गठबंधन में गांठ!

Last Updated 29 Jun 2017 02:32:52 AM IST

राष्ट्रपति पद के लिए समर्थन देने के सवाल पर बिहार में एक अलग तरह की लड़ाई लड़ी जा रही है.


गठबंधन में गांठ!

यह लड़ाई कभी गरम होती है तो कभी नरम? बिहार में अब सरकार के महज ढाई साल से कुछ ज्यादा साल बाद ही महागठबंधन के टूट जाने की भविष्यवाणी की जाने लगी है. महागठबंधन के तीनों दल-लालू यादव की राजद, नीतीश कुमार की जद-यू और सोनिया गांधी की कांग्रेस में ‘पल में तोला, पल में माशा’ वाली स्थिति है.

राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए प्रत्याशी को समर्थन देने के मामले ने न सिर्फ बिहार का सियासी पारा चढ़ा दिया है बल्कि केंद्र की राजनीति को भी चकरा कर रख दिया है. राजद,जद-यू और कांग्रेस नेताओं की बयानबाजी ने बिहार सरकार के भविष्य को लेकर आशंकाएं बढ़ा दी है.

हालांकि, इससे पहले नीतीश की पार्टी द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक का समर्थन और फिर नोटबंदी पर केंद्र सरकार की हां-में-हां मिलाना. राजद और कांग्रेस को अच्छा नहीं लगा था. इसके बावजूद नीतीश सरकार के भविष्य को लेकर किसी तरह की आशंकाएं सामने नहीं आई. मगर इस बार जिस तरह से आक्रामक बयानबाजी के बाद एनडीए के साथ ‘सहज’ रहने वाली जद-यू की टिप्पणी आई है, वह यह बताने को काफी है कि गठबंधन में ‘खटास’ है.

हालांकि, यह उस वक्त से है जब नीतीश ने लालू के साथ बिहार चुनाव में उतरने का मन बनाया था. लेकिन इस बात से भाजपा भी मुतमइन थी और है कि बिहार में नीतीश के कद का कोई नेता नहीं है और उनकी हैसियत सभी दलों के नेताओं पर भारी पड़ती है. ठीक है, खीज और झुंझलाहट में जद-यू नेता केसी त्यागी ने ‘भाजपा के साथ सहज संबंध’ की बात कह दी हो, मगर इस बयान की मारक क्षमता काफी कुछ इशारा भी करती है.

चूंकि लालू सपरिवार कथित भ्रष्टाचार के मामले में घिरे हैं, सो उन्हें यह भी बखूबी मालूम है कि नीतीश के साथ रहने में ही समझदारी है. भाजपा को भी यह इल्म है कि काम और कद के दायरे में जितनी बड़ी लकीर नीतीश ने खींच दी है, उस तक पहुंचने में वक्त लगेगा. हां, बिहार की राजनीति में भ्रम, कश्मकश और बेचैनी है. और जितनी जल्दी हो दुराग्रह, विद्वेष और आरोप-प्रत्यारोप की सतही कारस्तानियां बंद होनी चाहिए.



Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment