कोरोना के विरुद्ध मानव जाति की लड़ाई
आज पूरी दुनिया कोरोना वायरस के आतंक के साये में जी रही है। अब तक पूरी दुनिया में लाखों लोग इससे संक्रमित हो चुके हैं और करीब 17 हजार लोग मौत के मुंह में समा चुके हैं।
सहारा इंडिया परिवार के मुख्य अभिभावक सहाराश्री श्री सुब्रत रॉय सहारा |
जिन देशों में संक्रमण फैल चुका है वहां की सरकारें इसके फैलाव को रोकने का प्रयास कर रही हैं और जहां यह वायरस अभी तक नहीं पहुंचा है वहां की सरकारें इसकी नाकेबंदी कर रही हैं। अब यह वायरस विभिन्न देशों की जनसंख्याओं के लिए नहीं बल्कि संपूर्ण मानव जाति के लिए खतरा बन गया है।
इस समय हमें इस बहस को रोक देना चाहिए कि यह वायरस कहां पैदा हुआ, कैसे पैदा हुआ या यह प्राकृतिक आपदा के रूप में आया या मनुष्य की किसी चूक के कारण आया। हमारा ध्यान पूरी तरह इस बात पर केंद्रित होना चाहिए कि दुनिया के विभिन्न हिस्सों में इसे रोकने के जो मानवीय प्रयास हो रहे हैं वे कैसे सफल हों, कैसे इस महामारी का प्रसार रुके, कैसे मनुष्य जीवन सुरक्षित रहे और कैसे मनुष्य का सामान्य जीवन फिर से पटरी पर लौटे।
हमारे देश भारत की सरकार कोरोना के खतरे को भली प्रकार समझ रही है और इसकी रोकथाम के लिए हर वह आवश्यक कदम उठा रही है जो उसे उठाने चाहिए। सरकार ने एक ओर वायरस की रोकथाम के लिए चिकित्सकीय सेवाओं को सक्रिय किया है तो दूसरी ओर उसके अभिकरण लगातार सुरक्षा और सावधानी से संबंधित समुचित निर्देश जारी कर रहे हैं। अस्पताल और डॉक्टर इस समय युद्ध स्तर पर कार्यरत हैं तो केंद्रीय और क्षेत्रीय प्रशासनिक अधिकारी हर वह आवश्यक कदम उठा रहे हैं जिससे इस वायरस के प्रसार को रोका जा सके और जीवन की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। जहां प्रतिबंध लगाए जाने चाहिए वहां प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं और जहां जो कठोर कदम उठाए जाने चाहिए वहां वे उठाए जा रहे हैं।
तात्पर्य यह कि सरकार और प्रशासन वह सब कर रहे हैं जो उन्हें करना चाहिए या जो वे कर सकते हैं। लेकिन हमें यह समझना चाहिए कि कोरोना के विरुद्ध संघर्ष सिर्फ सरकारों का संघर्ष नहीं है बल्कि संपूर्ण मनुष्य जाति का संघर्ष है। मनुष्य जाति के सदस्य के तौर पर यह हमारा और आपका संघर्ष है। कोरोना वायरस के विरुद्ध लड़ाई में हर व्यक्ति सिपाही है, हर व्यक्ति की कोई न कोई जिम्मेदारी है और हर व्यक्ति की कोई न कोई भूमिका है। अगर हम सब सरकार पर छोड़ देंगे और यह मान लेंगे कि जो कुछ करना है वह सरकार और प्रशासन को करना है, अस्पतालों और डॉक्टरों को करना है तो यकीन मानिए हम कोरोना वायरस के विरुद्ध लड़ाई हार जाएंगे। अगर हमें कोरोना को हराना है तो हमें भी स्वयं को एक सिपाही मानना होगा और आगे बढ़कर अपनी भूमिका निभानी होगी।
हमारी सबसे पहली भूमिका यह है कि हम आधिकारिक स्रोतों से दिए जा रहे सुरक्षा और बचाव के सारे दिशा-निर्देशों का पूरी निष्ठा से पालन करें जैसे कि हम आपस में हाथ न मिलाएं, बार-बार साबुन से हाथ धोएं, छींक या खांसी आने पर मुहं और नाक पर रूमाल रखें, मास्क लगाएं, निकट संपर्क में आने से बचें और सोशल डिस्टेंसिंग यानी सामाजिक दूरी बनाकर रखें। भीड़ का हिस्सा न बनें और सरकार द्वारा जो प्रतिबंध लगाए गए हैं उनका कड़ाई से पालन करें। इसके साथ ही यह भी आवश्यक है कि हम अफवाहों पर भरोसा न करें और इनके प्रचार-प्रसार का माध्यम न बनें।
