उत्तराखंड में गंगा की पवित्रता के स्रोतों की खोज शुरू

Last Updated 29 Jan 2015 12:04:10 PM IST

देश में गंगा की पवित्रता की खोज शुरू हो गई है. केंद्र सरकार के तीन शोध संस्थानों को यह बीड़ा सौंपा गया है.




गंगा की पवित्रता के स्रोतों की खोज

इन तीनों संस्थानों के वैज्ञानिक यह पता लगाएगें कि आखिर गंगा नदी के जल में कौन-कौन से ऐसे तत्व मिलते हैं कि वह बरसों तक खराब नहीं होता.

केंद्रीय जल संसाधन नदी विकास एवं गंगा पुनरोद्धार मंत्रालय ने नागपुर स्थित नेशनल एन्वायरमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीटय़ूट (नीरी), भारतीय विज्ञान एंव प्रौद्योगिकी अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की दो प्रयोगशालाओं यानी लखनऊ स्थित सेंट्रल इंस्टीटय़ूट फॉर मेडिसनल एंड ऐरोमेटिक प्लांट्स और चंडीगढ़ स्थित इंस्टीटय़ूट ऑफ माइक्रोबायल टेक्नोलॉजी को गंगा जल की विशेषताएं चिह्नित करने का काम सौंपा है.

गंगा के पतित पावनी गुणों का पता लगाने के लिए वैज्ञानिक गंगोत्री से लेकर पश्चिमी बंगाल में गंगा सागर तक कम से कम 20 जगहों से पानी के नमूने एकत्र करके उनका रासायनिक व भौतिक वैज्ञानिक परीक्षण करेंगे. उसमें मौजूद कार्बनिक अकार्बनिक पदार्थो के साथ ही ऐसे जीवाणुओं की भी खोज करेंगे जो कि गंगा के जल को सड़ने से रोकते हैं.

बता दें कि केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने पिछले साल 16 सितंबर को देहरादून में भारतीय व अनुसंधान संस्थान और वाडिया इंस्टीटय़ूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों से इस परियोजना के बाबत विस्तार से विचार विमर्श किया था.

बहरहाल अध्ययन में शामिल सेंट्रल इंस्टीटय़ूट फॉर मेडिसनल एंड ऐरोमेटिक प्लांट्स (सीमैप) के निदेशक डॉ. अनिल त्रिपाठी का कहना है कि इस परीक्षण के यह साबित होगा कि गंगा नदी के जल में औषधीय गुण हैं या नहीं.

पिछले साल अक्टूबर में ही नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के तहत केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने नीरी के नेतृत्व में अध्ययन को मंजूरी दी थी. तीन साल पहले नीरी के वैज्ञानिकों ने ऋषिकेश के पास गंगा जल के नमूनों का परीक्षण किया था और पाया था कि गंगा जल में बैक्टीरिया रोधी गुण हैं. अब नीरी इस अध्ययन को पूरी नदी में करेगा.

इस अध्ययन से यह भी पता चल सकेगा कि ऋषिकेश और हरिद्वार के बाद गंगा नदी के जल के गुणों में क्या तब्दीली आती है. यह भी संभव है कि पहाड़ी क्षेत्रों में गंगा के जल में कुछ विशेष तत्व मिलते हों जो कि नीचे आते-आते और घुल जाते हों. 15 महीने के इस अध्ययन में करीब पांच करोड़ रुपये का खर्च आएगा.

कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि गंगा के उद्गम क्षेत्र खासकर उत्तराखंड में नदी के किनारे बहुत से औषधीय पौधे होते हैं, संभव है कि इन वनस्पतियों की जड़ों से औषधीय गुणों वाला पानी नदी में मिलता हो.

वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर गंगा जल में किसी औषधीय तत्व का पता चलता है तो इसकी मदद से गंगा के किनारे स्थित ऐसे औषधीय पौधों को चिह्नित करने में मदद मिलेगा.

हालांकि ऐसे किसी खास पौधे को चिह्नित करना आसान नहीं होगा. सीमैप के अलावा चंडीगढ़ स्थित इंस्टीटय़ूट ऑफ माइक्रोबायल टेक्नोलॉजी ऐसे विषाणुओं को खोजेगा जो बैक्टीरिया को खत्म कर सकते हैं

इस तरह शोध 1890 में ब्रिटिश वैज्ञानिक अन्स्र्ट हैंकिन ने किया था । उनका कहना था कि गंगा के जल में कुछ ऐसे तत्व मौजूद हैं जो बैक्टीरिया को मार देते हैं.

अरविंद शेखर
एसएनबी


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