‘फ्री की घोषणाएं देश को ले जाएंगी गर्त में’
केंद्र सरकार ने चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त उपहार दिए जाने की घोषणाओं की प्रथा के खिलाफ दायर जनहित याचिका का पूर्ण समर्थन करते हुए बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि मुफ्त उपहारों का वितरण देश को निस्संदेह भविष्य की आर्थिक आपदा की राह पर धकेलता है।
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प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ ने बुधवार को केंद्र, नीति आयोग, वित्त आयोग और भारतीय रिजर्व बैंक सहित सभी हितधारकों से चुनावों के दौरान मुफ्त में दिए जाने वाले उपहारों के मुद्दे पर विचार करने और इससे निपटने के लिए ‘रचनात्मक सुझाव’ देने को कहा।
केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, सरकार जनहित याचिका का समर्थन करती है। मेहता ने कहा, इस तरह के लोकलुभावन वादों का मतदाताओं पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इस तरह के मुफ्त उपहारों का वितरण निस्संदेह न केवल भविष्य में आर्थिक आपदा का मार्ग प्रशस्त करता है, बल्कि मतदाता भी अपने मताधिकारों का इस्तेमाल विवेकपूर्ण निर्णय के लिए नहीं कर पाते हैं।
हालांकि आयोग के वकील ने कहा, शीर्ष अदालत के फैसले इस पर बाध्यकारी हैं और इसलिए वह मुफ्त उपहार के मुद्दे पर कार्रवाई नहीं कर सकता है। शीर्ष अदालत ने वकील अश्विनी उपाध्याय की जनहित याचिका की आगे की सुनवाई के लिए बृहस्पतिवार की तारीख मुकर्रर की और कहा कि सभी हितधारकों को इस मुद्दे पर सोचना चाहिए और सुझाव देना चाहिए, ताकि यह गंभीर मामले से निपटने के लिए एक निकाय का गठन कर सके।
मुफ्त योजनाओं पर कोर्ट ने सुझाव मांगे
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि चुनावी लाभ के लिए करदाताओं की गाढ़ी कमाई मुफ्त उपहार पर लुटाने के लुभावने वादे का अर्थव्यवस्था पर होने वाले नफा-नुकसान के आंकलन के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया, नीति आयोग जैसा एक विशेषज्ञ निकाय का गठन किया जाना चाहिए। अदालत ने इस निकाय के गठन के लिए संबंधित पक्षों को विचार-विमर्श कर अपनी राय एक सप्ताह में देने को कहा है।
चीफ जस्टिस एनवी रमण और जस्टिस कृष्ण मुरारी और हिमा कोहली की बेंच ने कहा, यह सभी नीति से जुड़े गंभीर मुद्दे हैं, जिसमे सभी को इसमें भाग लेना चाहिए। सभी पक्षों से विचार-विमर्श कर एक विशेषज्ञ निकाय के गठन करने का सुझाव भी दिया।
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