हमारा यह भी कर्तव्य है कि सभा-समारोहों, आवागमन, धार्मिक उत्सव-त्योहारों, मनोरंजन गतिविधियों, सिनेमा-थियेटर, मॉल-बाजार आदि हमारे जीवन की प्रमुख गतिविधियों पर जहां भी जो रोक लगाई गई है हम उसको सहजता से स्वीकार करें और स्वयं को विचलित न होने दें। हमें मानना चाहिए कि हमारे लिए थोड़ी सी तात्कालिक कठिनाई पैदा करने वाले यह सारे कदम स्वयं हमारे लिए ही उठाए गए हैं। एक बड़ी विपदा को टालने के लिए छोटी कठिनाई को सहने में बड़ी समझदारी है।
वैसे तो कोरोना को नियंत्रित करने के लिए सरकारी-गैर सरकारी संस्थाओं ने जो भूमिका निभाई है उसकी सर्वत्र सराहना हुई है। अगर रोकथाम के कठोर उपाय नहीं होते तो यह महामारी बहुत बड़ी संख्या में लोगों को अपनी चपेट में ले लेती। इस तथ्य को सभी लोग स्वीकार करते हैं और इसका स्वागत करते हैं। लेकिन मुझे उस समय भारी खेद होता है जब मैं देखता हूं कि बहुत से लोग या समूह इस कठिन समय में भी उपहास, अवहेलना या अवज्ञा की मन:स्थिति में बने हुए हैं। कुछ ऐसे धर्म समूह भी हैं जो खुलकर कहते हैं कि जो कुछ हो रहा है ईश्वर या अल्लाह की मर्जी से हो रहा है और यह कि कोरोना हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। ये मानते हैं कि ईश्वर या अल्लाह इनको कोरोना का संक्रमण नहीं देगा। अपने इसी मूर्खतापूर्ण विश्वास के कारण ऐसे लोग सरकारी दिशा-निर्देशों का पालन तो करते ही नहीं बल्कि अपनी सुरक्षा के उपाय भी नहीं करते और न ही वांछित सावधानियां बरतते हैं। ‘कोरोना वायरस’ के विरुद्ध लड़ाई में ऐसे लोग सबसे कमजोर कड़ी हैं। ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं। इनके परिप्रेक्ष्य में हर समझदार व्यक्ति का दायित्व है कि वह इस तरह के विचारों के विरोध में खड़ा हो। मीडिया या सोशल मीडिया किसी भी रूप में इस तरह के विचारों को प्रसारित न होने दें और सरकार का भी दायित्व है कि ऐसे व्यक्ति और समूहों के प्रति कठोरतम कदम उठाए जिससे ऐसे लोग स्वयं अपनी और दूसरों की जान को खतरे में न डाल पाएं।
इस कठिन समय में मैं सभी से अपील करता हूं कि वे चाहे जिस धर्म-संप्रदाय से आते हों, चाहे जिस मजहब को मानने वाले हों, चाहे जिस वर्ग से जुड़े हों, चाहे जिस राजनीतिक दल से उनका संबंध हो, चाहे वे किसी भी विचारधारा के मानने वाले हों, किसी भी क्षेत्र या भाषा से संबंध रखते हों, उनकी कोई भी संस्कृति हो, सभी को इस समय अपने मतभेंदों, अपने पूर्वाग्रहों और अपनी शत्रुताओं से ऊपर उठकर मनुष्य होकर संपूर्ण मनुष्य जाति के बारे में सोचना चाहिए और अपने लिए हर वह भूमिका तय करनी चाहिए जो कोरोना जैसी महामारी को पराजित करने में निर्णायक सिद्ध हो। इसी में हम सबकी सुरक्षा निहित है और इसी में हम सबका हित निहित है।
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