एशिया के सबसे बड़े अफीम प्लांट की सख्त की गई सुरक्षा

Last Updated 23 Aug 2015 02:42:31 PM IST

एशिया के सबसे बड़े ‘ओपियम एंड अल्कलॉइड प्लांट’ की सुरक्षा को अब और कड़ा कर दिया गया है.




अफीम प्लांट की सख्त की गई सुरक्षा (फाइल फोटो)

प्लांट में अफीम के भारी भंडारण (स्टॉक) के मद्देनजर चप्पे-चप्पे पर क्लोज सर्किट टेलीविजन कैमरों (सीसीटीवी) की नजर है.

प्लांट की सुरक्षा का दायित्व केन्द्रीय औद्यौगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) का है और इस अफीम कारखाने के अंदर और चारों तरफ दूर-दूर तक इन सीसीटीवी कैमरों के माध्यम से सीआईएसएफ के जवान नजर रखते हैं. इस प्लांट में हाल ही कुल पचास सीसीटीवी कैमरे लगाकर इसकी सुरक्षा को ‘हाईटेक’ कर दिया गया है.

मध्य प्रदेश के नीमच का ‘ओपियम एंड अल्कलॉइड प्लांट’ एशिया का सबसे बड़ा अफीम कारखाना है, जहां अफीम का प्रसंस्करण (प्रोसेसिंग) कर जीवन रक्षक दवाओं के लिए ‘कोडीन फास्फेट’ और ‘मार्फिन’ बनाई जाती है. पूरे देश में उत्पादित अफीम का भंडारण और उसकी ‘ग्रेडिंग’ का काम भी यहीं होता है.

प्लांट के नए महाप्रबंधक हरिनारायण मीणा ने कहा, ‘अभी मध्यप्रदेश और राजस्थान के 25 हजार अफीम उत्पादक किसानों की फसल ‘ग्रेडिंग’ के लिए यहां रखी हुई है, जिसकी वजह से यह प्लांट ‘निषिद्ध क्षेत्र ’ है. प्लांट की सुरक्षा के लिए सीआईएसएफ के लगभग 100 जवान और अधिकारी यहां तैनात हैं.

सुरक्षा के इंतजामों को सीसीटीवी कैमरों के जरिए ‘हाईटेक’ बनाने वाले मीणा ने कहा, ‘प्लांट में वर्ल्ड क्लास कंपनी के 50 सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं, जिसमे 32 कैमरे प्लांट की प्रयोगशाला में लगाए गए हैं, जहां अफीम की ग्रेडिंग और फिर उसके उप उत्पाद (बॉय प्रोडक्ट) बनाने का काम होता है.

उन्होंने कहा कि यह प्रयोगशाला ‘नारकोटिक ड्रग्स एण्ड सॉयकोट्रोपिक सबस्टेंसेस’ (एनडीपीएस) एक्ट’ के कड़े प्रावधानों के तहत चलती है। इसमें काम करने वाले कर्मचारियों की जांच और तलाशी तो हर रोज होती ही है, लेकिन अब हमने इसके चप्पे-चप्पे पर कैमरे लगा कर इसको और पुख्ता कर दिया है.

मीणा ने यह भी बताया की प्लांट परिसर में लगभग 28 कैमरे लगाए गए हैं, जिससे परिसर और उसके बाहर दूर-दूर तक सीआईएसएफ नजर रखती है.

गौरतलब है कि यह प्लांट राजस्थान की सीमा से लगे मध्यप्रदेश के नीमच में स्थित है और दोनों राज्यों का यह सीमावर्ती इलाका ड्रग और अफीम माफिया का गढ़ है. ऐसे में इस इलाके में बदमाश सोना-चांदी लूटने की जगह गांव से अफीम और डोडाचूरा लूटना पसंद करते हैं, क्योकि इनके दाम सोने से भी ज्यादा हैं.

एशिया के इस सबसे बड़े अफीम प्रोसेसिंग प्लांट में हर साल करीब 800 से 1000 टन अफीम का स्टॉक रहता है. मीणा ने बताया कि किसानों की अफीम के ग्रेडेशन की भी वीडियो रिकॉडिंग कराई जा रही है और किसान की अफीम कंटेनर में से निकालने से लेकर उसकी ग्रेडिंग होने तक पूरी कार्रवाही कैमरों में कैद होती है. ग्रेडिंग के नतीजे पारदर्शिता बरतने के लिए अब ऑनलाइन भी डाले जा रहे हैं.

गौरतलब है कि इस प्लांट में पूर्व में अफीम के ग्रेडेशन के नाम पर घूसखोरी और लेनदेन की बातें आम होती रही हैं और प्रयोगशाला में तैनात कर्मचारियों पर किसानोें द्वारा रिश्वत लेकर अफीम की ग्रेडेशन बदलने का आरोप लगाया जाता रहा है. अच्छी गुणवत्ता की अफीम को खराब और खराब को अच्छा दिखाने के मामले में प्लांट प्रबंधन के खिलाफ कई बार किसान, आंदोलन कर चुके हैं, लेकिन इस बार बरती जा रही पारदर्शिता से किसान संतुष्ट हैं.

अफीम उत्पादक किसान रामप्रसाद धनगर कहते हैं, ‘यूं तो हर साल दलाल गांवों में घूमते दिखते थे, लेकिन इस बार हो रही सख्ती और पारदर्शिता से किसान खुश हैं. उनको भरोसा है कि ग्रेडिंग जांच का काम सही और उचित प्रक्रिया के तहत ही होगा.’

मीणा ने कहा, ‘प्लांट अब तक करीब 13 हजार किसानों के अफीम की ग्रेडिंग कर चुका है. किसी भी अफीम काश्तकार को किसी प्रकार की कोई शिकायत मिलती है तो वह तुरंत मुझसे संपर्क कर सकता है, हम कार्रवाई करेंगे.’



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