थमे नहीं सिलसिला

Last Updated 26 Jul 2016 03:27:42 AM IST

भारत में आर्थिक सुधारों की गति में आए धीमेपन पर अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) ने चिंता जतलाई है.


थमे नहीं सिलसिला

पेइचिंग में जी 20 समूह के  वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंकों के गवर्नरों की दो दिनी बैठक के लिए तैयार दस्तावेज-नोट ऑन ग्लोबल प्रॉस्पेक्ट्स एंड पॉलिसी चैलेंजेस’-में आईएमएफ ने भारत में छह प्रमुख क्षेत्रों में सुधारों को आगे बढ़ाने की जरूरत पर बल दिया है.

उसने आगाह किया है कि कंपनियों और बैंकों की बैलेंस-शीट की कमजोरी, आर्थिक सुधारों की धीमी पड़ती रफ्तार और निर्यात में मंदी से उपजीं चुनौतियों से भारत की आर्थिक वृद्धि प्रभावित हो सकती है.

गौरतलब है कि भारत में 1991 में आर्थिक सुधारों की शुरुआत हुई थी. तत्कालीन वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने 24 जुलाई, 1991 को पेश ऐतिहासिक बजट में विदेशी कंपनियों और उत्पादों के लिए घरेलू बाजार खोलने की पहल की थी. आर्थिक सुधारों के तहत विदेशी कंपनियों और ब्रांडों के लिए दरवाजे खोल दिए गए.

बीते 25 साल के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था की तस्वीर ही बदल गई. जो सेंसेक्स 1486.7 के स्तर पर था, आज 27,915 रुपये के स्तर पर आ पहुंचा है. बैंकों की शाखाओं की संख्या 60.220 से बढ़कर 1,02,343 हो गई है. सकल घरेलू उत्पाद जहां 1991 में 1.1 प्रतिशत था, आज 7.6 के स्तर पर है. आईएमएफ ने अनुमान जतलाया है कि चालू वित्त वर्ष में भारत की आर्थिक वृद्धि 7.4 प्रतिशत रहेगी.

यकीनन, इनसे बढ़ती अर्थव्यवस्था का पता चलता है. देश की अर्थव्यवस्था की हालत सुधरने में कच्चे तेल के दामों में गिरावट, सकारात्मक नीतिगत फैसलों और बेहतर आत्मविश्वास से खासी मदद मिली है. लेकिन अर्थव्यवस्था के लिए निराशाजनक पहलू यह है कि वैश्विक आर्थिक संभावनाओं और चुनौतियों के बरक्स भारत में आर्थिक सुधारों के सिलसिले में धीमापन अड़चन बन सकता है.

आर्थिक विकास की रफ्तार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. वि संस्थान ने तीन 9 प्राथमिकताओं को सुधारों का पैमाना बनाया है, उनमें मात्र तीन-नवाचार, पूंजी बाजार विकास व व्यापार उदारीकरण-में भारत का प्रदर्शन संतोषजनक है. विनिर्माण, श्रम, ढांचागत, बैंकिंग, विधि प्रणाली और परिसंपत्ति अधिकार के साथ वित्तीय पुर्नगठन क्षेत्र में सुधारों की रफ्तारी बढ़ानी होगी.



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