प्लास्टिक कचरे से गहराता संकट

Last Updated 16 Dec 2010 11:16:08 PM IST

पर्यावरण के लिए प्लास्टिक कचरा एक गंभीर संकट बना हुआ है.


प्रत्येक परिवार हर साल करीब तीन से चार किलो प्लास्टिक की थैलियों का इस्तेमाल करता है. बाद में यही प्लास्टिक के थैले कूड़े के रूप में पर्यावरण के लिए मुसीबत बनते हैं. पिछले साल देश में करीब 15 लाख टन कचरा सिर्फ प्लास्टिक का ही था. एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में हर साल 30-40 लाख टन प्लास्टिक का उत्पादन किया जाता है. इसमें से करीब आधा यानी 20 लाख टन प्लास्टिक रिसाइक्लिंग के लिए मुहैया होता है. हालांकि हर साल करीब साढ़े सात लाख टन कूड़े की रिसाइक्लिंग की जाती है.

कूड़े की रिसाइक्लिंग को उद्योग का दर्जा हासिल है और यह सालाना करीब 25 अरब रुपये का कारोबार है. देश में प्लास्टिक की रिसाइक्लिंग करने वाली छोटी-बड़ी 20 हजार इकाइयां हैं. करीब 10 लाख लोग प्लास्टिक संग्रह के काम में लगे हैं, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी बड़ी तादाद में शामिल हैं. हालांकि इस धंधे में बिचौलिये (कबाड़ी) चांदी कूटते हैं.

दरअसल, प्लास्टिक के थैलों के इस्तेमाल से होने वाली समस्याएं ज्यादातर कचरा प्रबंधन प्रणालियों की खामियों की वजह से पैदा हुई हैं. प्लास्टिक का यह कचरा नालियों और सीवेज व्यवस्था को ठप कर देता है. नदियों में भी इनकी वजह से बहाव पर असर पड़ता है और पानी के दूषित होने से मछलियों की मौत तक हो जाती है. इतना ही नहीं, कूड़े के ढेर पर पड़ी प्लास्टिक की थैलियों को खाकर आवारा पशुओं की भी बड़ी तादाद में मौत हो रही हैं.

रिसाइकिल किए गए या रंगीन प्लास्टिक थैलों में ऐसे रसायन होते हैं जो जमीन में पहुंच जाते हैं और इससे मिट्टी एवं भूजल विषैला बन सकता है. जिन उद्योगों में पर्यावरण की दृष्टि से बेहतर तकनीक वाली रिसाइक्लिंग इकाइयां नहीं लगी होती उनमें रिसाइक्लिंग के दौरान पैदा होने वाले जहरीले धुएं से वायु प्रदूषण फैलता है.

प्लास्टिक एक ऐसा पदार्थ है जो सहज रूप से मिट्टी में घुलमिल नहीं सकता. इसे अगर मिट्टी में छोड़ दिया जाए तो यह भूजल की रिचार्जिंग को रोक सकता है. इसके अलावा प्लास्टिक उत्पादों के गुणों के सुधार के लिए और उनको मिट्टी से घुलनशील बनाने के इरादे से जो रासायनिक पदार्थ और रंग आदि उनमें आमतौर पर मिलाए जाते हैं, वे भी अमूमन स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं.

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि प्लास्टिक मूल रूप से नुकसानदायक नहीं होता, लेकिन प्लास्टिक के थैले अनेक हानिकारक रंगों/रंजक और अन्य तमाम प्रकार के अकार्बनिक रसायनों को मिलाकर बनाए जाते हैं. रंग और रंजक एक प्रकार के औद्योगिक उत्पाद होते हैं जिनका इस्तेमाल प्लास्टिक थैलों को चमकीला रंग देने के लिए किया जाता है.

इनमें से कुछ रसायन कैंसर को जन्म दे सकते हैं और कुछ खाद्य पदार्थों को विषैला बनाने में सक्षम होते हैं. रंजक पदार्थों में कैडमियम जैसी धातुएं स्वास्थ्य के लिए बेहद नुकसानदायक हैं. थोड़ी-थोड़ी मात्रा में कैडमियम के इस्तेमाल से उल्टियां हो सकती हैं और दिल का आकार बढ़ सकता है. लम्बे समय तक जस्ता के इस्तेमाल से मस्तिष्क के ऊतकों का क्षरण होने लगता है.

फिरदौस खान
लेखांश सोपान से साभार


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment