छत्तीसगढ़ : दोनों ले रहे हैं अटल का नाम
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी पूर्व भाजपा सांसद करुणा शुक्ला बिलासपुर सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं.
करुणा शुक्ला (कांग्रेस) एवं लखन साहू (भाजपा) (फाइल फोटो) |
प्रशासनिक दृष्टि से यह राज्य का दूसरा सबसे प्रमुख शहर है. इस नाते अरपा नदी के पश्चिम में स्थित बिलासपुर पर सबकी नजरें हैं.
नवम्बर में करुणा ने भाजपा के साथ अपना करीब तीन दशक पुराना संबंध समाप्त करके कांग्रेस का दामन थाम लिया था और अब वह इस मुद्दे के साथ मतदाताओं से रूबरू हैं कि भाजपा में अटल युग का समापन हो चुका है. अब वह जीवनपर्यत कांग्रेस संगठन को मजबूत करने का प्रयास करेंगी.
बड़ा विचित्र है कि दोनों पार्टयिों के उम्मीदवार अटल का नाम जप कर वोट मांग रहे हैं. करुणा की तक़रीर में अटलजी का जिक्र जरूर होता है जबकि भाजपा के प्रचार में भी अटलजी के होर्डिंग्स लगे हैं. करु णा की तरफ से भाजपा के समर्थन में दीवार पर नारा लिख दिये जाने की शिकायत चुनाव आयोग तक पहुंची है.
उनके खिलाफ लखन साहू भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. लखन साहू स्वयं भाजपा के दिग्गज नेता स्व. निरंजन केशरवानी के बेटे के खिलाफ जिला पंचायत चुनाव लड़ चुके हैं. कांग्रेस में करु णा के बाहरी होने का मुद्दा है तो लखन साहू डमी प्रत्याशी थे जिनके बारे में कहा जाता है कि बड़े नेताओं को परे कर उनको टिकट दिया गया क्योंकि उनका ज्यादा रसूख नहीं माना जाता और दिग्गजों के झगड़े में उनकी लाटरी लग गयी.
करुणा को कांग्रेस से भी अंदरूनी चुनौती मिल रही है. उनका नाम प्रदेश के स्टार प्रचारकों की सूची में हैं लेकिन अपने निर्वाचन क्षेत्र में फंसे होने की वजह से वह दूसरी लोकसभा में प्रचार करने नहीं जा सकी हैं. यहां पार्टी दो खेमों में बंटी है. एक अजीत जोगी समर्थक और दूसरा उनका विरोधी. कार्यकर्ता करुणा को छोड़ जोगी का प्रचार करने महासमुंद चले गए हैं.
करु णा अटलजी के बड़े भाई की बेटी हैं. उन्होंने कहा कि बिलासपुर में 18 वष्रो से कांग्रेस का सांसद नहीं बना है, इसलिए यहां की आवाज दिल्ली तक नहीं गूंज सकी है. शुक्ला ने कहा कि सत्ता के दबाव से संगठन का नुकसान होना तय है और यह भाजपा के साथ हो रहा है.
जब-जब संगठन पर सत्ता पक्ष हावी होता है, तब तब संगठन को नुकसान होना तय है और भाजपा के साथ यह हो रहा है. उन्होंने कहा कि भाजपा में रहने के दौरान उन्होंने इसका विरोध किया, अब वह स्वतंत्र हैं और उन्हें बहुत कुछ करना है. भाजपा में रहते हुए उनके मान-सम्मान को काफी ठेस पहुंची. इसलिए उन्होंने पार्टी छोड़ दी. राज्य निर्माण के बाद वह पांच कमेटी में शामिल थीं मगर चुनाव के दौरान उन्हें अचानक कमेटियों से हटा दिया गया जिससे उनके स्वाभिमान को ठेस पहुंची थी.
करुणा शुक्ला के अनुसार वह मायके से ससुराल आ गई हैं. अटल बिहारी बाजपेयी उनके चाचा हैं. इसलिए भाजपा उनका घर था. शादी के बाद वह शुक्ल परिवार में आई जो कांग्रेस से जुड़ा है. इसलिए कांग्रेस प्रवेश के बाद वह अपनी ससुराल आ गई हैं. भाजपा में अब अटल बिहारी वाजपेयी और एलके आडवाणी का युग खत्म हो चुका है. भाजपा अब नरेंद्र मोदी, राजनाथ सिंह और कुछ अन्य विशेष लोगों के समूह द्वारा संचालित होती है. शुक्ला का भाजपा से 32 साल पुराना नाता था. उन्होंने कहा कि पार्टी छोड़ना उनके लिए बहुत ही कष्टकारी निर्णय था. पार्टी में उन्होंने वार्ड स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक काम किया था.
केंद्रीय राज्यमंत्री डा. चरणदास महंत के खिलाफ करु णा ने पिछला चुनाव लड़ा था. वह ही उनको कांग्रेस में लेकर आए. 63 वर्षीय करुणा शुक्ला पहली बार 1993 में भाजपा विधायक चुनी गयी थीं. करु णा ने छत्तीसगढ़ के जांजगीर संसदीय क्षेत्र का भी प्रतिनिधित्व किया मगर महंत के मुकाबले वह पिछला चुनाव कोरबा से हार गयी थीं.
दिलचस्प है कि चुनाव मैदान में पांच लखन साहू चुनाव मैदान में हैं. नवम्बर, 2013 के विधानसभा चुनाव में बिलासपुर विधानसभा क्षेत्र में भाजपा ने कीर्तिमान बनाया था. यहां से स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल लगातार चौथी बार विधायक बने. रिकॉर्ड वोटों से जीतने का कीर्तिमान उनके नाम रहा. 2009 के लोकसभा चुनाव में भी यहां के मतदाताओं ने भाजपा के प्रत्याशी दिलीप सिंह जूदेव को चुना था जो दिवंगत हो चुके हैं. 17 लाख मतदाता वाले बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र में भाजपा का वर्चस्व रहा है मगर अगला वर्चस्व किसका होगा, यह आगामी 24 अप्रैल को मतदान के बाद तय होगा.
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