रोमा हैं प्रथम प्रवासी भारतीय समुदाय, बढ़ेंगे संबंध : सुषमा

Last Updated 12 Feb 2016 07:21:30 PM IST

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने रोमा लोगों को प्रथम प्रवासी भारतवंशी समुदाय बताया है.


रोमा हैं प्रथम प्रवासी भारतीय समुदाय, बढ़ेंगे संबंध : सुषमा

स्वराज ने इस बात पर बल दिया कि उनके भारतीय जड़ों से जुड़ाव पर अधिक शोध एवं जागरुकता फैलाने तथा भारत की विकास यात्रा में उन्हें सहयोगी बनाने की आवश्यकता है.

स्वराज ने दिल्ली में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद एवं अंतर्राष्ट्रीय सहयोग परिषद द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय रोमा सम्मेलन एवं सांस्कृतिक उत्सव के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए यह बात कही.

समारोह में बीज उद्बोधन परिषद के अध्यक्ष प्रो. लोकेश चंद्र ने दिया जबकि विशिष्ट अतिथि वि रोमा संगठन के अध्यक्ष जोवान दम्जानोविक थे.

स्वराज ने कहा, ‘मुझे रोमा प्रतिनिधियों से मिलकर बहुत खुशी हुई है. आप भारत की संतान हैं जिन्हें सदियों पहले बेहद दुरूह परिस्थितियों में विदेश जाना पड़ा लेकिन इसके बावजूद आपने अपनी भारतीय पहचान बनाये रखी. पश्चिम एशिया, यूरोप, अमेरिका और आस्ट्रेलिया में फैली आपकी दो करोड़ की आबादी विदेशी सभ्यता को आत्मसात करने की आपकी अनोखी क्षमता बयान करती है. आप चुनौतीपूर्ण विदेशी परिस्थितियों में शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के उदाहरण और विदेशी धरती पर भारतीय संस्कृति के प्रथम ध्वजवाहक हैं. हमें भारत में आप पर गर्व है. आपका ‘बड़ो थान’ यानी भारत एक बार फिर से आपका खुले दिल से स्वागत करने को तैयार है.’

विदेश मंत्री ने कहा कि इस सम्मेलन का मकसद हमारे सदियों पुराने वसुधैव कुटुम्बकम के दर्शन के अनुरूप है जिसका अर्थ है कि सारा वि एक परिवार है. भारत कोई लेन देन पर आधारित राष्ट्र नहीं है जो केवल भौतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये प्रयत्नशील है बल्कि हम मूल्यों, दर्शन एवं सौहार्द को बढ़ावा देने वाली सभ्यता है. हममें भारतीय मूल के लोगों के प्रति नैसर्गिक प्रेम एवं कल्याण की भावना है. इस सम्मेलन से रोमा के बारे में दुनिया भर में जागरुकता बढ़ेगी और समुदाय के भारत से जुड़ाव पर भी रोशनी पड़ेगी.

उन्होंने कहा, ‘भारत आज तेजी से विकास कर रहा है. भारत का रोमा भाइयों एवं बहनों को सतत सहयोग रहेगा. हम आपकी मातृभूमि भारत के विकास में आप सबके योगदान और इस पुनीत कार्य में सक्रिय सहयोग का स्वागत करेंगे.’

प्रो. लोकेश चंद्र ने बताया कि तीसरी सदी ईसा पूर्व में सकिंदर में डोम्ब से प्रवासित हुए लोग रोमा कहलाये. ये लोग लोहा एवं धातु का कार्य करते थे. बाद में 11वीं सदी में उत्तर प्रदेश के कन्नौज क्षेत्र से दासों के रूप में गये 53 हजार परिवार बाद में यूरोप पश्चिम एवं मध्य एशिया में फैल गये लेकिन उनका जुड़ाव हिन्दु संस्कृति एवं संस्कृत से बना रहा है. याग यानी आग, ऋषि, बड़ो थान (बड़ा स्थान) जैसे शब्द के अलावा ये लोग गिनती भी एक दो तीन चार पांच ... दस बीस तीस पचास आदि पढ़ते हैं. इन लोगों को अलग-अलग स्थानों पर अलग अलग नाम दिये गये हैं.

यूनान, रोमानिया से लेकर भारत तक यूरेशियाई क्षेत्र में कभी फली फूली रोमा संस्कृति के भारत के साथ सांस्कृतिक सूत्रों को ढूंढ़ने के एक प्रयास के तौर पर आयोजित इस तीन दिन के सम्मेलन में रोमा सभ्यता के इतिहास, उसके उछ्वव, वशंज, संस्कृति, परंपरा, भारत से जुड़ाव, नीतियों, सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक स्थिति एवं सिनेमाई प्रदर्शन, मानवाधिकार, आदि पर विस्तार से चर्चा होगी। इसके माध्यम से रोमा लोगों से सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयत्न किया जाएगा, जिनकी जड़े भारत में हैं. इसका एक अन्य लक्ष्य उन विषय पर अध्ययन एवं अनुसंधान के प्रति भारतीयों को प्रेरित करना भी है। इस माध्यम से भारतीय रोमा लोगों के साथ निकट के सम्बन्ध स्थापित कर सकेंगे. भारत चाहे उन्हें भुला चुका है परंतु वे भारत को नहीं भूले है.  वे स्वयं को रामा-नो-छावा अर्थात राम के बच्चे कहते हैं लेकिन इतिहास में इस विषय पर कहीं कुछ न लिखा हुआ होने के कारण कई प्रकार की भ्रान्तियां उत्पन्न हुई हो गयीं थीं.

