मंतव्यों के परिप्रेक्ष्य
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि उनके पास बड़ी योजनाएं हैं, किसी को डरने की जरूरत नहीं है। उनके फैसले किसी को डराने या नीचा दिखाने के लिए नहीं होते।
मंतव्यों के परिप्रेक्ष्य |
वे देश के विकास के लिए बने हैं, और 10 साल का उनका काम सिर्फ ट्रेलर है, 2047 के लिए अभी बहुत काम बाकी हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने सोमवार को एक न्यूज एजेंसी को दिए विस्तृत साक्षात्कार में तमाम जिज्ञासाओं और प्रश्नों के खुलकर जवाब दिए। बेशक, चुनावी वेला उनके साक्षात्कार से काफी बातें साफ हुई हैं, और मंतव्यों को सही परिप्रेक्ष्य में समझने में मदद मिल सकती है। चुनावी बॉन्ड से लेकर मोदी की गारंटी कहे जाने के पीछे के मंतव्य का भी उन्होंने खुलासा किया।
राम मन्दिर को लेकर होती रही राजनीति में अपनी पार्टी और विपक्षी पार्टियों के बीच आरोप-प्रत्यारोपों पर भी उन्होंने तमाम बातें स्पष्ट कीं। दरअसल, यह चुनाव ऐसा है जहां किसी प्रकार की लहर जैसी कोई बात नहीं है, और मुकाबला सीट दर सीट होना तय है।
चूंकि भाजपा गठबंधन एनडीए दस साल से सत्ता में है, और चुनाव में कोई लहर न रहने से एनडीए सरकार को सत्ताजनित आक्रोश का सामना रहेगा। ऐसे में गफलत फैलाने का मंसूबा सिरे चढ़ाना किसी के लिए भी आसान रहता है। मोदी सरकार ने शुरू से ही फैसले लेने वाली सरकार की छवि बना ली थी। नोटबंदी जैसे फैसले एकाएक लिए गए और भी तमाम फैसलों की लिस्ट गिनाई जा सकती है, जिनसे लगता है कि उन्हें एकाएक लिया गया।
जिस प्रकार कांग्रेसविहीन अवधारणा पेश की गई उससे भी लगने लगा कि सरकार किसी भी फैसले में विपक्ष को विश्वास में लेने में विश्वास नहीं करती। न ही किसी मंच पर जनमानस को किसी भी फैसले के प्रभावों के मद्देनजर तैयार करने की ही कोशिश सरकार की ओर दिखलाई पड़ी। कई बार लगा जैसे सरकार पारदर्शिता से काम नहीं कर रही और एकतंत्रीय व्यवस्था जैसे हालात हुए जा रहे हैं। चुनावी बॉन्ड का अधिकांश हिस्सा सत्ताधारी पार्टी को मिलने से भी एक प्रकार के अविश्वास की स्थिति नजर आने लगी।
अच्छी बात है कि प्रधानमंत्री मोदी ऐसे तमाम सवालों के जवाब को लेकर विस्तार से अपनी बात रखी। महसूस कराया कि काफी कुछ ऐसा है जिसका वस्तुस्थिति से कुछ लेना देना नहीं है। बेशक, प्रधानमंत्री का साक्षात्कार गफलत को परे झटकेगा।
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