कनाडा क्षतिपूर्ति करे

Last Updated 23 Feb 2018 05:49:08 AM IST

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की भारत यात्रा गंभीर विवाद में है.


कनाडा क्षतिपूर्ति करे

इस यात्रा को लेकर भारत में जो गहमागहमी दिखनी चाहिए, वह शुरू से नहीं दिखी. जिस तामझाम के साथ इस आतिथ्य सत्कारी देश में उनका एहतराम होना चाहिए था, वह नहीं हुआ. इसलिए कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कनाडा में खालिस्तान समर्थकों के प्रति जस्टिन की नरमीयत को लेकर खफा थे. फिर जिस तरह से उन्होंने भारत यात्रा के कार्यक्रमों में द्विपक्षीय मसलों से ज्यादा पर्यटन को तरजीह दिया, उसने भी गर्मजोशी नहीं बनने दी.

कनाडा को आगे बढ़कर इसे संभालना चाहिए था, इसलिए कि विदेश मंत्रालय इसके लिए उसे बार-बार आगाह कर रहा था. यह करने के बदले जस्टिन ने भारतीय संप्रभुता का असम्मान कर तो हद ही पार कर दी. मुंबई में उनके सम्मान में दी गई डिनर पार्टी में जसपाल अटवाल जैसे खालिस्तान समर्थक का दिखना यह साबित करता है कि कनाडा की वह सोच बदली नहीं है.

खालिस्तानी आंदोलन का वह अब भी हिमायती है, उस खूंखार आंदोलन का जिसने पंजाब में सैकड़ों जानें लीं, हजारों परिवारों को बेघर किया, जिसने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी तक को नहीं बख्शा और जो उन्मादी और जुनूनी भीड़ की तात्कालिक नफरत से उपजे देशव्यापी सिख विरोधी दंगों का कारक तत्व रहा. ट्रूडो कह भले रहे हों और उनका यह बयान भी आया है कि कनाडा की सरजमीन का इस्तेमाल खालिस्तानी ताकतों के लिए वह हरगिज नहीं होने देंगे, लेकिन उनके पास इन सवालों के जवाब नहीं हैं कि अटवाल उस पार्टी में आया कैसे?

क्या उन्हें  (ट्रूडे) एक राष्ट्र प्रमुख होने के नाते यह तक नहीं पता कि भारत ने बड़ी कुर्बानियों के बाद खालिस्तानी मंसूबों को हलाक किया है? ट्रूडो अपने इस दौरे के क्रम में अमृसर स्थित पवित्र स्वर्ण मंदिर भी गये, वहां मत्था टेका, कारसेवा की, रोटियां पकाई. निहितार्थ क्या था? निहितार्थ अगर यह संदेश देना था कि पंजाब की उस ‘मार्शल रेस’ को हम सलाम करने आए हैं, जिसमें अपने श्रम के बूते मिट्टी को सोना बनाने का साहस है तो उसका स्वागत है.

लेकिन घोषित आतंकी को डिनर पार्टी में ले जाना सारा गुड़ गोबर कर देता है. उनकी सदिच्छा यहीं पर शक का बायस बनती है. यह सच है कि खालिस्तान आंदोलन को शह देने वालों में कनाडा एक प्रमुख देश रहा है. यह गलती तभी सुधर सकती है, जब वह पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर की सौंपी सूचियों पर कार्रवाई करते हुए उन नौ उग्रवादियों को भारत को सौंप दे.



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