Farmer Protest : किसान बनाम सरकार

Last Updated 13 Feb 2024 01:01:33 PM IST

किसान 2020-21 की तरह इस बार फिर दिल्ली कूच कर रहे हैं, इसलिए इसे किसान आंदोलन (Kisan Andolan) का पार्ट दो कहा जा रहा है।


किसान बनाम सरकार

राजधानी के आसपास के प्रदेशों के अलावा सूदूर मध्य प्रदेश के किसान भी लंबे समय तक राजधानी के घेराव की तैयारी के साथ आ रहे हैं। पिछले अनुभव फिर से न दोहराए जाएं इनके लिए सरकार और प्रशासन की तैयारी भी उसी तरह से है। किसानों को रोकने के लिए तमाम वैधानिक उपाय किए जा रहे हैं। दूसरी तरफ, सरकार के मंत्री किसानों से वार्ता जारी रखे हुए हैं। सोमवार की शाम भी यह बातचीत चंडीगढ़ में हो रही है।

इसके नतीजे पर देश की नजर रहेगी। सवाल है कि किसान क्यों बार-बार आंदोलन पर उतारू होते हैं? इसलिए कि उनकी जायज मांगें भी पूरी नहीं हो पा रही हैं। पहली मांग सभी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने की है। इसके साथ 12 मांगें हैं।

इनमें प्रमुख हैं-स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशें लागू करने, किसानों और मजदूरों की संपूर्ण कर्जमाफी, भूमि अधिग्रहण कानून 2013 को फिर से लागू करने, किसानों से लिखित सहमति लेकर चार गुना मुआवजा दिलाने, विश्व व्यापार संगठन से हटने और सभी मुक्त व्यापार समझौतों पर प्रतिबंध लगाने, किसानों और खेतिहर मजदूरों को पेंशन देने, बिजली संशोधन विधेयक 2020 रद्द करने, नकली बीज, कीटनाशक और उर्वरक बनाने वाली कंपनियों पर सख्त जुर्माना लगाने और बीज की गुणवत्ता में सुधार करने, मिर्च, हल्दी और अन्य मसालों के लिए एक राष्ट्रीय आयोग का गठन करना है।

इनमें विश्व व्यापार मसला छोड़ दिया जाए तो ऐसी कोई मांग नहीं है, जिन्हें यह सरकार पूरी नहीं कर सकती है। हैट्रिक बनाने की मंसूबा रखने वाली नरेन्द्र मोदी सरकार से अपनी मांगें मनवाने का यह अच्छा मौका जान कर दिल्ली चलो का आह्वान किया गया है।

इस समय सरकार को झुकाया जा सकता है। इसलिए सरकार रक्षात्मक मूड में रह सकती है और किसानों की कुछ मांगें मान सकती है। पर एक बैठक में कोई दीर्घकालिक समझौता नहीं होगा।

मोदी सरकार की कार्यशैली के जानकारों का ऐसा मानना है। दूसरे, पिछले साल हुए हिंदी पट्टी के तीन राज्यों के किसानों का भाजपा के पक्ष में जम कर वोट करने का उदाहरण भी है। इसलिए सरकार किसानों के साथ ढिठाई कर सकती है, लेकिन इस बार रिस्क अधिक है। अगर उसने फिर से उन्हें थका देने की रणनीति रखेगी तो उसे घाटा हो सकता है। उसे किसानों की जायज मांगों पर विचार कर उन्हें संतुष्ट करना चाहिए।



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