अस्तित्व के संकट ने मिलाया था नीतीश-लालू को

Last Updated 09 Nov 2015 12:54:25 PM IST

लालटेन पर सवार होकर तीर ने बिहार में कमल को बेहाल कर दिया. 2014 में कमल का फूल कुछ इस कद्र खिला कि न तीर की धार ही बची थी न ही लालटेन में रोशनी.


नीतीश-लालू (फाइल)

दरअसल अस्तित्व के संकट ने लालू और नीतीश को मिलने को मजबूर कर दिया था और जिसका फायदा आज उन्हें मिला और उनके सहारे कांग्रेस की बैतरणी भी पार लग गई.

पिछले साल लोकसभा चुनाव में मोदी की हवा के सामने कोई नहीं टिक पाया. लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा को 121 विधानसभा सीटों कर जीत मिली थी, जबकि लालू को मात्र 32 और नीतीश को मात्र 18 सीटें ही मिलीं थीं, जबकि वोट प्रतिशत नीतीश और लालू का कम नहीं था, लेकिन दोनों के वोट बैंक आपस में बंट गए थे.

इस बार लालू और नीतीश ने फिर से एक मंच पर आने का फैसला किया और आज परिणाम उनके पक्ष में है. जिस वक्त ये दोनों नेता मिल रहे थे तब नीतीश की आलोचना हुई थी कि नीतीश कुमार ने जंगल राज के खिलाफ चुनाव जीता और अब जंगलराज करने वाले के साथ ही मिल गए, लेकिन नीतीश ने परवाह नहीं की.

लालू प्रसाद का परम्परागत यादव और मुसलमान (एमवाई) वोट इस बार एकजुट हो गया, जबकि नीतीश कुमार का कुर्मी, कुशवाहा, निषाद वोट उनके पीछे रहा.

इसके साथ ही महिलाओं और युवाओं ने भारी संख्या में नीतीश कुमार को समर्थन दिया. नीतीश ने अपने 10 साल के कार्यकाल में बिहार की तस्वीर सुधारने की कोशिश की और कानून-व्यवस्था को भी पटरी पर लाने का प्रयास किया. उन्होंने बिहार की महिलाओं को स्कूल जाती बच्चियों के लिए अनेक योजनाएं बनायी.

बेरोजगारों के लिए भी वह कोई न कोई योजना बनाते रहते थे. इस बार के चुनाव में नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री का दावेदार घोषित किया गया था जबकि उनके खिलाफ मुख्यमंत्री के तौर पर कोई नहीं था, इसका भी उन्हें फायदा मिला.

भाजपा ने शुरुआत में विकास की बात की लेकिन मुद्दों का जिक्र नहीं किया और बात में चुनाव पूरी तरह से जातीय और सांप्रदायिक समीकरणों के इर्द गिर्द घूमने लगा.

भाजपा ने खासकर नरेंद्र मोदी ने नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव पर व्यक्तिगत टिप्पणियां की जो एक प्रधानमंत्री पद वाले व्यक्ति को बोलना उचित नहीं लगते थे. भाजपा ने अपनी रणनीति पूरी तरह से मोदी के इर्द-गिर्द बनाई और अपने स्थानीय नेताओं को तवज्जों नहीं दिया जिसके कारण स्थानीय लोग उभर नहीं सके.

दिल्ली में बैठे भाजपा नेता बिहार की जातीय समीकरणों में भी नहीं समझ पाए. आज भले ही महागठबंधन की सरकार बनने जा रही है लेकिन लालू प्रसाद यादव की ज्यादा सीटें आने से महागठबंधन सुगमता से काम करेगा इसमें संदेह हैं. लालू प्रसाद यादव की तरफ से देर सबेर नीतीश कुमार के लिए परेशानी खड़ी होगी.
 

कुणाल


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