सही फैसला

Last Updated 10 Jan 2019 05:53:52 AM IST

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आलोक वर्मा को निदेशक के तौर पर बहाली का राजनीतिक अर्थ जो भी लगाया जाए लेकिन यह एक संस्था का सम्मान बचाने का फैसला ज्यादा है।


सही फैसला

अदालत ने कोई कड़ी टिप्पणी नहीं की है, लेकिन सीवीसी द्वारा वर्मा को उनके अधिकारों, कर्तव्यों आदि से वंचित करने को दुर्भाग्यपूर्ण अवश्य कहा है।

वास्तव में वह निर्णय दुर्भाग्यपूर्ण था। जिस तरह  सीबीआई मामलों की जांच और कानूनी कार्रवाई की जगह आपसी संघर्ष में उलझ गया था, उससे देश अचंभित था। हालांकि सरकार ने वर्मा या अस्थाना को पद से हटाए जाने की जगह जांच होने तक कामकाज से मुक्त किया था। उच्चतम न्यायालय ने भी न तो उनके खिलाफ होने वाली जांच पर रोक लगाई है, न वर्मा को उनके अधिकार वापस किए हैं। उन पर लगे आरोपों पर भी टिप्पणी नहीं की है। वे केवल रु टीन कामकाज देख सकेंगे।

न कोई पहल करेंगे और न नीतिगत निर्णय लेंगे। न्यायालय ने वर्मा पर कार्रवाई या उनके कामकाज संबंधी निर्णय उच्चाधिकार समिति पर छोड़ दिया है, जिसमें प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश एवं विपक्ष के नेता शामिल हैं। अर्थ साफ है, न्यायालय चाहता है कि जो भी कदम उठाया जाए उसमें निर्धारित प्रक्रिया का पालन हो। दरअसल, उच्च न्यायालय ने ही पांच वर्ष पूर्व के अपने फैसले में सीबीआई की संस्था के तौर पर विसनीयता एवं स्वायत्तता कायम रखने के उद्देश्य से कुछ प्रावधान तय किए थे। इसी में ऐसे निर्णय करने के लिए उच्चाधिकार समिति को अधिकृत किया गया था। हालांकि निदेशक और विशेष निदेशक के बीच सीबीआई मुख्यालय लड़ाई का अड्डा बन जाएगा, इसकी कल्पना शायद उच्चतम न्यायालय ने भी नहीं की होगी।

इसलिए उसने ऐसी टिप्पणियां की हैं, जिनसे न सीबीआई के बारे एकदम नकारात्मक धारणा बने, न सरकार को झेंपना पड़े और न सक्रियतावादियों को झंडा उठाने का अवसर मिले। न्यायालय ने एनजीओ कॉमन कॉज आदि की वर्तमान कार्यकारी निदेशक नागेर राव के निर्णयों के खिलाफ अपीलों को भी स्वीकार नहीं किया है। न्यायालय की यही भूमिका यथेष्ट थी। किंतु मूल सवाल सीबीआई को दुरुस्त करने, उसकी विसनीयता को कायम करने की है। इस प्रकरण ने इतना साफ कर दिया है कि यह शीर्ष जांच एजेंसी अभी भी कई ऐसी बीमारियों की शिकार है, जो इसे स्वतंत्र होकर कुशल और ईमानदार भूमिका निभाने में बाधा हैं। तात्कालिक समाधान जो भी निकले लेकिन दूरगामी दृष्टि से सीबीआई के चरित्र एवं व्यवहार में व्यापक बदलाव की आवश्यकता है।



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