सहारा-सेबी विवाद : सेबी ने दस्तावेज जांचने का काम नहीं किया : जेठमलानी

Last Updated 17 Apr 2014 03:32:27 AM IST

वरिष्ठ अधिवक्ता राम जेठमलानी ने कहा है कि 31 अगस्त, 2012 के फैसले के बाद सहारा द्वारा पेश किए गए दस्तावेज की जांच का काम सेबी ने नहीं किया.


वरिष्ठ अधिवक्ता राम जेठमलानी (फाइल फोटो)

सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में सेबी को दस्तावेज की जांच पड़ताल का निर्देश दिया था, लेकिन निर्धारित समय पर समस्त दस्तावेज सौंपने के बावजूद सेबी ने अपना दायित्व नहीं निभाया.

सहाराश्री की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई के दौरान राम जेठमलानी ने 4 मार्च के सुप्रीम कोर्ट के हिरासत आदेश को गैरकानूनी बताया. वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि सभी कानूनों को ताक पर रखकर हिरासत का आदेश दिया गया. उस समय अदालत तीन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. जिन प्रावधानों का आदेश में जिक्र किया गया, उन पर अदालत में सुनवाई नहीं हुई.

अदालत की अवमानना अधिनियम के तहत निर्धारित नियमों का पालन नहीं किया गया. आदेश में हिरासत की अवधि भी तय नहीं की गई. हिरासत में चल रहे लोगों को यह नहीं पता कि उन्हें आखिर क्यों डिटेंशन में रखा गया है. यह व्यक्ति के मौलिक अधिकार का हनन है.

वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के 31 अगस्त, 2012 के निर्णय का पालन करते हुए सहारा ने समस्त दस्तावेज सेबी को सौंप दिए थे. सेबी ने दस्तावेज रिसीव करने में आनाकानी की. सुप्रीम कोर्ट ने सेबी को सभी दस्तावेज की जांच पड़ताल का निर्देश दिया था, लेकिन सेबी ने ऐसा नहीं किया. सेबी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की खुली अवहेलना की. जेठमलानी ने कई फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि अदालत से भी कई बार गलती हो जाती है. गलती स्वीकार करने से अदालत का मान बढ़ता है.

जेठमलानी ने उम्मीद जाहिर की कि अदालत अपनी गलती स्वीकार करके 4 मार्च का आदेश वापस लेगी. जेठमलानी द्वारा पेश दलीलों की अदालत ने भी सराहना की. जस्टिस केएस राधाकृष्णन ने कहा कि राम जेठमलानी जैसे  सीनियर वकील से उच्चस्तर के कानूनी बिंदुओं को रेखांकित करने की अपेक्षा की जाती है. उन्होंने अपनी ख्याति के अनुरूप अदालत को संबोधित किया.

जस्टिस केएस राधाकृष्णन और जस्टिस जगदीश सिंह केहर की बेंच के समक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ राजीव धवन ने कहा कि 4 मार्च का आदेश पहले से लिखा हुआ था. अदालत ने इस लिखित आदेश की सिर्फ घोषणा की. डॉ धवन ने अदालत की अवमानना मामलों के लिए सुप्रीम कोर्ट की नियमावली का हवाला दिया.

वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि इस नियमावली के एक प्रावधान का भी पालन नहीं किया गया. वकील ने सेबी पर आरोप लगाया कि बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई के दौरान उसने समूची प्रक्रिया को बदलने का प्रयास किया. 28 अक्टूबर, 2013 से लेकर 4 मार्च, 2014 तक समस्त कार्यवाही सौंपी गई. हालांकि अदालत ने यह मांगी थी. इस दौरान अवमानना पर सुनवाई स्थगित कर दी गई थी. अदालत सुलह का रास्ता देख रही थी. इस दौरान की सुनवाई को इसी दृष्टि से देखने की जरूरत है.

4 मार्च के आदेश को जायज ठहराने के लिए सेबी उन फैसलों का हवाला दे रही है जो पहले नहीं दिए गए. यह अजीब स्थिति है. पहले फैसला सुनाया गया और बाद में उसे जायज ठहराने के लिए दलीलें पेश की जा रही हैं. सेबी जो दलीलें अब पेश कर रहा है वह उसने 4 मार्च से पहले नहीं दी. सेबी द्वारा उद्धृत किए विभिन्न अदालतों के फैसले कोर्ट के संज्ञान में नहीं थे. इस पर जस्टिस केहर ने कहा कि यह आपका अनुमान है. हो सकता है कि अदालत को इसका संज्ञान हो.

डॉ. धवन ने अंतरिम राहत के लिए दस हजार करोड़ की शर्त को बेहद सख्त कहा. बैंक खातों के सील करने के कारण इस तरह की शर्त का अनुपालन असंभव है. सहारा द्वारा पेश किए सभी प्रस्ताव ठुकरा दिए गए. अदालत का अड़ियल रवैया समझ से परे है. सेबी जो कुछ कह रही है वह सही है और सहारा की हर दलील और तर्क को गलत माना जा रहा है.

सेबी का यह कहना कि 131 ट्रक भरकर दस्तावेज भेजने की वजह उसे भ्रम में डालना है, लेकिन अदालत के आदेश के तहत ही सहारा ने यह दस्तावेज सेबी को सौंपे. ऐसे में सेबी की दलील को जायज कैसे ठहराया जा सकता है. सेबी का यह कहना कि बैंक का विवरण देने के बाद ही दस्तावेज का परीक्षण किया जाएगा और निवेशकों का पैसा लैटाया जाएगा, ठीक नहीं है. सेबी द्वारा अदालत के निर्देशों की अवेहलना की गई. अदालत ने उनसे एक भी सवाल पूछना उचित नहीं समझा.

बेंच ने बुधवार को कहा कि वह सहारा समूह के प्रमुख सहाराश्री सुब्रत राय की जमानत देने के लिए दस हजार करोड़ रुपए के बंदोबस्त के लिए समूह के बैंक खातों पर लगी रोक समाप्त करने और संपत्ति बेचने की अनुमति दे सकता है. अदालत ने सहारा से इस बारे में विवरण मांगा है. सुनवाई बृहस्पतिवार को भी जारी रहेगी.



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