उत्तराखंड के जर्जर स्कूल में जान हथेली पर रखकर ले रहे हैं ज्ञान
Last Updated 28 Feb 2015 12:25:03 PM IST
उत्तराखंड के एक सरकारी स्कूलों की स्थिति इतनी बदहाल है कि वहां महज दो कमरे हैं जिसमें एक कमरे में पांचवीं तक सभी छात्र है तो दूसरे कमरे में मिड-डे मील का राशन रखा है.
बदहाल है उत्तराखंड के सरकारी स्कूलों की स्थिति (फाइल फोटो) |
उत्तरकाशी जिले के बड़कोट तहसील के प्राथमिक स्कूल पुजली के बदहाल और जर्जर स्कूल भवन के इस कमरे में छात्र-छात्राएं जान हथेली पर रखकर शिक्षा हासिल कर रहे हैं.
इसी तरह से गढ़वाल मंडल के अन्य जिलों में शिक्षा और शिक्षा व्यवस्था बदहाल है. इसी तरह से कई स्कूलों में आज भी अनुसूचित जाति के छात्र-छात्राओं के साथ शिक्षक भी भेदभाव करते हैं.
जौनसार के कई स्कूलों में छात्रों को हिंदी नहीं आती तो शिक्षक जौनसारी नहीं बोल पाते हैं. ऐसे में शिक्षा रामभरोसे चल रही है.
यह खुलासा उत्तराखंड बाल अधिकार संरक्षण आयोग और गढ़वाल विश्वविद्यालय द्वारा संयुक्त रूप से किये गये सर्वे में हुआ है. इस सर्वे को गढ़वाल मंडल के 70 स्कूलों में किया गया. गढ़वाल विश्वविद्यालय के 42 छात्रों ने गढ़वाल मंडल के दुरस्त ब्लॉकों के 70 स्कूलों में वर्तमान स्थति का अध्ययन किया.
अध्ययन कर वापस लौटे छात्रों ने अपने जो अनुभव साझा किये. सर्वे करने वाले छात्रों ने बताया कि कई स्कूलों में शिक्षक हैं, मगर छात्र गायब हैं.
स्कूल भवनों के शौचालयों को ग्रामीण प्रयोग में ला रहे हैं. कई स्कूलों में छात्राओं के लिए अगल से शौचालय तो दूर की बात स्कूलों में शौचालय ही नहीं हैं. बैठने के लिए बेंच तो दुर की बात दर्रियां भी नही है. कड़ाके की ठंड में बच्चे जमीन में बैठने के लिए मजबूर हैं.
मिड डे मील बनाने के लिए स्कूली समय में छात्राओं से लकड़ी मंगाई जाती है. चमोली जिले के विकास खंड घाट के लांखी एवं भेटी गांव के प्राथमिक विद्यालय भितरेली गांव के बच्चे जर्जर भवनों में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं.
बच्चे कोसों पैदल चलकर स्कूल पहुंचते हैं, मगर स्कूल में शिक्षक नहीं हैं. सर्वे करने वाले छात्रों ने बताया कि कई विद्यालयों में बच्चों के साथ भेदभाव किया जाता है.
देहरादून के कालसी के अधिकांश विद्यालयों में शिक्षक और बच्चे एक दूसरी की भाषा तक नहीं समझ पाते हैं. इससे छात्रों और शिक्षकों को दिक्कत का सामना करना पड़ता है.
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