घटेगी विकास दर
उद्योग संगठन एसोचैम के इस आकलन से असहमति व्यक्त करना कठिन है कि 500 और 1000 के पुराने नोटों की वापसी का तत्काल नकारात्मक असर सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर पर पड़ेगा.
घटेगी विकास दर |
बाजार से 86 प्रतिशत नोट एक बार बाहर हो जाए और उसके अनुपात में अत्यंत ही कम नोट आएं तो फिर इसका असर पूरी आर्थिक गतिविधियों पर पड़ना ही है. लोगों के पास नोट नहीं तो खरीदारी नहीं, खरीदारी नहीं तो फिर उत्पादन क्यों? इस तरह विकास के चक्र पर तात्कालिक असर तो होगा.
हालांकि एसोचैम इससे बचने का यह सूत्र भी दे रहा है कि सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर को थामने के लिए सरकारी खर्च में बढ़ोत्तरी करनी होगी. सकल घरेलू उत्पाद में सरकारी खर्च का योगदान करीब 14 प्रतिशत होता है.
अगर उसमें सरकार वृद्धि करे तो नोट वापसी का असर थोड़ा कम हो सकता है. दरअसल, खर्च के आधार पर निर्धारित प्राइवेट फाइनल कंजप्शन एक्सपेंडिचर (पीएफसीई) का वर्तमान मूल्य पर सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 60 प्रतिशत और स्थिर मूल्य पर 55 प्रतिशत हिस्सा होता है.
एसोचैम की मानें तो नोटों की वापसी के कारण तीसरी तिमाही में पीएफसीई में कम-से-कम 35 से 40 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है और चौथी तिमाही में भी इसमें गिरावट रहने के आसार हैं. जाहिर है, इसका असर समूची अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा. प्रश्न है कि क्या सरकार ऐसा कर सकेगी और इससे नोट वापसी का असर खासा कम हो जाएगा?
सरकार बुनियादी परियोजनाओं पर खर्च कर सकती है और इसका असर होगा. लेकिन इतने से गिरते विकास दर को पूरी तरह थामा नहीं जा सकता. इसलिए जरूरी है कि यहां रिजर्व बैंक अपनी मौद्रिक समीक्षा में नीतिगत दरों में कुछ कटौती करे.
संभावना व्यक्त की जा रही है कि गवर्नर उर्जित पटेल नीतिगत दरों में शायद 0.25 प्रतिशत की कटौती करें चूंकि नोटों की वापसी के बाद यह पहली मौद्रिक समीक्षा होगी और बैंकों की जमा में जोरदार वृद्धि हुई है; इसलिए आरबीआई के पास रेपो दर में 0.25 फीसद की कमी कर इसे 6 फीसद तक लाने में कोई जोखिम नहीं है. इससे उद्योगों और उपभोक्ताओं दोनों को कम दर पर कर्ज मिल सकेगा जिससे उत्पादन एवं खरीद दोनों को गति मिलेगी.
कहने का तात्पर्य यह कि नोट वापसी के कारण बाजार की मंदी को तोड़ने और उसमें गतिशीलता लाने के लिए सरकार एवं रिजर्व बैंक दोनों को कमर कसना होगा. देखना है रिजर्व बैंक अपनी मौद्रिक समीक्षा में ऐसा करता है या नहीं.
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