केंद्र भी खत्म करेगा श्रम कानून

Last Updated 15 May 2020 01:12:38 AM IST

सरकार इधर 44 श्रम कानूनों को समाप्त करने की तरफ बढ़ रही है, उधर श्रमिक संगठनों ने 22 मई को महात्मा गांधी की समाधि पर भूख हड़ताल रखी है।


केंद्र भी खत्म करेगा श्रम कानून

दस प्रमुख श्रमिक संगठन श्रमिकों की बदहाली पर शुक्रवार को प्रधानमंत्री को एक विरोध पत्र भी लिख रहे हैं। श्रमिक संगठन राज्यों में श्रम कानून को समाप्त किए जाने या ठंडे बस्ते में डाले जाने से पहले ही नाराज थे, केंद्र सरकार के भी इस दिशा में बढ़ने से उनका गुस्सा और बढ़ गया है।
 आरएसएस के श्रमिक संगठन भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) ने भी राज्यों में श्रम कानूनों से छेड़छाड पर नाखुशी जताते हुए 20 मई को पूरे देश में विरोध प्रदर्शन रखा है। बीएमएस के महासचिव विरजेश उपाध्याय का कहना है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि यूपी, गोवा, गुजरात, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान में से सिर्फ मध्य प्रदेश के सीएम ने ही सिर्फ काम के घंटे आठ से बढ़ाकर बारह किए जाने के मुद्दे पर बीएमएस का पक्ष सुनने के लिए समय दिया। वित्त मंत्री ने 44 श्रम कानूनों को चार श्रम संहिता में बदले जाने का लुभावना पक्ष पेश किया। उन्होंने बताया कि इससे पूरे देश में एक समान न्यूनतम मजदूरी हो (अभी 30% को ही मिल रही है) जाएगी और सबको नियुक्ति पत्र मिला करेगा।

वित्त मंत्री ने जोर देकर यह भी कहा कि इससे सबका हेल्थ चेकअप हुआ करेगा और जोखिम वाले उद्योगों में ईएसआई अनिवार्य हो जाएगा। उन्होंने फिक्स टर्म रोजगार में ग्रेच्युटी के पक्ष को भी बताया। हालांकि श्रम और रोजगार से संबंधित संसद की स्थाई समिति की हाल में जो रिपोर्ट आई है उसमें सरकार ने फिक्स टर्म रोजगार कितनी अवधि का होगा और क्या इससे स्थाई रोजगार पर असर नहीं पड़ेगा जैसे सवालों के जवाब नहीं दिए थे। वहीं श्रमिक संगठन भी कहते हैं कि यह ठेका रोजगार से भी बदतर होगा क्योंकि नियोक्ता श्रमिक से कितने भी घंटे काम ले सकता है।

केंद्र सरकार श्रम कानून बदलकर क्या करेगी
1. फिक्स टर्म रोजगार के नाम पर घंटे के रोजगार को प्रोत्साहन
2. ज्यादातर श्रम सुधार श्रमिकों की बजाय कारोबारियों के हित में
3. श्रमिकों को नौकरी से निकालना कारोबारियों के लिए आसान
4. सुरक्षा देकर महिलाओं से रात की पाली में काम लिया जा सकेगा
5. श्रमिक संगठनों की भूमिका सीमित हो जाएगी
6. श्रमिक संगठनों में सरकार का दखल बढ़ जाएगा, सरकार श्रमिक संगठनों के चंदे पर भी हाथ डालेगी और रिटायर कर्मियों को दूर भी रखेगी
7. कैंटीन, क्रेच जैसी सुविधाओं में भी कटौती होगी
8. एक समान न्यूनतम वेतन और नियुक्ति पत्र की अनिवार्यता को व्यवहारिक बनाने का तंत्र अस्पष्ट
9. सामाजिक सुरक्षा अभी तक ठीक से परिभाषित नहीं की गई है, जिसके नाम पर अधिकांश श्रम कानूनों को खत्म किया जा रहा है

अजय तिवारी/सहारा न्यूज ब्यूरो
नई दिल्ली


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