VIDEO : New Born baby को दिया जा सकता कोई भी ब्लड ग्रुप
माता-पिता को अब इधर-उधर नही पड़ेगा भटकना. नवजात शिशुओं में होने वाली पीलिया का इलाज ढूँढने में पा ली गई है सफलता.
New Born baby को दिया जा सकता कोई भी ब्लड ग्रुप |
विज्ञान ने एक फिर से खुद को चिकित्सा की दुनिया में सक्षम साबित किया है. नवजात शिशुओं में होने वाली पीलिया की बीमारी से अक्सर कई शिशुओं की मृत्यू हो जाती है और इलाज के लिए माता-पिता को इधर उधर भटकना पडता है.
परन्तु अब एक खोज के मुताबिक इस बीमारी का पूर्णतः इलाज संभव है.
मध्य प्रदेश के ग्वालियर में जीआर मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर डॉ. डीसी शर्मा ने इस बीमारी का इलाज ढूँढने में सफलता पा ली है. जन्म लेने के पश्चात बच्चों में पीलिया के लक्षण देखे जाते हैं.
प्रोफेसर ने बताया कि अधिकतर ऐसी स्थिति उस समय उत्पन्न होती है जब शिशु और माँ का ब्लड ग्रुप असमान होता हैं. इलाज के तौर पर शिशु का ब्लड बदलकर उसे जीवन देने की कोशिश की जाती है. इस प्रक्रिया के दौरान समान और असमान ब्लड ग्रुप का खून बच्चे को चढाया जाता है.
लेकिन डाक्टरों का मानना है कि ये तरीका सौ फीसदी कारगर साबित नहीं होता है. बच्चों को होने वाली यह समस्या ह्यूमेलिटी डिसीजिस ऑफ न्यू बार्न कहलाती है.
नवजात को पीलिया होने का मुख्य कारण लाल रक्त कोशिकाओं का टूटना है जिसके पश्चात बिलीरूबीन बनना शुरू होता है. इस बिलीरूबीन को बच्चे का लीवर पूरी तरह बाहर नहीं निकाल पाता और ये वही जम जाता है. इसके बाद से ही बच्चे को परेशानी होने लगती है.
डॉ. डीसी शर्मा का कहना है कि इस तकनीक के इस्तेमाल से 500 बच्चों का इलाज किया जा चुका है. उन्होंने O ब्लड ग्रुप के सेल को AB प्लाज्मा में मिलाकर एक्सचेंज ट्राँसफ्यूजन वायरी कॉनस्टीटयूट ब्लड बनाया है. अपने इन्हीं प्रयासों के लिए ये ओपन जनरल्स ऑफ ब्लड डीसी द्वारा बेस्ट पेपर अवॉर्ड से भी सम्मानित हो चुके हैं. इलाज सम्भव होने से पीडित बच्चों के माता पिता बहुत खुश हैं.
शोध से जीआर मेडिकल कॉलेज की टीम उत्साहित है,साथ ही कॉलेज का मानना है कि इस तरह के प्रयोग के लिए एथिकल कमेटी से मान्यता लेनी पडती है. अगर इस तकनीक को अग्रसर करने की मान्यता मिल जाती है तो यह तकनीक बहुत बेहतर है. इससे आये दिन मरने वाले शिशुओं की संख्या में कमी की जा सकती है.
खून की खोज - देखें वीडियो
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