कैंसर-दिल की दवा हुई सस्ती, 51 आवश्यक दवाओं के दामों में 53 फीसद तक की कटौती

Last Updated 25 Nov 2017 05:02:10 AM IST

राष्ट्रीय दवा मूल्य नियामक (एनपीपीए) ने मरीजों को राहत देते हुए 51 आवश्यक दवाओं के दाम 53 फीसद तक की कटौती की है.




51 आवश्यक दवाओं के दामों में 53 फीसद तक की कटौती

इनमें  कैंसर, दिल, दर्द और त्वचा संबंधी समस्याओं के इलाज में काम आने वाली दवाएं शामिल हैं. नियामक ने स्पष्ट किया है कि कोई भी दवा कंपनी निर्धारित कीमत से ज्यादा दाम नहीं वसूल सकती.

एनपीपीए समय-समय पर दवाओं का अधिकतम मूल्य निर्धारित करता है ताकि मरीजों को महंगी दवाइयां खरीदने से छुटकारा मिल सके. इस बारे में शुक्रवार को जारी अधिसूचना में नियामक ने कहा है कि उसने 13 फार्मूलेशन के अधिकतम दाम अधिसूचित कर दिए हैं जबकि 15 अन्य दवाओं के दाम में यह संशोधन किया जा रहा है. एनपीपीए ने कहा कि कहा कि 23 आवश्यक दवाओं की खुदरा कीमतों को भी अधिसूचित किया गया है.

बयान में कहा गया है कि जिन दवाओं के दामों का अधिकतम मूल्य तय किया गया है उनमें कोलोन या रेक्टल कैंसर के इलाज में काम आने वाली दवा ओक्सालिप्लेटिन (इंजेक्शन 100 एमजी), जापानी बुखार के इलाज में काम आने वाली दवा और मीजल्स रूबेला वैक्सीन शामिल हैं. जानकारों का मानना है कि नियामक के इस फैसले से मरीजों को काफी हद तक राहत मिलेगी.

अब तक घटे 874 दवाओं के दाम : एनपीपीए ने अधिसूचना में कहा कि ड्रग्स (मूल्य नियंत्रण) संशोधित आदेश-2013 के तहत 53 दवाओं की कीमतें छह से 53 फीसद तक घटाई गई हैं. नियामक ने राष्ट्रीय आवश्यक दवा सूची 2015 के तहत अब तक 874 दवाओं केदाम घटाए हैं. सितम्बर, 2017 तक नियामक 821 दवाओं के दाम निर्धारित कर चुका है.

क्या है व्यवस्था
एनपीपीए दवा (मूल्य नियंत्रण) आदेश-2013 के तहत शेड्यूल-1 में आने वाली जरूरी दवाओं की कीमत तय करता है. सरकार जरूरत के हिसाब से जरूरी दवाओं की सूची तैयार करती है. इस सूची में समय-समय पर नई दवाओं को शामिल किया जाता है. इसे राष्ट्रीय आवश्यक दवा सूची कहा जाता है. इस सूची में शामिल दवाइयों को काफी किफायती दाम पर दिलाने जरूरत होती है  इसलिए समय-समय पर कीमतें घटाई जाती हैं. इसका मकसद सभी ब्रांड की एक ही दवा की कीमत बराबर रखना है जिससे मरीजों को राहत मिल सके.

ज्यादा दाम नहीं वसूल सकते
नियामक ने आदेश में कहा कि कोई फार्मा कंपनी तय कीमत से ज्यादा दाम नहीं वसूल सकती. अगर कंपनियां निर्धारित मूल्य के नियमों का पालन नहीं करती हैं तो उन्हें ज्यादा वसूली गई कीमत ब्याज सहित जमा करानी होगी. इसके अलावा और भी दंड का प्रावधान है. हालांकि नियामक ने फार्मा कंपनियों को इन दवाओं की कीमतों में साल में 10 फीसद तक की ही बढ़ोतरी करने की इजाजत दी है.

सहारा न्यूज ब्यूरो


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