भाजपा के स्वर
राजधानी दिल्ली के रामलीला मैदान में आयोजित भाजपा की दो दिवसीय राष्ट्रीय परिषद से निकले स्वर साफ कर रहे हैं 2019 का उसके चुनावी एजेंडे क्या होंगे?
भाजपा के स्वर |
वास्तव में लोक सभा चुनाव के पूर्व की यह अंतिम राष्ट्रीय परिषद थी और भाजपा के इतिहास की सबसे बड़ी भी। इसे खुला अधिवेशन का स्वरूप देने का उद्देश्य भी यही था कि ज्यादा से ज्यादा नेताओं-कार्यकर्ताओं से संवाद हो सके और उनको साफ संदेश दिया जा सके। तीन प्रमुख राज्यों में पराजय की समीक्षा के बाद भाजपा नेतृत्व के लिए आवश्यक हो गया था कि वह देश भर के अपने नेताओं, कार्यकर्ताओं और समर्थकों को यह विश्वास दिलाए कि उनके जीतने की संभावना अभी भी कायम है। सम्मेलन में सरकार की उपलब्धियों के विस्तृत विवरणों वाले प्रस्तावों और नेताओं के भाषणों में आपको इसकी पूरी झलक मिल जाएगी। उन प्रस्तावों की कॉपियां वहां आए 10 हजार से ज्यादा परिषद के सदस्यों को उपलब्ध कराने का अर्थ है कि वे अपने-अपने क्षेत्रों में ठोस तथ्यों के साथ प्रचार करेंगे। इसके साथ नरेन्द्र मोदी और अमित शाह ने अपने भाषण में वो सारे मुद्दे, एजेंडा, नारे दे दिए जो चुनाव तक गूंजित होते रहेंगे। ‘अबकी बार फिर मोदी सरकार’ एक सर्वसामान्य नारा होगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मजबूर सरकार और मजबूत सरकार का नारा दिया और इसका विश्लेषण किया। उन्होंने राहुल गांधी का नाम लिये बिना यह प्रश्न रख दिया कि देश को कैसा सेवक चाहिए- ये वाला या वो वाला।
तो अपने सरकार के काम के साथ इन दो प्रमुख नारों से जनता का मनोविज्ञान बनाने की कोशिश होगी। इस बैठक से यह भी साफ हुआ कि पार्टी के लिए मोदी का चेहरा सबसे बड़ा हथियार होगा। सभी नेताओं के भाषणों एवं प्रस्तावों की ध्वनि यही थी कि हमारे पास जैसा नेता है वैसा किसी के पास न है और न हो सकता है। कुल मिलाकर राष्ट्रीय परिषद से भाजपा ने तीन राज्यों में पराजय के आघात से उबरते हुए चुनावी मोड में अपने को झोंक दिया है। एक साथ इतनी संख्या में नेताओं-कार्यकर्ताओं को एकत्रित कराने का अर्थ ही था चुनाव अभियान की शुरु आत कर देना। इन सबका कितना असर होता है, यह कहना अभी कठिन है। हां, विपक्षी पार्टयिों को यह तय करना होगा कि भाजपा ने जो मुद्दे उठाए हैं, उनकी काट वे कैसे करेंगे?
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