बेमानी विवाद
इतिहास का आकलन देश-काल और उस दौर के संदभरे का ध्यान रखने की मांग करता है.
बेमानी विवाद |
अगर कल की घटनाओं और उसकी पदावलियों को आज के संदर्भ में देखने की कोशिश की जाएगी तो वह हमें असमंजस, ऊहापोह और अस्पष्टता की ओर ले जाएगी. इससे अंतत: इतिहास और वर्तमान दोनों के बारे में कोई साफ दृष्टि नहीं बन पाएगी.
फिर भविष्य का अनुमान तो और पेचीदा हो सकता है. इसके विपरीत, अगर हम इतिहास की घटनाओं को उसी दौर के संदर्भ में देखें और तब की पदावलियों के अर्थ उसी दौर के हिसाब से लगाएं तो आज उन घटनाओं से सबक भी ले सकते हैं. यह भी जान सकते हैं कि कैसे पदावलियों और शब्दों के अर्थ देश-काल के अनुरूप बदल जाते हैं. इस मायने में दिल्ली विवि.
में इतिहास की पुस्तक में शहीदे आजम भगत सिंह के लिए ‘क्रांतिकारी आतंकवादी’ विशेषण के इस्तेमाल पर उठा विवाद बेमानी है. सरकार को उस किताब को बदल देने या संशोधन करने की पहल से बचना चाहिए था. एक, तो उस दौर में टेररिस्ट शब्द के अर्थ अलग किस्म के थे और औपनिवेशिक गुलामी और शोषण की व्यवस्थाओं के खिलाफ एक खास वैचारिक सक्रियता के लिए जाने जाते थे.
टेररिस्ट शब्द उन क्रांतिकारियों के लिए प्रयुक्त होता था जो व्यवस्था परिवर्तन के लिए हिंसक तरीकों से परहेज नहीं करते थे. इन्हीं संघर्ष से आखिर अहिंसक संघर्ष का तरीका भी निकला, जिसे गांधी ने एक नया रूप दिया. यानी आज आतंक या आतंकवादी से जो अर्थ लिया जाता है, उससे एकदम विपरीत अर्थ पहले था. फर्क यह भी था कि तब के आतंकवाद में आम लोगों को कोई खतरा नहीं होता था, वह सिर्फ शोषकों और शोषण की व्यवस्था के खिलाफ था.
इस मायने में तब के आतंकी तरीके एक वैचारिक अवधारणा के हिस्से थे. ऐसे में उसे आज के संदर्भ में देखना भारी भूल होगी. विवादित किताब कॉलेज के छात्रों के लिए है, जब छात्र विस्तार से चीजें जानना चाहता है. उसे उससे वंचित करना, उसकी बौद्धिक क्षमता को सीमित करने जैसा है. यह भी ध्यान रखना चाहिए कि किताब विपिन चंद्रा व मृदुला मुखर्जी जैसे नामधारी इतिहासकारों ने लिखी है. इसलिए भावनाओं को नहीं, बौद्धिक बहस को आधार बनाना चाहिए. सिर्फ सियासी बढ़त हासिल करना मकसद तो कतई नहीं होना चाहिए.
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