वैकल्पिक ईधन के लिए कृष्ण क्रांति

Last Updated 08 Jun 2012 12:57:44 AM IST

कृषि के क्षेत्र में हरित क्रांति के बाद अब समय है कृष्ण क्रांति यानि ब्लैक रिवोल्यूशन का.


पेट्रोलियम उत्पादों के क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास को कृष्ण क्रांति नाम दिया गया है. इसका उद्देश्य देश को पेट्रोलियम क्षेत्र डीजल में आत्मनिर्भर बनाना है. चूंकि कच्चा तेल काले रंग का होता है, इसलिए इसके उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास को कृष्ण क्रांति कहा जाएगा. इसके तहत हमें देश में दूसरे तरीकों से पेट्रोल और डीजल को बनाना होगा या इसका विकल्प तैयार करना होगा.

इसके लिए जरूरी है कि देश में एथेनाल मिश्रित पेट्रोल एवं बायोडीजल के प्रयोग पर बल दिया जाए. विश्व के कई देशों जैसे अमेरिका, ब्राजील आदि में एथेनाल मिश्रित पेट्रोलियम का सफल प्रयोग हो रहा है. ब्राजील में फसल पर कीटनाशी पाउडर छिड़कने वाले विमान का ईधन, पारंपरिक ईधन में एथेनाल मिलाकर तैयार किया जाता है.

यह प्रदूषणरहित होने के साथ-साथ किसी भी अन्य अच्छे ईधन की तरह उपयोगी होता है. अब इसका प्रयोग विदेशों में मोटरकारों में निरंतर अधिक होता जा रहा है.  एथेनाल गन्ना, चुकंदर, मकई, जौ, आलू, सूरजमुखी या गंध सफेदा से तैयार किया जाता है. इन सबकी फसल के लिए विस्तृत भूभाग की आवश्यकता है जिसकी भारत में कोई कमी नहीं है. एथेनाल चीनी मिलों से निकलने वाली गाद या शीरा से भी बनाया जाता है.

पहले यह बेकार चला जाता था लेकिन अब इसका सदुपयोग हो सकेगा और इससे गन्ना उत्पादकों को भी लाभ होगा. यह पेट्रोल के प्रदूषक तत्वों को भी कम करता है. ब्राजील में बीस प्रतिशत मोटरगाड़ियों में इसका प्रयोग होता है. अगर भारत में ऐसा किया जाए तो पेट्रोल के साथ-साथ विदेशी मुद्रा की बचत भी होगी. देश में 18 करोड़, 60 लाख हेक्टेयर भूमि बेकार पड़ी है.

अगर मात्र एक करोड़ हेक्टेयर भूमि में ही एथेनाल बनाने वाली चीजों की खेती की जाए तो भी देश तेल के मामले में काफी हद तक आत्मनिर्भर हो जाएगा. इसी तरह बायोडीजल के लिए रतनजोत या जटरोपा का उत्पादन किया जा सकता है. कई विकसित देशों में वाहनों में बायोडीजल का सफल प्रयोग किया जा रहा है. इंडियन ऑयल द्वारा इसका परीक्षण सफल रहा है.

वर्तमान वाहनों के इंजन में बिना किसी प्रकार का परिवर्तन लाए इसका प्रयोग संभव है. जटरोपा समशीतोष्ण जलवायु का पौधा है जिसे देश में कहीं भी उगाया जा सकता है. इसे उगाने के लिए पानी की भी कम आवश्यकता होती है. यह बंजर जमीन पर भी आसानी से उग सकता है. जटरोपा की खेती के लिए रेलवे लाइनों के पास खाली पड़ी भूमि का उपयोग किया जा सकता है.

देश में वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद, आईआईटी दिल्ली, पंजाब कृषि विविद्यालय तथा इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ पेट्रोलियम देहरादून ने जटरोपा की खेती के सफल फील्ड ट्रायल किए हैं. रेलवे ने भी बायोडीजल का सफल प्रयोग किया है. 31 जनवरी, 2003 को पहली बार दिल्ली-अमृतसर शताब्दी एक्सप्रेस में इसका सफल प्रयोग किया गया. जटरोपा की व्यावसायिक खेती के लिए सरकार किसानों को अनुदान एवं आसान शतरे पर ऋण देकर प्रोत्साहित कर सकती है. बायोडीजल को ज्यादा परिष्कृत करने की आवश्यकता भी नहीं होती. यह प्रदूषण रहित होता है.

