टॉनिक काफी नहीं

Last Updated 07 Dec 2017 05:18:13 AM IST

निर्यात को लेकर हाल में कुछ ठोस कदम उठाये गये हैं. मंगलवार को वाणिज्य मंत्री सुरेश प्रभु की घोषणाओं के मुताबिक निर्यात क्षेत्र के सहायता-प्रोत्साहन में बढ़ोत्तरी की गयी है.


टॉनिक काफी नहीं

2017-18 के दौरान इसमें से 2,816 करोड़ रु पये का खर्च होगा.

कुल सहायता-प्रोत्साहन में करीब 8450 करोड़ रु पये की बढ़ोत्तरी घोषित की गयी है. विदेश व्यापार नीति 2015-20 की मध्यावधि समीक्षा के तहत ये घोषणाएं की गयीं. इस सहायता-प्रोत्साहन से चमड़े, हैंडीक्रॉफ्ट, कालीन, खेल साज-सामान, इलेक्ट्रानिक साज-सामान का निर्यात करनेवालों को फायदा पहुंचेगा. गौरतलब है कि निर्यात के हाल बहुत लंबे समय से अच्छे नहीं चल रहे हैं.

निर्यातक प्रोत्साहन-सहायता की मांग कर रहे थे. खासकर नोटबंदी के बाद निर्यातकों की समस्याओं में बहुत इजाफा हो गया था. कालीन उद्योग और चमड़े के उत्पाद बनानेवाले उद्योगों में कई लोगों को रोजगार मिलता है. इन उद्योगों की हालत भी नोटबंदी के बाद खस्ता हो गयी थी. कई चमड़ा इकाइयों के तो बंद होने की नौबत आ गयी थी. उन्हें इन कदमों से सहारा मिलेगा ऐसा माना जा सकता है.

पर सोचने की बात यह कि सिर्फ  यह कदम काफी नहीं है. निर्यात से जुड़ी मूलभूत समस्याओं को समझना होगा. अंतरराष्ट्रीय बाजार में वे ही उत्पाद टिक पायेंगे जो लागत में सस्ते और अपनी गुणवत्ता में अधिकतम हों, उनमें तमाम तरह की विशेषताएं हों. यानी कुल मिलाकर हालात ऐसे बनाये जाने चाहिए कि भारत में निर्यातक सस्ते दामों पर श्रेष्ठ उत्पाद तैयार कर सकें.

भारतीय उत्पाद अंतरराष्ट्रीय बाजारों में लागत के मामले में पिट जाते हैं. एक वक्त में भारत के कपड़े पूरे ग्लोबल बाजार में धूम मचाते थे,अब ऐसा नहीं है. बांग्लादेश ने भारत को इस मामले में जबरदस्त प्रतिस्पर्धा दी है. उसने अपने यहां ऐसी स्थितियां पैदा की हैं, जिनमें सस्ते आइटम तैयार कर पाना संभव है. इसलिए बांग्लादेश के सस्ते और बेहतर कपड़े पूरी दुनिया में धूम मचा रहे हैं. प्रोत्साहन सहायता की तुलना टॉनिक से की जा सकती है, जो शरीर में थोड़ी ताकत बढ़ा सकते हैं, पर शरीर का स्वस्थ होना जरूरी है.

शरीर को किसी बीमारी वगैरह से ग्रस्त नहीं होना चाहिए. भारतीय निर्यात खराब आधारभूत ढांचे की समस्या से जूझ रहे हैं. बिजली-सड़क की आफतें अपनी जगह हैं. इन सबसे उत्पादों की लागत बढ़ जाती है और वे अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा से बाहर हो जाते हैं. केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को उन मसलों पर भी गंभीरता से विचार करना चाहिए, सिर्फ  प्रोत्साहन-टॉनिक काफी नहीं है.



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