भारत की बुनियादी चिंताओं पर मुहर
रियो प्लस 20 की शिखरवार्ता में भारत ने मूल विषयों पर आधारित अपनी बातों को सफलतापूर्वक रखा और उसके रुख को व्यापक समर्थन भी हासिल हुआ.
|
विश्व में हर किसी के लिए सतत विकास के समान और सुलभ संसाधन मुहैया कराने के मूल विषय पर आधारित रियो प्लस 20 की शिखरवार्ता में भारत ने अपनी बात को सफलतापूर्वक रखा और उसके रुख को व्यापक समर्थन भी हासिल हुआ. शिखरवार्ता की समाप्ति पर जारी घोषणापत्र में भारत की चिंताएं साफ झलकती हैं. घोषणापत्र के मुताबिक विकासशील देशों को सतत विकास के लिए और संसाधनों की जरूरत है तथा आधिकारिक विकास सहायता (ओडीए) एवं वित्त व्यवस्था पर अवांछित शर्तों से बचा जाना चाहिए.
विकासशील देशों को सतत विकास के लिए अतिरिक्त संसाधनों की जरूरत
‘सतत विकास पर संयुक्त राष्ट्र के अधिवेशन’ नाम से आयोजित रियो प्लस 20 शिखरवार्ता के समापन पर जारी 55 पन्नों के इस घोषणापत्र में कहा गया है, ‘हम इस बात को दोहराते हैं कि विकासशील देशों को सतत विकास के लिए अतिरिक्त संसाधनों की जरूरत है.’ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने शिखरवार्ता में अपने संबोधन में कहा, ‘अगर अतिरिक्त धन और तकनीक उपलब्ध हुई तो कई देश और अधिक काम कर सकते हैं. दुर्भाग्य से इन क्षेत्रों (उत्सर्जन की तीव्रता कम करने वाले क्षेत्रों) में औद्योगिक देशों से समर्थन बहुत कम दिखाई देता है. आर्थिक संकट ने मामलों को बदतर कर दिया है.’ आर्थिक विकास, सामाजिक समावेश और पर्यावरण स्थिरता को सतत विकास के लिहाज से समान रूप से महत्वपूर्ण घटक बताते हुए श्री सिंह ने कहा कि वैश्विक समुदाय के सामने इस संरचना को ऐसा व्यावहारिक स्वरूप देने की जिम्मेदारी है ताकि प्रत्येक देश अपनी राष्ट्रीय प्राथमिकताओं और परिस्थितियों के अनुरूप विकास करे.
राष्ट्रीय प्राथमिकताओं और जरूरतों के अनुरूप संसाधनों के आवंटन में सतत विकास को तरजीह
विश्व के सौ से भी अधिक नेताओं ने शिखरवार्ता में भाग लिया जिन्होंने अपनी घोषणा में कहा कि वे सभी देशों के लिए, खासकर विकासशील देशों के लिए सतत विकास के लिहाज से सभी संसाधनों से बढ़ते वित्तीय सहयोग के महत्व को रेखांकित करते हैं. शिखरवार्ता में सभी देशों से यह आह्वान भी किया गया कि राष्ट्रीय प्राथमिकताओं और जरूरतों के अनुरूप संसाधनों के आवंटन में सतत विकास को तरजीह दें.
विकासशील देशों को समन्वित नीतियों के माध्यम से दीर्घकालिक ऋण में सहायता दी जानी चाहिए
शिखरवार्ता में वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रहे मुद्दों पर भी चर्चा हुई. घोषणापत्र में कहा गया है कि विश्वव्यापी वित्तीय तथा आर्थिक चुनौतियों से निपटने में पिछले कुछ वर्षो के भीतर कड़ी मेहनत के बावजूद हमें अपेक्षित कामयाबी इसलिए नहीं मिल पाई क्योंकि मेहनत के मुकाबले चुनौतियां ज्यादा बड़ी थीं. विकासशील देशों को समन्वित नीतियों के माध्यम से दीर्घकालिक ऋण में सहायता दी जानी चाहिए और इसका मकसद कर्ज देना, कर्ज में राहत देना और कर्ज के ढांचे में सुधार होना चाहिए. इसमें यह भी कहा गया है कि अभिनव वित्तीय प्रणालियों से विकासशील देशों को स्वैच्छिक आधार पर विकास के लिए धन जुटाने के अतिरिक्त संसाधनों के संबंध में सकारात्मक सहयोग मिल सकता है.
ऐसे एकपक्षीय आर्थिक कदम उठाने से बचना चाहिए जो संयुक्त राष्ट्र चार्टर के मुताबिक न हों
शिखरवार्ता में कहा गया कि सभी राष्ट्रों को ऐसे एकपक्षीय आर्थिक कदम उठाने से बचना चाहिए जो अंतरराष्ट्रीय कानून या संयुक्त राष्ट्र चार्टर के मुताबिक नहीं हों. दस्तावेज में विकासशील देशों को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के महत्व को भी रेखांकित किया गया. घोषणापत्र के मुताबिक, ‘हम प्रौद्योगिकी में नई सोच, अनुसंधान और विकास पर सहयोगात्मक कार्रवाई को अहमियत देते हैं. हम विकासशील देशों द्वारा पर्यावरण के लिहाज से बेहतर तकनीकों तक सुगम पहुंच के लिए संबंधित मंचों पर विकल्प तलाशने की सहमति जताते हैं. ग्रीन इकोनोमी (पर्यावरण आधारित अर्थव्यवस्था) में विकसित तथा विकासशील देशों के बीच प्रौद्योगिकी के अंतर को पाटा जाना चाहिए और इसमें धनी देशों को तीसरी दुनिया के देशों की मदद करनी चाहिए.’ सतत विकास और गरीबी उन्मूलन के संदर्भ में पर्यावरण आधारित अर्थव्यवस्था पर घोषणापत्र कहता है कि यह अंतरराष्ट्रीय कानून के संगत होना चाहिए. प्रत्येक देश के राष्ट्रीय संसाधनों को लेकर उसकी राष्ट्रीय संप्रभुता का भी सम्मान किया जाना चाहिए.
| Tweet |