बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ चंदा कोचर की दायर याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज

Last Updated 01 Dec 2020 01:45:04 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को आईसीआईसीआई की पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) चंदा कोचर की बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया है।


चंदा कोचर की याचिका सुप्रीम कोर्ट से खारिज (फाइल फोटो)

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को आईसीआईसीआई की पूर्व प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) चंदा कोचर की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने बैंक द्वारा उन्हें बर्खास्त करने के खिलाफ दायर अर्जी को बंबई उच्च न्यायालय द्वारा अस्वीकार किए जाने के फैसले को चुनौती दी थी। न्यायालय ने कहा कि यह निजी बैंक और कर्मचारी के बीच का मामला है।      

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, ‘‘ माफ कीजिए, हम उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करने के इच्छुक नहीं हैं।’’ शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘यह मामला निजी बैंक और कर्मचारी के बीच का है।’’      

पीठ चंदा कोचर की अपील पर सुनवाई कर रही थी जिसमें उन्होंने उच्च न्यायालय द्वारा पांच मार्च को दिए गए आदेश को चुनौती दी थी। उच्च न्यायालय ने आईसीआईसीआई बैंक के प्रबंधक निदेशक और सीईओ पद से बर्खास्त करने के खिलाफ कोचर की अर्जी खारिज कर दी थी और साथ ही रेखांकित किया था कि विवाद कार्मिक सेवा की संविदा से उत्पन्न हुआ है।

उच्च न्यायालय ने बैंक के इस तर्क को स्वीकार किया था कि कोचर की अर्जी सुनवाई के लायक नहीं है क्योंकि यह विवाद संविदा से उत्पन्न हुआ है और निजी निकाय का मामला है।       उच्चतम न्यायालय में चंदा कोचर का पक्ष रखते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा, ‘‘उच्च न्यायलय ने उनके मुवक्किल की अर्जी विचार करने हेतु गुणवत्ता के आधार पर खारिज की।’’      

रोहतगी ने अपने मुवक्किल की ओर से कहा, ‘‘ मैं (कोचर) आईसीआईसीआई बैंक की प्रबंध निदेशक थी लेकिन बैंक ने पूर्व में दिए इस्तीफे को वापस कर उसे बर्खास्तगी में तब्दील कर दिया। यह गलत और नियमों के खिलाफ है।’’      

रोहतगी ने कहा कि कोचर के इस्तीफे को बर्खास्तगी में तब्दील कर दिया गया और इसके लिए पूर्व में मंजूरी नहीं ली गई।  उन्होंने कहा, ‘‘आरबीआई (भारतीय रिजर्व बैंक) के नियमों के तहत आप इस्तीफे को बर्खास्तगी में तब्दील नहीं कर सकते हैं। बर्खास्तगी का सवाल ही नहीं उठता क्योंकि नियमों के तहत पूर्व में इसकी मंजूरी नहीं ली गई।’’   इस पर पीठ ने टिप्पणी की,‘‘ जहां तक हम समझते हैं, वह आरबीआई है जो बैंक के समक्ष मुद्दा उठा सकता है। आप निजी बैंक की सेवा में है।’’     

रोहतगी ने कहा कि कर्मचरियों की कुछ श्रेणी है जिनके लिए पूर्व में मंजूरी की जरूरत होती है। इस पर पीठ ने रोहतगी से कहा, ‘‘आप हमे फैसला दिखाइए जिसमें कहा गया है कि आपकी भूमिका है, तब रिट याचिका सुनने योग्य होगी।’’      

रोहतगी ने जब कुछ फैसलों को उद्धृत किया तो पीठ ने कहा, ‘‘आरबीआई ने बाद में इसकी मंजूरी दी। आप कह रहे हैं कि पूर्व में इसकी मंजूरी नहीं दी गई। आप कह रहे हैं कि उचित प्रक्रिया के तहत यह नहीं किया गया। आपकी पूरी शिकायत निजी बैंक के खिलाफ है। आरबीआई के साथ कोई शिकायत नहीं हो सकती।’’  इस पर रोहतगी ने कहा, ‘‘ नहीं, मेरी पूरी शिकायत आरबीआई के खिलाफ है।’’  उन्होंने कहा कि आरबीआई ने अगर अनुमति नहीं दी होती तो कोचर की बर्खास्तगी रद्द हो चुकी होती।      

रोहतगी ने तर्क किया, ‘‘ मेरी (कोचर की) प्रतिष्ठा का क्या?’’ इस पर अदालत ने टिप्पणी की, ‘‘अगर आपकी प्रतिष्ठा को धक्का लगा या नुकसान हुआ है तो आप क्षतिपूर्ति का दावा कर सकती हैं।’’      

रोहतगी ने कहा की आरबीआई से मंजूरी के बारे में पूछा जाना चाहिए क्योंकि बाद में मंजूरी देना आरबीआई के न्यायाधिकारक्षेत्र में नहीं है।’’     

उल्लेखनीय है कि देश के दूसरे बसे बड़े निजी क्षेत्र के बैंक से कोचर द्वारा इस्तीफा दिए जाने के महीनों बाद उन्हें बैंक ने बर्खास्त कर दिया था। इसके खिलाफ कोचर ने 30 नवंबर 2019 को बंबई उच्च न्यायालय का रुख किया लेकिन पांच मार्च को फैसला उनके खिलाफ आया।      

उल्लेखनीय है कि प्र्वतन निदेशालय ने हाल में धन शोधन के मामले में चंदा कोचर, उनके पति दीपक कोचर, वीडियोकॉन के प्र्वतक वेणुगोपाल धूत के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया है। हालांकि, कोचर और धूत ने आरोपों का खंडन किया है।     

कोचर पर आरोप है कि उन्होंने वीडियोकॉन समूह को गैर कानूनी तरीके से 1,875 करोड़ रुपये का ऋण मंजूर किया। 

भाषा
नई दिल्ली


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