प्लास्टिक की बोतलों, कपों से बने डीजल से दौड़ेगी रेलगाड़ी

Last Updated 02 Jun 2015 01:41:19 PM IST

वह दिन दूर नहीं जब रेलवे स्टेशनों पर फेंकी गयी प्लास्टिक की बोतलों, कपों से डीजल बनने लगेगा और उससे डीजल इंजन चलने लगेंगे.




प्लास्टिक से बने डीजल से दौड़ेगी रेलगाड़ी (फाइल फोटो)

वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अुनसंधान केंद्र (सीएसआईआर) के तहत स्थापित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोलियम (आईआईपी), देहरादून के साथ मिलकर रेलवे प्रतिदिन एक टन प्लास्टिक कूड़े से डीजल  बनाने की क्षमता वाला प्लांट लगाने की योजना बना रही है.

प्रायोगिक तौर पर लगाये जाने वाला यह प्लांट यदि आर्थिक रूप से सफल रहा तो इनकी संख्या बढ़ायी भी जा सकती है.

आईआईपी के वरिष्ठ वैज्ञानिक सनत कुमार ने बताया कि इस सिलसिले में तीन बैठकें हो चुकी हैं और आगामी 03 जून को एक और बैठक होने वाली है. उन्होंने कहा कि अभी यह परियोजना बेहद शुरुआती चरण में है और इसकी रूपरेखा पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है, लेकिन संभवत: यह प्लांट दिल्ली, मुंबई या जयपुर में से किसी एक जगह लगाया जा सकता है.

उन्होंने कहा कि स्थान का चयन करते समय यह देखना होगा कि वहां स्टेशन से प्रतिदिन एक टन प्लास्टिक कूड़ा निकलता हो और उत्पादित डीजल का भंडारण और इस्तेमाल की पर्याप्त सुविधा हो.

कुमार ने बताया कि आईआईपी ने ऐसी खास तकनीक विकसित की है जिससे प्लास्टिक से यूरो-4 मानक का डीजल बनाया जा सकता है.

उन्होंने बताया कि डीजल की अच्छी गुणवत्ता के लिए आईआईपी विशेष प्रकार के उत्प्रेरक का इस्तेमाल करता है और यही उसकी खासियत है। उन्होंने बताया कि यह पहली बार है जब संस्थान को इतना बड़ा प्लांट लगाने की जिम्मेदारी मिली है. फिलहाल संस्थान के परिसर में ही 20 किलोग्राम क्षमता का प्लांट लगाया गया है.

उन्होंने बताया कि प्लास्टिक से डीजल बनाने के दौरान उत्पाद के रूप में जो गैस निकलती है उसका इस्तेमाल प्लांट के संचालन की ऊर्जा जरूरतों के लिए कर लिया जाता है.  नियमों के तहत इस तरह से बने डीजल की खुले बाजार में बिक्री नहीं की जा सकती इसलिए इसे बनाने वाला संगठन या कंपनी इसका सिर्फ अपनी जरूरतों के लिए इस्तेमाल कर सकती है.

यही कारण है कि आईआईपी ने परियोजना के लिए रेलवे को चुना है जिसके पास प्लास्टिक कूड़ा भी बड़ी मात्रा में उपलब्ध है और डीजल की खपत भी होती है. उन्होंने बताया कि फिलहाल प्लास्टिक से उत्पादित डीजल पारंपरिक डीजल से महँगा जरूर है, लेकिन प्लास्टिक कूड़े के निपटान पर रेलवे के होने वाले खर्च के मद्देनजर यह परियोजना पर्यावरण के साथ-साथ आर्थिक रूप से भी लाभकारी होगी.



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