारित है। उन्होंने कहा कि भारत के साथ रूस की रणनीतिक साझेदारी की सबसे अच्छी विशेषता यह है कि यह किसी के खिलाफ नहीं है। उन्होंने कहा, ‘हम यह भी महसूस करते हैं कि भारतीय समाज में इस बात की गहरी समझ है कि फरवरी 2022 से बहुत पहले शुरू हो चुके यूक्रेनी संकट का मूल क्या है।’ भारत ने यूक्रेन पर रूस के हमले की अभी तक आलोचना नहीं की है और वह यह कहता रहा है कि संकट का समाधान बातचीत के जरिए किया जाना चाहिए।

भाषा
नई दिल्ली


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