नक्सल प्रभावित इलाकों में आदिवासियों से जुड़ने के लिए सीआरपीएफ कर रहा फिल्मों का प्रदर्शन

Last Updated 24 Oct 2014 03:32:25 PM IST

छत्तीसगढ़ के सबसे ज्यादा नक्सल प्रभावित सुकमा जिले में आदिवासियों से जुड़ने के लिए केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) ने एक नई पहल की है.




(फाइल फोटो)

इसके तहत बॉलीवुड की फिल्मों का प्रदर्शन किया जा रहा है. उनका मानना है कि इससे इन लोगों को मुख्यधारा में लाने में मदद मिलेगी.

सुकमा के जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर दक्षिण बस्तर के घने जंगलों में बसे केरलापल गांव में इस पहल के अंतगर्त सीआरपीएफ ने 22 अक्टूबर की रात को सलमान खान की ‘किक’ का प्रदर्शन किया.

केरलापल गांव के सरपंच जोगा ने कहा, ‘‘यह पहला मौका था जब ग्रामवासियों ने फिल्म के जरिए हवाईजहाज, रेल और बड़ी इमारतों को देखा. हमें उम्मीद है कि निकट भविष्य में हमारे बच्चे इन्हें हकीकत के रूप में देखेंगे.’’

सीआरपीएफ की दूसरी बटालियन के कमांडेंट वीवीएन प्रसन्ना ने कहा, ‘‘दुनिया में क्या चल रहा है इस बारे में लोगों को बताने का एक बढ़िया माध्यम फिल्में हैं. इस पहल का मकसद आदिवासियों का दुनिया के दूसरे पक्ष से परिचय कराना है जिस तक माओवादी गतिविधियों के चलते इन लोगों की पहुंच नहीं हो पाती है.’’

उन्होंने कहा कि इससे इन सभी को मुख्यधारा से जोड़ने में भी मदद मिलेगी.

प्रसन्ना का मानना है कि इससे नक्सलियों से जूझ रहे सीआरपीएफ और आदिवासियों के बीच रिश्तों को बेहतर बनाने में भी मदद मिलेगी.

उन्होंने बताया कि उनकी सुकमा के अंदरूनी गांवों में हर हफ्ते इस तरह के आयोजन की योजना है.

उन्होंने बताया कि हालांकि इस पहल की शुरूआत किक जैसी फिल्म से की गई है लेकिन भविष्य में ऐसी फिल्में दिखाई जाएंगी जो राष्ट्रीय एकता, देशभक्ति और प्रेरक मुद्दों पर आधारित होंगी. उन्होंने बताया कि इनमें मैरीकाम, चक दे इंडिया और भाग मिल्खा भाग जैसी फिल्में भी होंगी.

प्रसन्ना ने कहा कि बच्चों की पसंद का ख्याल रखते हुए महाभारत, रामायण जैसी एनिमेटेड फिल्मों का प्रदर्शन भी किया जाएगा.

गांव वालों ने भी सुरक्षाकर्मियों की इस पहल की प्रशंसा की है.

जोगा ने कहा, ‘‘हालांकि ग्रामवासियों की बेहतरी के लिए सुरक्षा बल समय-समय पर कई कार्यक्रम आयोजित करते रहते हैं लेकिन यह थोड़ा अलग है और सबसे बड़ी बात यह कि मनोरंजक भी है.’’

उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि भविष्य में और फिल्में दिखाई जाएंगी. इनसे अन्य समाजों के लोगों की परंपराओं, भाषा और रहन-सहन को समझने में मदद मिलती है.
 



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