सुषमा की दो टूक
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने जिस तरह दो टूक शब्दों में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को जवाब दिया है, उसकी प्रतीक्षा देश को लंबे समय से थी.
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज (फाइल फोटो) |
आतंकवादी बुरहान वानी के मुठभेड़ में मारे जाने के साथ नवाज शरीफ ने जिस तरह अपना रंग दिखाया है, उसके बाद भारत के सामने उनको करारा जवाब देने का ही विकल्प बचा था. पहले सरकार ने विदेश मंत्रालय के अधिकारियों से जवाब दिलवाया, फिर संसद में गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने बयान दिया. किंतु उनसे जितना स्पष्ट संदेश जाना चाहिए था, उसमें कमी रह गई थी.
जब शरीफ ने यह कह दिया कि हमें बस उस दिन का इंतजार है, जब कश्मीर पाकिस्तान का हो जाएगा तो भारत को उनकी भाषा में जवाब देना अपरिहार्य हो गया. प्रधानमंत्री का सीधे सामने आना उचित नहीं होता, इसलिए विदेश मंत्री सामने आई. सुषमा का यह कहना कि उनका यह दिवास्वप्न कयामत तक पूरा नहीं होगा.
वास्तव में कश्मीर को लेकर पाकिस्तान की बदनीयती और बदमाशी के समक्ष भारत का दृढ़संकल्प है. भारत इसे लेकर संकल्पित है कि कश्मीर हमारे भूगोल का अखंड भाग है और इस पर जो नजरें उठाएगा, उसके साथ उसी रूप में पेश आया जाएगा. प्रकारांतर से यह एक चुनौती भी है कि नवाज और पूरा पाकिस्तान जो कर सकता है, कर ले, भारत उसका जवाब देने और आवश्यकता हुई तो अपनी ओर से कार्रवाई करने को तैयार है.
पाकिस्तान इस तैयारी का जो भी अर्थ लगाए. नवाज कश्मीरियों के लिए दुआओं की बात कर रहे थे, जिसके जवाब में सुषमा ने ठीक ही कहा कि पाकिस्तान ने कभी दुआएं नहीं दी, हथियार और आतंकवाद का गहरा दर्द दिया. यह सच है कि पाकिस्तान 1947 से कश्मीर की रट लगाते हुए आज तक कुछ न पा सका.
वह हर प्रकार की साजिशें करके देख चुका है. वि स्तर पर जितनी कूटनीतिक कोशिश वह कर सकता था, कर चुका है. भारत को लहूलुहान करने के लिए आतंकवाद को जितना पाल-पोस कर निर्यात कर सकता था, करता रहा है..लेकिन परिणाम में कश्मीर मिलना तो दूर एक राष्ट्र के रूप में उसकी इज्जत मिट्टी में मिल गई.
दुनिया का कोई प्रमुख देश उसकी बात सुनने को तैयार नहीं, वि समुदाय में उसकी विसनीयता खत्म हो चुकी है. हालांकि तब भी भारत ने अपने बयान में कूटनीतिक मर्यादाओं का पालन किया है और नवाज की तरह उदंडतापूर्ण तरीके से अपनी बात नहीं कही, अन्यथा उनके बयान के बाद तो यही कहा जाता कि आइए आर-पार हो जाए.
Tweet |