मंजिल-दर-मंजिल मिलती सफलता

Last Updated 11 May 2012 12:53:11 AM IST

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भी अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में भारत का लोहा मान चुके हैं.


अग्नि-5 की तपिश अभी बनी ही हुई थी कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) ने हाल में अपने अभियान में एक और मील का पत्थर स्थापित करते हुए सभी मौसमों में काम करने वाले अपने स्वदेश निर्मित राडार इमेजिंग उपग्रह (रीसेट-1) का पीएसएलवी सी 19 के जरिए सफल प्रक्षेपण कर दिया.

रीसेट-1 इसरो का पहला राडार इमेजिंग सेटेलाइट है जो हर तरह के मौसम, बारिश, तेज गर्मी, कोहरे और चक्रवात में भी तस्वीरें लेने में सक्षम है. देश  के लिए यह  बहुत  बड़ी और महत्वपूर्ण कामयाबी है क्योंकि अब तक हमारा देश एक कनाडाई उपग्रह से ली गई तस्वीरों पर निर्भर रहा है. कारण, हमारे घरेलू रिमोट सेंसिंग अंतरिक्ष यान उस वक्त धरती की तस्वीरें नहीं ले पाते, जब आकाश पर घने बादल होते हैं.

इस कामयाबी में स्वदेशी तकनीक के साथ-साथ आत्मनिर्भरता की तरफ बढ़ते कदम की भी पुष्टि होती है. अगर सकारात्मक सोच और ठोस रणनीति के साथ हम अंतरिक्ष मामलों में लगातार प्रयास करते रहें तो वह दिन दूर नहीं जब हम खुद अपने नीति नियंता बन जाएंगे और हमें किसी तकनीक के लिए दूसरों पर निर्भर  नहीं रहना पड़ेगा.

भारत ने आजादी के 15 सालों के अंदर ही अपना अंतरिक्ष कार्यक्रम शुरू करने के बाद लगातार प्रगति की और एकमात्र ऐसा प्रगतिशील देश बना जो अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में विकसित देशों के बीच जा खड़ा हुआ. आज की तारीख में हमें अपने आप को मजबूत बनाने के लिए अपने संचार उपग्रहों के नेटवर्क को इतना व्यापक बना लेना होगा कि किसी भी जरूरत के लिए हमें बाहर के उपग्रहों पर निर्भर नहीं रहना पड़े.

वास्तव में इन उपग्रहों के प्रक्षेपण से भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र के अग्रणी देशों के बीच अपना स्थान और मजबूत किया है. आज भारत- अमेरिका, रूस, जापान, चीन और यूरोपीय देशों के अंतरिक्ष संगठन की तरह अपना उपग्रह अंतरिक्ष में छोड़ सकता है. यह कोई साधारण बात नहीं है. इससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह है कि ये उपग्रह बेहतरीन टेक्नालॉजी का नमूना हैं. अल्प अवधि में भारत की यह प्रगति निसंदेह प्रशंसनीय है.

रीसेट-1 के लांच के बाद देश की निगरानी क्षमता काफी बढ़ जाएगी. इसके सक्षम राडार की वजह से इसका उपयोग आपदाओं की भविष्यवाणी, कृषि और रक्षा क्षेत्र में किया जाएगा. इससे फसलों की पैदावार के बारे में जानने और खासकर आपदा प्रबंधन के वक्त भी काफी मदद मिलेगी.

इसरो के प्रक्षेपण वाहन ‘पीएसएलवी’ ने रीसेट-1 के प्रक्षेपण के साथ अपनी 20 सफल उड़ानें पूरी कर एक बार फिर अपनी विश्वसनीयता स्थापित की है. इसरो  द्वारा प्रक्षेपित किया गया यह अब तक का सबसे भारी उपग्रह है. रीसेट-1 इसरो के लगभग 10 साल के अथक प्रयासों का परिणाम है. इस सफलता ने यह भी साबित कर दिया कि भारतीय वैज्ञानिक प्रतिभा और योग्यता में किसी से भी कम नहीं हैं.

