चंदे पर नजर

Last Updated 04 Jan 2018 01:20:17 AM IST

केंद्र सरकार ने बीते मंगलवार को चुनावी बांड योजना की विस्तृत रूपरेखा जारी करके चुनावी फंडिंग को पारदर्शी और स्वच्छ बनाने की दिशा में अहम कदम उठाया है.




चंदे पर नजर

केंद्र सरकार के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने वित्त वर्ष 2017-18 के बजट के दौरान संसद में इस योजना को शुरू करने की घोषणा की थी. सरकार दावा कर रही है कि यह योजना राजनीतिक दलों को मिलने वाले नकदी चंदे के प्रचलन को हतोत्साहित करेगी और इस तरह चुनावों में काले धन के इस्तेमाल पर रोक लग पाएगी.

अब आगामी चुनावों में सरकार के दावे की असलियत का पता चल पाएगा. फिर भी, आशावादी नजरिये से यह तो कहा ही जा सकता है कि पूरी तरह तो नहीं लेकिन एक सीमा तक काले धन के इस्तेमाल को रोकने में यह योजना कारगर हो सकती है.

इस योजना के मुताबिक, राजनीतिक दलों के लिए एक हजार से लेकर एक करोड़ रुपये के मूल्य तक के चुनावी बांड एसबीआई बैंक की चुनिंदा शाखाओं से खरीदे जा सकेंगे और इसकी मियाद पंद्रह दिनों की होगी अर्थात इन्हें केवल अधिकृत बैंक खातों के जरिए इस मियाद के भीतर भुनाना होगा.

चुनावी बांड लेने की कुछ अर्हताएं भी निर्धारित की गई हैं. मसलन, राजनीतिक दल का पंजीकरण और पिछले चुनाव में कम से कम एक फीसद वोट पाना अनिवार्य है. चुनाव के मौसम में काले धन को सफेद करने के इरादे से कुकुरमुत्ते की तरह उग आने वाली नई राजनीतिक पार्टियों को ये चुनावी बांड नहीं दिए जा सकेंगे. 

सरकार के इस कदम को चुनाव सुधार की दिशा में महत्त्वपूर्ण माना जा सकता है क्योंकि ये राजनीतिक दल विसनीय नहीं होते और लोकतंत्र की प्रक्रिया को पीछे धकेलते हैं. अलबत्ता, चुनावी बांड में दानदाता के नाम को गोपनीय रखने का प्रावधान राजनीतिक फंडिंग को पारदर्शी और स्वच्छ बनाने के उद्देश्य को धूमिल करता है. माना जा रहा है कि यह प्रावधान राजनीतिक दलों और कॉरपोरेट जगत के गठजोड़ को तोड़ने में बाधक बनेगा.

सरकार भले यह कह रही है कि दानकर्ता को अपनी बैलेंस शीट में चुनाव बांड का जिक्र करना होगा लेकिन सवाल यह है कि आम जनता को कैसे पता चल पाएगा कि किसने किस राजनीतिक दल को कितना चुनावी चंदा दिया? इस नजरिये से राजनीतिक फंडिंग पारदर्शी बनाने का मकसद आधा-अधूरा ही रह जाता है.



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