किसानों की MSP कानून की मांग अव्यावहारिक क्यों? ये हैं 5 कारण

Last Updated 03 Dec 2020 01:04:33 PM IST

कृषि और संबद्ध क्षेत्र में सुधार के कार्यक्रमों को लागू करने के मकसद से केंद्र सरकार द्वारा कोरोना काल में लागू तीन कृषि कानूनों के विरोध में सड़कों पर उतरे किसान फसलों की एमएसपी की गारंटी चाहते हैं। इसलिए, वे एमएसपी कानून की मांग कर रहे हैं। सरकार का कहना है कि इस तरह की मांग अव्यावहारिक है।


केंद्र सरकार हर साल 22 फसलों के लिए एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा करती है, जिसका मकसद किसानों को उनकी फसलों का वाजिब व लाभकारी मूल्य दिलाना है। ऐसे में सवाल पैदा होता है कि कानून बनाकर किसानों को फसलों की गारंटी देना क्यों अव्यावहारिक है। इस सवाल पर आर्थिक विषयों के जानकार बताते हैं कि इससे सरकार के बजट पर भारी बोझ बढ़ेगा।

विशेषज्ञों के राय में किसानों द्वारा एमएसपी की गारंटी की इन पांच कारणों से अव्यावहारिक है:

1. सरकार द्वारा घोषित 22 फसलों के मौजूदा एमएसपी पर सभी फसलों की खरीद अगर सरकार को करनी होगी तो इस पर 17 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च होगा जबकि केंद्र सरकार की राजस्व प्राप्तियां सिर्फ 16.5 लाख करोड़ रुपये है। कृषि अर्थशास्त्र के जानकार विजय सरदाना द्वारा किए गए इस आकलन के अनुसार, देश के कुल बजट का करीब 85 फीसदी किसानों से एमएसपी पर फसलों की खरीद पर ही खर्च हो जाएगा। वह कहते हैं कि इसके अलावा केंद्र सरकार उर्वरक पर जो अनुदान देती है वह एक लाख करोड़ रुपये के करीब है जबकि फूड सब्सिडी भी करीब एक लाख करोड़ रुपये है। केंद्र सरकार की आमदनी 16.5 लाख करोड़ रुपये है जबकि किसानों की यह मांग मान ली जाए तो कुल केंद्र सरकार पर 17 से 19 लाख करोड़ रुपये का बोझ बढ़ेगा। ऐसे में देश की सुरक्षा के साथ-साथ शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी समेत तमाम खर्च के लिए पैसा नहीं बचेगा।

2. एमएसपी अनिवार्य करने की सूरत में हमेशा सस्ता आयात बढ़ने की आशंका बनी रहेगी क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अगर कृषि उत्पादों के दाम भारत के मुकाबले कम होंगे तो देश के निजी कारोबारी किसानों से फसल खरीदने के बजाय विदेशों से आयात करेंगे। ऐसे में सरकार को किसानों से सारी फसलें खरीदनी होगी।

3. अगर सरकार किसानों से सारी फसलें एमएसपी पर खरीदेगी तो इसके बजट के लिए करों में करीब तीन गुना वृद्धि करनी होगी। जिससे देश के करदाताओं पर कर का बोझ बढ़ेगा।

4. करों में ज्यादा वृद्धि होने से देश में निवेश नहीं आ पाएगा और रोजगार के नए अवसर पैदा नहीं हो पाएंगे जिससे अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ेगा।

5. एमएसपी में वृद्धि होने और वस्तुओं पर करों व शुल्कों की दरें बढ़ाने पर देश का निर्यात प्रभावित होगा। विशेषज्ञ बताते हैं कि एमएसपी पर फसलों की खरीद की गारंटी देने के लिए कानून बनाने से देश की अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी।

कृषि अर्थशास्त्री विजय सरदाना कहते हैं कि अगर एमएसपी को अनिवार्य कर दिया गया तो कर का बोझ बढ़ने के कारण देश के उद्योग-धंधे बंद हो जाएंगे और भारत अपनी जरूरतों के लिए चीन से सस्ते माल के आयात पर निर्भर हो जाएगा और देश की स्थिति पाकिस्तान से भी ज्यादा खराब हो जाएगी।

आईएएनएस
नयी दिल्ली


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