भारत की नित नई वैज्ञानिक प्रगति देखते हुए वह दिन ज्यादा दिन दूर नहीं दिखता, जब स्वदेशी रॉकेट और स्पेस कैप्स्यूल में बैठकर भारतीय भी अंतरिक्ष में जा सकेंगे. रीसैट के सफल प्रक्षेपण के बाद इसरो ने अब अपने मानव अंतरिक्ष अभियान पर काम शुरू कर दिया है और इसकी रूपरेखा तैयार कर ली गई बतायी जाती है. ऐसा होने पर भारत दुनिया का चौथा ऐसा देश बन जाएगा जो अपनी तकनीक के माध्यम से अपने अंतरिक्षयात्रियों को अंतरिक्ष में भेजेगा. अमेरिका, रूस और चीन के पास पहले से ही यह तकनीक उपलब्ध है.

सभी मौसमों में काम करने वाले राडार इमेजिंग उपग्रह (रीसेट-1) के सफल  प्रक्षेपण से उत्साहित भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने घोषणा की है कि वह वर्तमान वित्त वर्ष के दौरान दो जीएसएलवी और एक पीएसएलवी का प्रक्षेपण करेगा तथा 2014 में जीएसएलवी के जरिए चंद्रयान-2 अभियान को अंजाम देगा.

मानवयुक्त अंतरिक्ष अभियान और चंद्रयान-2 अभियान को सफल बनाने के लिए इसरो को विश्वसनीय जीएसएलवी रॉकेट प्रणाली, थर्मल सुरक्षा, जीवन रक्षा और चालक दल बचाव प्रणाली जैसे कई  क्षेत्रों में काम करना पड़ेगा. जीएसएलवी रॉकेट अपने द्वारा तैयार क्रायोजेनिक इंजन से सफलतापूर्वक प्रक्षेपित करना अब भी भारत के लिए चुनौती है यानी अभी हम इस तकनीक में पूर्ण रूप से सफल नहीं हो पाये हैं.

देश की जरूरतें पूरा करने के लिए ज्यादा ट्रांसपोंडरों की दरकार है. यह बात दीगर है कि आने वाले समय में हम उपग्रहों का प्रक्षेपण तो करेंगे, लेकिन कहीं ऐसा न हो कि हमें विदेशी ट्रांसपोंडर लीज पर लेने पड़ें. अंतरिक्ष अनुंसधान के क्षेत्र में भारत को भविष्य में काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा लेकिन अभी भी हम इसरो द्वारा लक्षित 500 ट्रांसपोंडरों से काफी पीछे हैं.

1969 में प्रसिद्ध वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के निर्देशन में राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति  का गठन हुआ था. तब से अब तक हमारी चांद पर अंतरिक्ष यान भेजने की परिकल्पना साकार हुई. यही नहीं, हम मंगल पर भी पहुंचने का सपना देखने लगे हैं.

मून मिशन की सफलता के बाद इसरो का लोहा पूरी दुनिया मान चुकी है. चांद पर पानी की खोज का श्रेय भी हमारे चंद्रयान 1 को ही मिला. दूर संवेदी उपग्रह पण्राली आईआरएस 1 सी एवं आईआरएस 1 डी को वि के सर्वश्रेष्ठ असैनिक दूर संवेदी उपग्रहों में गिना जाता है.

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भी अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में भारत का लोहा मान चुके हैं. पिछले दिनों उन्होंने कहा था कि भारत और अमेरिका अंतरिक्ष के क्षेत्र में संयुक्त प्रयास से नए आयाम स्थापित कर सकते हैं. भविष्य में इसरो उन सभी ताकतों को और भी कड़ी टक्कर देगा जो साधनों की बहुलता के चलते प्रगति कर रही हैं. इस रूप में भारत के पास प्रतिभाओं की बहुलता है.

देश में स्वदेशी प्रौद्योगिकी को बड़े पैमाने पर विकसित करने की जरूरत है और इस दिशा में जो भी समस्याएं हैं, उन्हें सरकार द्वारा अविलम्ब दूर करना होगा तभी सही मायनों में हम विकसित राष्ट्र का अपना सपना पूरा कर पाएंगे.

अगर हम एक विकसित देश बनने की इच्छा रखते हैं तो आतंरिक और बाहरी चुनौतियों से निपटने के लिए हमें दूरगामी रणनीति बनानी पड़ेगी. क्योंकि स्वदेशी व आत्मनिर्भरता का कोई विकल्प नहीं है. इस कामयाबी को आगे बढ़ाते हुए हमें अपने अंतरिक्ष अभियान को स्वदेशी तकनीक से अत्याधुनिक बनाते जाना है.

शशांक द्विवेदी
लेखक


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