निजी क्षेत्र में आरक्षण

Last Updated 19 Oct 2017 03:50:46 AM IST

निजी क्षेत्र की नौकरियों में आरक्षण पर बहस लंबे समय से चल रही है.


नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार (फाइल फोटो)

अब नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने यह कहकर कि वह आरक्षण की नीति का निजी क्षेत्र में विस्तार करने के पक्ष में नहीं हैं, बहस को नये सिरे से जन्म दिया है. राजीव कुमार के बयान को नीति आयोग की अधिकृत नीति के तौर पर देखा जाना चाहिए. यह साफ है कि केंद्र सरकार के कई मंत्री सहित देश भर के अनेक नेता नीति आयोग के इस मत से सहमत नहीं होंगे.

केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान निजी क्षेत्र में आरक्षण के पक्ष में रहे हैं. हाल में उनकी पार्टी लोजपा ने फिर से इस मांग को दोहराया है. कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने पिछले वर्ष निजी क्षेत्र में आरक्षण की मांग की थी. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तो कुछ समय पूर्व यह कहा था कि यदि आज आर्थिक उदारीकरण के दौर में निजी क्षेत्र में आरक्षण नहीं दिया जा रहा है तो यह सामाजिक न्याय की अवधारणा के साथ मजाक होगा.



ऐसे अनेक नेता हैं, जो इस तरह की मांग रख रहे हैं. हालांकि उद्योग संगठन इस मांग को बार-बार नकार चुके हैं. उनका मानना है कि यदि निजी क्षेत्र में आरक्षण दे दिया गया तो फिर उनके कारोबार को विकसित करने में बाधाएं आएंगी. इस तर्क से सहमत असहमत हुआ जा सकता है. लेकिन जब सरकारी क्षेत्र में नौकरियां धीरे-धीरे कम हो रही हैं तो फिर समाज के वंचित वर्ग को किस तरह बराबरी पर लाया जाए यह विचार करना आवश्यक है.

हर वर्ष करीब 60 लाख लोग श्रम बाजार में शामिल हो रहे हैं. सरकार इनमें से 10 से 12 लाख लोगों को ही रोजगार दे पाती है. तो रोजगार के मामले में सरकार की सीमाएं हैं. ज्यादातर लोगों को अनौपचारिक क्षेत्र में काम करना पड़ता है या वे स्वरोजगार करते हैं या फिर बे-काम रहते हैं. निजी क्षेत्र में आरक्षण से भी समस्या सुलझ जाएंगी, ऐसा नहीं है.

वास्तव में रास्ता एक ही है, रोजगार के अधिक से अधिक अवसर सृजित किए जाएं. इससे ही समस्या सुलझेगी. नीति आयोग भी अधिक रोजगार सृजन के लिए प्रयास करने की बात कर रहा है. सरकार का जोर भी इस पर है कि जो लोग नौकरियों से या किसी तरह के रोजगार से वंचित रह जाते हैं, वे स्वरोजगार की ओर अग्रसर हों और उन्हें इसके लिए बैंक सहायता दें.

 

 

संपादकीय


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