बिहार विधानसभा चुनाव से पहले एनडीए में सीट बंटवारे पर खींचतान जारी है। इस बीच राष्ट्रीय लोक जनता पार्टी (RLM) प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा और केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय सुबह दिल्ली पहुंच गए हैं।
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बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के भीतर सीट बंटवारे को लेकर खींचतान जारी है और इसके फॉर्मूले पर नाराजगी जाहिर करते हुए राष्ट्रीय लोक मोर्चा (रालोमो) के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि “नथिंग इज वेल इन एनडीए।” इसी बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने उन्हें दिल्ली बुलाया है।
रालोमा प्रमुख ने बुधवार को पटना स्थित पार्टी कार्यालय में दोपहर साढ़े बारह बजे एक आपात बैठक बुलाने की घोषणा की थी, जिसमें राजग के भीतर पार्टी की भविष्य की भूमिका पर चर्चा की जानी थी। बैठक को अचानक स्थगित कर दिया गया।
कुशवाहा ने सोशल मीडिया ‘एक्स’ पर लिखा, “केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जी के साथ विमर्श के लिए गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय जी और मुझे अभी दिल्ली के लिए जाना है। इसलिए आज पार्टी के साथियों के साथ पटना स्थित कैंप कार्यालय में आयोजित होने वाली बैठक तत्काल स्थगित की गई है।”
राजग की ओर से घोषित सीट बंटवारे के फॉर्मूले में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और जनता दल यूनाइटेड (जद(यू)) को 101-101 सीटें, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को 29 सीटें, जबकि हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) और रालोमो को छह-छह सीटें दी गई हैं।
सूत्रों के अनुसार, रालोमो ने 24 सीटों की मांग की थी और उम्मीद थी कि पार्टी को कम से कम दो अंकों में सीटें मिलेंगी।
फॉर्मूले की घोषणा के बाद कुशवाहा ने सोशल मीडिया पर एक भावनात्मक पोस्ट किया। उन्होंने लिखा कि सीटों की संख्या अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं रही, लेकिन कार्यकर्ता धैर्य बनाए रखें। उन्होंने अपने समर्थकों से क्षमा भी मांगी थी। इस पोस्ट के बाद से ही रालोमो के भीतर असंतोष की चर्चा तेज हो गई थी।
सूत्रों ने बताया कि अमित शाह की पहल का उद्देश्य कुशवाहा को मनाना और राजग को एक बनाए रखना है। संभावना है कि उन्हें कुछ अतिरिक्त सीटों या किसी राजनीतिक पद का प्रस्ताव दिया जा सकता है। बताया जाता है कि महुआ सीट चिराग पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी को देने से कुशवाहा नाराज हैं।
राजनीतिक विश्लेषक अरुण कुमार पांडे का मानना है कि यदि दिल्ली में होने वाली शाह–कुशवाहा की मुलाकात सकारात्मक रही, तो राजग एकजुटता का संदेश दे सकेगा। लेकिन अगर मतभेद कायम रहे, तो इसका असर बिहार चुनाव के समीकरणों पर पड़ सकता है।
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