'मन की बात' में बोले PM मोदी, एक बेटी 10 बेटों के बराबर

Last Updated 28 Jan 2018 11:02:33 AM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज 40वें 'मन की बात' कार्यक्रम के जरिए देश को संबोधित किया.


'मन की बात' (फाइल फोटो)

2018 की यह पहली मन की बात है और दो दिन पूर्व ही हमने गणतन्त्र पर्व को बहुत ही उत्साह के साथ मनाया. इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि 10 देशों के मुखिया इस समारोह में उपस्थित रहे

आज हम बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की बात करते हैं लेकिन सदियों पहले हमारे शास्त्रों में, स्कन्द-पुराण में कहा गया है- दशपुत्र, समाकन्या, दशपुत्रान प्रवर्धयन. यत् फलं लभतेमर्त्य, तत् लभ्यं कन्यकैकया. यानि, एक बेटी दस बेटों के बराबर है. दर बेटों से जितना पुण्य मिलेगा एक बेटी से उतना ही पुण्य मिलेगा. यह हमारे समाज में नारी के महत्व को दर्शाता है. तभी तो, हमारे समाज में नारी को शक्ति का दर्जा दिया गया है.

चाहे वैदिक काल की विदुषियां लोपामुद्रा, गार्गी, मैत्रेयी की विद्वता हो या अक्का महादेवी और मीराबाई का ज्ञान और भक्ति हो, चाहे अहिल्याबाई होलकर की शासन व्यवस्था हो या रानी लक्ष्मीबाई की वीरता, नारी शक्ति हमेशा हमें प्रेरित करती आयी है.

हम सबके लिए दुख की बात है कि कल्पना चावला को इतनी कम उम्र में खो दिया. लेकिन उन्होंने नारी शक्ति को प्रेरणा दी. यह शक्ति परिवार को एकता के सूत्र में बांधती है. यह देखकर काफी खुशी होती है कि भारत में आज महिलाएं तेजी से आगे बढ़ रही हैं.

आज नारी हर क्षेत्र में नेतृत्व कर रही हैं. तीन बहादुर महिलाएं भावना कंठ, मोहना सिंह और अवनी चतुर्वेदी फाइटर पायलेट बनी हैं और सुखोई30 में प्रशिक्षण ले रही हैं.

विमेन अचीवर्स पर एक पुस्तक भी तैयार की गई है. ताकि लोग उनके बारे में जानें और प्रेरणा ले सकें

मुंबई का माटुंगा स्टेशन देश का ऐसा पहला स्टेशन है जहां सारी महिला कर्मचारी हैं

आज हमारी नारी शक्ति आत्मनिर्भर बन रही हैं. छत्तीसगढ़ की आदिवासी महिलाओं ने भी एक मिसाल कायम की है. छत्तीसगढ़ का दंतेवाड़ा इलाका जो माओवाद-प्रभावित क्षेत्र है. हिंसा, अत्याचार, बम, बन्दूक, पिस्तौल- माओवादियों ने इसी का एक भयानक वातावरण पैदा किया हुआ है. ऐसे खतरनाक इलाके में आदिवासी महिलाएं, ईरिक्शा चलाकर आत्मनिर्भर बन रही हैं.

मैं बिहार की जनता, राज्य के मुख्यमंत्री और मानव श्रृंखला में शामिल हर व्यक्ति की सराहना करता हूं.

हम बार-बार सुनते आये हैं कि लोग कहते हैं, कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी. वो बात क्या है, वो बात है, लचीलापन, आवश्यक सुधार करना. हमारे समाज की विशेषता है कि खुद का सुधार करने का प्रयास किया जाता है.

प्रधानमंत्री जन औषधि योजना के पीछे उद्देश्य है- हेल्थ केयर को अफोर्डेबल बनाना. जन-औषधि केन्द्रों पर मिलने वाली दवाएं बाजार में बिकने वाली दवाइयों से लगभग 50-90 फीसद तक सस्ती हैं. सस्ती दवाइयां प्रधानमंत्री भारतीय जन-औषधि केन्द्रों, अस्पतालों के अमृत स्टोर्स पर उपलब्ध हैं. आज देशभर में 3000 से ज्यादा जन औषधि केंद्र स्थापित किए जा चुके हैं.

