पर्यावरण संरक्षण से हो रहे नुकसान की भरपाई करे केंद्र सरकार : हरीश

Last Updated 27 Mar 2015 06:25:17 PM IST

उत्तराखंड मुख्यमंत्री हरीश रावत ने केंद्र सरकार से पर्यावरण संरक्षण के फेर में हो रहे नुकसान की भरपाई करने की मांग की है.


पर्यावरण संरक्षण के नुकसान की भरपाई करे केंद्र (फाइल फोटो)

नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आयोजित नमामि गंगे कार्यक्रम की बैठक के अवसर पर मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि गंगा की सफाई के लिए संपूर्ण निधि पोषण केंद्र को करना चाहिए. प्राकृतिक आपदा से गंगा से जुड़े ढांचागत नुकसान की क्षति की लागत भी केंद्र को वहन करनी चाहिए. गंगा की अविरल धारा का निर्धारण शीघ्रता से होना चाहिए, क्योंकि इसके कई विकास कार्य लंबित पड़े हैं. स्वच्छता के उपाय करते समय केंद्र सरकार स्थानीय लोगों की भावनाओं और राज्य की विधिसम्मत मांगों पर उचित विचार करे.

नदियों के किनारे की सिल्ट हटाने का अधिकार राज्य को दिया जाना चाहिए. उत्तराखंड में जल संचय किए बिना आप गर्मियों एवं जाड़ों में गंगा एवं यमुना का जल स्तर नहीं बढ़ाया जा सकता एवं बिना जल बढ़ाए कोई भी सफाई अभियान नाकाफी होगा.

लोहारी नागपाला (600 मेगावाट), पाला मनेरी (480 मेगावाट) और भैरोंघाटी (381 मेगावाट) को बंद करने व भैरोंघाटी समेत 2944 मेगावाट की 24 जल विद्युत परियोजनाओं को बंद किए जाने से राज्य को हर साल 3581 करोड़ रुपये की की हानि होगी.

उच्चतम न्यायालय के निर्णय एवं गौमुख से उत्तरकाशी इको सेंसिटिव जोन की घोषणा के कारण कुल मिलाकर 4069 मेगावाट की कुल क्षमता की 34 परियोजनाएं त्यागनी पड़ी हैं.

फॉसिल फ्यूल के अभाव में अब उत्तराखंड प्रतिवर्ष 1000 करोड़ की लागत से 800 मेगावाट बिजली का आयात कर रहा है. यदि जल विद्युत उत्पादन क्षमता का पूरा उपयोग कर लिया जाए तो उत्तराखंड हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के समान अतिरिक्त विद्युत उत्पादन वाला राज्य हो जाएगा.

सीएम ने अनुरोध कहा कि गंगा नदी के संरक्षण के लिए राज्य को उपयुक्त प्रतिपूर्ति दी जानी चाहिए. इको सेंसिटिव जोन में 25 मेगावाट से कम क्षमता की पर्यावरण पर कम प्रभाव डालने वाली ऐसी परियोजनाओं को चालू रखने की अनुमति दी जानी चाहिए.

उन्होंने गौमुख से उत्तरकाशी तक 100 किलोमीटर विस्तार से 4197.59 वर्ग किलोमीटर इको सेंसिटिव जोन की अधिसूचना पर फिर से विचार करने की जरूरत बताई.

सीएम ने कहा कि इको सेंसिटिव जोन में प्रतिवर्ष लगभग चार लाख तीर्थयात्री आते हैं और 200 होटल एवं धर्मशालाओं में ठहरते हैं. पर्यावरण के प्रति संवेदनील क्षेत्र के रूप में घोषणा के बाद भी यात्रा में शामिल तीर्थयात्रियों की गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाना कठिन होगा. सीमावर्ती क्षेत्रों में विकास कायरे का निरोध भारत के सामरिक हित में नहीं हो सकता है.

सीमावर्ती क्षेत्रों में स्थानीय आबादी का असंतोष और उनकी आजीविका पर दुष्प्रभाव पड़ना राष्ट्रीय हित में उचित नहीं है.

इसके लिए राज्य सरकार का सुझाव है कि गौमुख से हर्सिल के पास स्थित धराली तक 42 किलोमीटर के क्षेत्र को इको सेंसिाटिव जोन में शामिल किया जाना चाहिए. इको सेंसिटिव जोन की सीमा भागीरथी नदी के उच्चतम जलस्तर पांच मीटर ऊपर तक होनी चाहिए.

मुख्यमंत्री ने कहा कि वर्तमान में राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण की समस्त परियोजनाओं के लिए केंद्र एवं राज्य के वित्त पोषण का अनुपात 70:30 है. पर्वतीय राज्य होने से प्रदेश में निर्माण की लागत अधिक है. अत: गंगा एक्शन प्लान के प्रथम चरण की तरह राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण की समस्त परियोजनाओं की लागत का 100 प्रतिशत खर्च केंद्र को वहन करना चाहिए.

राज्य में शहरी स्थानीय निकाय पर्याप्त वित्तीय संसाधन उत्पन्न करने में सक्षम नहीं है. ऐंसे में नदियों में प्रदूषण नियंतण्रके लिए बनायी गई परिसंपत्तियों के संचालन और रख-रखाव के लिए पांच वर्ष की वर्तमान व्यवस्था के स्थान पर 15 वर्ष के लिए केन्द्र का अनुदान मिलना चाहिए. प्राकृतिक आपदा से प्रभावित सभी परियोजनाओं की मरम्मत एवं पुर्नस्थापना के लिए भी राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण से वित्त पोषण किया होना चाहिए.

एनजीआरबीए में लिये गये निर्णय का उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य पर दूरगामी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जिस के पास पहले से ही संसाधनों की कमी है. अत: पारिस्थितिक रूप से
संवेदनशील घोषित किये जाने, ऊर्जा परियोजनाओं को प्रतिबन्धित किये जाने और के मानक लागू करने से पहले स्थानीय आबादी के आजीविका के मसलों और विकास की आवयकताओं को ध्यान में रखा जाए.



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