इसमें सल्फर की मात्रा शून्य होती है. इसे पर्यावरण के यूरो-3 मानकों में रखा गया है. बायोडीजल ज्वलनशील भी नहीं है. इसका भंडारण और परिवहन भी आसान है. यह ईधन का श्रेष्ठ और सस्ता विकल्प होगा तथा इसकी कीमत 11-12 रुपये प्रति लीटर होगी जो परंपरागत डीजल की कीमत से काफी कम है. बायोडीजल की खेती से ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी दूर होगी तथा लोगों की आत्मनिर्भरता बढ़ेगी.  

पिछले दिनों भारतीय पेट्रोलियम संस्थान (आईआईपी) में वैज्ञानिकों की टीम ने पर्यावरण के लिए खतरनाक माने जाने वाले प्लास्टिक से पेट्रोलियम बनाने की नई प्रौद्योगिकी विकसित की है. इसमें  ‘उत्प्रेरकों का एक संयोजन’ विकसित किया गया, जो प्लास्टिक को गैसोलीन या डीजल या ‘एरोमेटिक’ के साथ-साथ एलपीजी (रसोई गैस) के रूप में तब्दील कर सकता है.

वास्तव में बेकार हो चुके प्लास्टिक से पेट्रोलियम उत्पाद तैयार करना, हमारे वैज्ञानिकों की बड़ी उपलब्धि है. इस परियोजना का प्रायोजक गेल भी बड़े पैमाने पर पेट्रोलियम उत्पाद तैयार करने के लिए परियोजना की आर्थिक व्यवहारिकता तलाश रहा है.

इस प्रौद्योगिकी की खास विशेषता यह है कि उत्प्रेरकों और संचालन मापदंड में बदलाव के जरिए इसी कच्चे पदार्थ से विभिन्न उत्पाद हासिल किए जा सकते हैं.  इसके अलावा यह प्रक्रिया पूरी तरह पर्यावरण हितैषी भी है, क्योंकि इससे कोई जहरीला पदार्थ उत्सर्जित नहीं होता है.

यह प्रक्रिया छोटे और बड़े उद्योग, दोनों के अनुकूल है. ‘वेस्ट प्लास्टिक्स टू फ्यूल एंड पेट्रोकेमिकल्स’ नाम से इस परियोजना की व्यवहार्यता पर वर्ष 2002 में कार्य शुरू  किया गया था और इस निष्कर्ष तक पहुंचने में चार साल का वक्त लगा कि बेकार हो चुके प्लास्टिक को ईधन में तब्दील करना संभव है. एक अनुमान के मुताबिक दुनिया भर में तीन सौ टन से अधिक प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जाता है और इसमें सालाना 10 से 12 फीसद बढ़ोतरी हो रही है.

पेट्रोल तैयार करने के लिए पलीथीलीन एवं पलीप्रोपोलीन जैसे पलीओलेफीनीक प्लास्टिक मुख्य कच्चा माल हैं. एक किलोग्राम पलीओलेफीनीक प्लास्टिक से 650 मिली लीटर पेट्रोल या 850 मिलीलीटर डीजल या 450-500 मिलीलीटर एरोमेटिक तैयार किया जा सकता है.

जिस गति से विश्व में पेट्रोलियम उत्पादों का उपभोग हो रहा है उसके अनुसार विश्व की अगले 40 वर्षों की मांग पूरी करने के लिए ही कच्चे तेल के भंडार शेष हैं.

भविष्य में होने वाली तेल की कमी को पूरा करने के लिए अभी से गंभीरतापूर्वक कदम उठाने होंगे. कृष्ण क्रांति निश्चित रूप से भारत की टिकाऊ  विकास के प्रति प्रतिबद्धता को मजबूत करेगी. इसलिए देश की वर्तमान और भावी ऊर्जा सुरक्षा के लिए कृष्ण क्रांति का सफल होना बहुत जरूरी है.

सरकार को अपने तमाम प्रयासों से इसके मार्ग में आने वाली प्रत्येक कठिनाई को दूर करना होगा. यह क्रांति भारत की आर्थिक समृद्धि के द्वार खोलेगी तथा भारत को विकसित देशों की कतार में खड़ा करने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगी.

शशांक द्विवेदी
लेखक


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