मुझे पता चला कि अकोला के नागरिकों ने स्वच्छ भारत अभियान के तहत मोरना नदी को साफ करने के लिए स्वच्छता अभियान का आयोजन किया था. इस नेक कार्य में अकोला के छह हजार से अधिक नागरिकों, सौ से अधिक एनजीओ, कॉलेज, स्टूडेंट, बच्चे, बुजुर्ग, माताएं-बहनें हर किसी ने इसमें भाग लिया.

इन दिनों पद्म पुरस्कारों के विषय में चर्चा हो रही है. अगर थोड़ा बारीकी से देखें तो आपको गर्व होगा और आपको पता चलेगा कि कैसे-कैसे महान लोग हमारे बीच हैं. पिछले तीन साल में पद्म पुरस्कारों की पूरी प्रक्रिया बदल गई है. कोई भी ऑनलाइन आवेदन कर सकता है. अब बहुत सामान्य लोगों को भी पुरस्कार मिल रहे हैं. अब पुरस्कार के लिए व्यक्ति के काम का महत्व बढ़ रहा है.

अरविंद गुप्ता ने कचरे से बच्चों के लिए खिलौने बनाने में पूरा जीवन खपा दिया. वे देशभर के 3000 स्कूलों में जाकर प्रेरित कर रहे हैं.

लक्ष्मी जी आज भी जंगल में रहती हैं लेकिन उन्होंने 500 हर्बल दवाइयां बनाई हैं. वह लोगों की सेवा कर रही हैं इसलिए उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया.

आपने नाम सुना होगा मध्य प्रदेश के भज्जूश्याम के बारे में, वे जीवन यापन के लिए सामान्य नौकरी करते थे लेकिन उनको पारम्परिक आदिवासी पेंटिंग बनाने का शौक था. आज इसी शौक की वजह से इनका भारत ही नहीं, पूरे विश्व में सम्मान है.

पश्चिम बंगाल की 75 वर्षीय सुभाषिनी मिस्त्री को भी पुरस्कार के लिए चुना गया. सुभाषिनी मिस्त्री एक ऐसी महिला हैं, जिन्होंने अस्पताल बनाने के लिए दूसरों के घरों में बर्तन मांजे, सब्जी बेची. इनके पति की मौत इलाज न मिलने की वजह से हो गई थी. आज इनके अस्पताल में निशुल्क इलाज किया जाता है.

कुछ लोग मान सम्मान के लिए काम नहीं करते लेकिन उनके काम से हमें प्रेरणा मिलती है.

हर वर्ष 9 जनवरी को हम प्रवासी भारतीय दिवस मनाते हैं. 9 जनवरी को पूज्य महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे थे. इस दिन हम भारत और विश्व भर में रह रहे भारतीयों के बीच, अटूट-बंधन का जश्न मनाते हैं.

इस बार यूरोपीय संघ, यूरोपियन यूनियन ने मुझे कैलेंडर भेजा है जिसमें उन्होनें यूरोप के विभिन्न देशों में रह रहे भारतीयों द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में उनके योगदानों को दर्शाया है. यानी जहां भी हमारे लोग हैं, उन्होंने वहां की धरती को किसी न किसी तरीके से सुसज्जित किया है.

30 जनवरी को पूज्य बापू की पुण्य-तिथि है, जिन्होंने हम सभी को एक नया रास्ता दिखाया है. उस दिन हम शहीद दिवस मनाते हैं. शांति और अहिंसा का ही रास्ता बापू का रास्ता था. बापू जिन आदर्शों के साथ जिए वे आज भी प्रासंगिक हैं. अगर हम संकल्प करें कि बापू के रास्ते पर चलें. जितना चल सके चलें तो उससे बड़ी श्रद्धांजलि क्या हो सकती है.

समयलाइव डेस्क


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment