अगर मुझे मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया जाता तो नतीजे अलग होते: शत्रुघ्न
भाजपा नेतृत्व से नाराज माने जा रहे पार्टी सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने दावा किया कि अगर उनकी पार्टी बिहार में मुख्यमंत्री पद के दावेदार के तौर पर उन्हें पेश करती तो परिणाम अलग हो सकते थे.
शत्रुघ्न सिन्हा |
एक चैनल के कार्यक्रम में भाजपा सांसद और अभिनेता सिन्हा ने कहा, ‘‘मैं शेखी नहीं बघार रहा, लेकिन मुझे लगता है कि जब बिहारी जनता के लाड़ले, धरतीपुत्र और मूल रूप से बिहारी बाबू को जानबूझकर दरकिनार कर दिया गया तो निश्चित रूप से मेरे समर्थकों और प्रशंसकों पर असर पड़ा.’’
उन्होंने कहा, ‘‘मैं यह नहीं बता सकता कि कितना फर्क पड़ता लेकिन यह निश्चित रूप से कह सकता हूं कि अंतर तो आता. हमें निश्चित रूप से और अधिक सीटें मिल सकती थीं.’’
केंद्र में मंत्री नहीं बनाये जाने से किसी तरह की अप्रसन्नता के सवाल पर सिन्हा ने कहा, ‘‘ये सारी बातें बेकार हैं जिन्हें कुछ निहित स्वार्थ वाले लोगों ने शुरू किया. कुछ लोग कई सारे पद हासिल करने के बाद यह कहने लगे कि मैं इसलिए नाखुश हूं कि मुझे मंत्री नहीं बनाया गया.’’
उन्होंने कहा, ‘‘मंत्री बनने पर आपके सोने के पंख नहीं लग जाते लेकिन हां जब मुझे मंत्री नहीं बनाया गया तो मेरे प्रशंसकों, समर्थकों, रिश्तेदारों, दोस्तों और मेरे मतदाताओं ने सोचना शुरू कर दिया कि मुझे मंत्री क्यों नहीं बनाया गया. मेरा पाप क्या था? क्या स्वास्थ्य मंत्री के तौर पर मेरा कामकाज अच्छा नहीं रहा या मैंने जहाजरानी मंत्रालय में अच्छा काम नहीं किया.’’
सिन्हा ने कहा, ‘‘मैं जानता हूं और उन्हें यह कहते हुए सांत्वना देता हूं कि मंत्री चुनने का अधिकार प्रधानमंत्री का है. मैं उनके निर्णय को चुनौती नहीं दे रहा लेकिन मैं अपने लोगों को यह ढांढस भी देता हूं अगर आज नहीं तो कल.’’
बिहार चुनावों के दौरान पोस्टरों और बैनरों में अपना नाम नहीं होने के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘‘कई बार लोगों को लगता है कि मुझे किसी खास वजह से जानबूझकर दरकिनार किया गया. इस पर मैं ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा.’’
पटना साहिब के सांसद ने प्रधानमंत्री को पार्टी का एक मात्र प्रचारक बनाये जाने से भी इत्तफाक नहीं जताया लेकिन यह भी कहा कि अगर उन्होंने प्रचार नहीं किया होता तो भाजपा इतनी भी सीटें नहीं जीत पाती जितनी उसने जीती है.
उन्होंने कहा, ‘‘क्या यह सही तरीका है. क्या हम प्रधानमंत्री का बोझ कम नहीं कर सकते थे.’’
बिहार में चुनाव प्रचार के लिए बाहरी नेताओं को जिम्मेदारी सौंपने पर उन्होंने कहा कि पंजाब, महाराष्ट्र और दिल्ली से नेताओं को लाया गया था जो जमीनी कार्यकर्ताओं और जमीनी हकीकत से पूरी तरह कटे हुए थे और यहां के जातीय समीकरणों को नहीं समझ सके.
सिन्हा ने कहा, ‘‘ये लोग यहां महीनों तक रुके रहे, इतना धन, प्रतिभा और ऊर्जा खर्च हो गयी और नतीजा क्या निकला. हमने दिल्ली में मिली हार से सबक नहीं लिया. हम बुरी तरह हार गये और इससे मुझे दुख हुआ.’’
Tweet |