ताज पर विवाद
उत्तर प्रदेश के सरधना से विधायक संगीत सोम ने ताजमहल और मुगलों के बारे में जो बयान दिया उस पर विवाद और हंगामा स्वाभाविक था.
ताजमहल (फाइल फोटो) |
उनके बयान से ध्वनि यह निकल रही थी कि मुगल काल को न सिर्फ इतिहास से बाहर किया जाएगा, बल्कि उस काल में निर्मिंत होने की मान्यता वाले स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूने ताजमहल जैसे स्थलों के साथ भी दुर्व्यवहार किया जाएगा. यह बयान किसी दृष्टि से उचित नहीं था. खासकर एक ऐसी पार्टी के नेता से जिसका प्रदेश एवं देश दोनों जगह शासन हो.
ऐसा हो भी नहीं सकता. जब हम ब्रिटिश काल को इतिहास के पन्नों से बाहर नहीं निकाल सकते तो मुगल काल और सल्तनत काल को कैसे निकाल पाएंगे! यह सोचना ही नासमझी है. ताजमहल के इतिहास को लेकर विवाद अवश्य है और रहेगा. इतिहास में दोनों पक्षों और मान्यताओं को जगह मिलती है और उसके अनुसार हम निष्कर्ष निकालते हैं. ऐसा शायद ही कहीं हुआ हो कि आजादी के साथ गुलामी काल में बनाए गए सारे इमारतों को ध्वस्त कर दिया जाए. यह न उचित है न व्यावहारिक ही. वैसे संगीत सोम भाजपा में ऐसे स्तर के नेता नहीं हैं, जो निर्णय कर सकें.
अच्छा हुआ कि पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उसके बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस बयान को नकार दिया. योगी 26 अक्टूबर को आगरा जा रहे हैं, जहां वे ताजमहल सहित कई पर्यटक स्थलों का दौरा करेंगे और कुछ घोषणाएं भी करेंगे. उन्होंने यह साफ किया है कि कौन क्या कहता है; यह मायने नहीं रखता. जरूरी यह है कि भारतीयों के खून-पसीने से बने हर स्मारक का संरक्षण किया जाए और पर्यटन की दृष्टि से भी इनका संरक्षण किया जाना जरूरी है.
इसी तरह, नरेन्द्र मोदी ने साफ कर दिया है कि ऐतिहासिक विरासत पर गर्व करने की आवश्यकता है. तो योगी एवं मोदी के इन स्पष्टीकरणों के बाद ताजमहल या मुस्लिम शासनकाल में बनी अन्य इमारतों के भी भविष्य को लेकर कायम आशंकाएं समाप्त हो जानी चाहिए. किंतु हमारे देश की राजनीति है कि भले संगीत सोम के बयानों से भाजपा एवं सरकार ने अपने को अलग कर लिया, उनके संरक्षण का वायदा भी किया गया, लेकिन विवाद आसानी से नहीं थमता.
इसीलिए आजम खान और असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेताओं का मुंह बंद हो जाएगा, ऐसा नहीं मानना चाहिए. किंतु हमें ऐसे बयानों को महत्त्व देने की जरूरत नहीं है, जिससे अनावश्यक सांप्रदायिक विद्वेष की भावना पैदा होती हो.
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