अब विद्वानों द्वारा अनुसन्धान के माध्यम से उन भ्रांतियों को दूर किया जा रहा है. रोमा लोग निर्धनता, अशिक्षा और अनेक प्रकार के कष्टों में रहने के उपरान्त भी अनेक क्षेत्रों में विलक्षण प्रतिभाओं के धनी हैं. पूरे पश्चिमी जगत में वे सर्वोच्च नर्तक एवं संगीतकार के रूप में जाने जाते है. इन रोमा लोगों के पूर्वज पांचवीं शताब्दी अथवा उससे भी पूर्व सिकन्दर के आक्रमण के उपरान्त से भारत से प्रवास करते रहे हैं.

विलक्षण इतिहासकार फिरदौसी द्वारा लिखित शाहनामा के अनुसार पांचवीं शताब्दी में ईरान के राजा बैराम गुर के निवेदन पर एक भारतीय राजा ने वहां के राष्ट्रीय उत्सव के लिये 20 हजार संगीतकार भेजे थे. आज उन्हीं के वंशज सारे यूरोप में प्रसिद्ध कलाकार हैं. अपनी अस्मिता पर गर्व के कारण ही रोमा लोग कठिनतम परिस्थितियों में से गुजरते आज तक अपनी परम्पराओं को जीवित रख पाये है. रोमा लोगों के पूर्वज यूरोप के कई देशों में राजकुमारों को युद्ध कौशल सिखाया करते थे,उनके लिए हथियार बनाते और घोड़ों को प्रशिक्षित करते थे.

महमूद गजनवी के आक्रमण तथा उसके बाए जब-जब भारत में विदेशी आक्रमण हुए तब-तब यहां के गांव के गांव उजाड़कर सहस्रें की संख्या में लोगों को दास बनाकर ले जाया गया और बाजारों में बेचा जाता रहा. पृथ्वीराज चौहान की सेना की एक टुकड़ी हार जाने पर पश्चिम की ओर यानी लिथुआनिया और पोलैण्ड आदि देशों में पहुंच गई. उन राजपूतों ने सच्चे मित्रों के समान उन्हें लड़ाई में सहयोग किया इसीलिए आज तक उन देशों में उन्हें सम्मानपूर्ण जीवन मिला.

भारत के प्रति अनुरागी रोमा लोग देखने में भारतीय ही लगते है. वे संसार भर में कहीं भी रहें, उनकी अपनी जीवनशैली है, अपनी भाषा और अपनी सोच है. जीवन में हषरेल्लास के ढंग भी यूरोप से अलग है. उनका अपना एक अलग आनंद भरा संसार है. भारत ने अपने रोमा बन्धुओं को भुला दिया है पर उन्होंने भारतीय संस्कृति को संजोकर रखा है. आज भी उनके हृदयों में भारत बसता है. उनकी भाषाओं में भारतीय शब्द है.

वे भारतीय रंग के रंगबिरंगे कपड़े पहनते हैं. भारतीय आस्थाएं उनकी रग-रग में समायी हुई हैं जैसे कि वे अस्पताल तक में सफेद चादर पर सोना पसन्द नहीं करते क्योंकि यह अशुभ माना जाता है. वे न्यायालय में जाकर विवाह को पंजीकृत कराना आवश्यक नहीं मानते, विवाह के उपरान्त घर की बूढ़ी महिलाएं नवदम्पति का बिस्तर सजाती है. विवाह विच्छेद को वे बहुत ही बुरा मानते है.

रोमा महिलाएं घरेलू उपचार करने में कुशल हैं. लोग जादू-टोने में विास करते हैं, बच्चों के मनोरंजन के लिए बन्दर और भालू नचाते हैं। वे जिस देश में गये वहां के धर्म का पालन करने लगे परंतु फिर भी सूर्य और चन्द्रमा, काली देवी और शिवलिंग को पूजते है. पूजा के पश्चात मूर्ति को पानी में विसर्जित करते हैं. विलक्षण प्रतिभा संपन्न होने पर भी वे रोमा लोग प्राय: गरीब है. अशिक्षित होने पर भी जिन रोमा लोगों को प्रशिक्षण के अवसर मिल गये वे ऊंचे पदों पर पहुंच गये.

रोमा लोग उत्कृष्ट लेखक, कलाकार और राजनीतिज्ञ बन गये. कला, विज्ञान, खेलकूद आदि के प्रसिद्ध कई लोगों में रोमा रक्त है, जैसे-पाब्लो पिकासो (कलाकार), चार्ली चैपलिन (फिल्म निर्देशक एवं हास्य कलाकार), एंटोनियो सलारियो (पोकर खिलाड़ी), मिशेल फ्लोरे (नर्तकी), टेनिस खिलाड़ी नस्तास्ते, यानो बेहारी (वायलन वादक), ग्रीक कलाकार, ग्लीकेरिया कोत्सूला सर माइकल कैन (कलाकार) तथा बॉब हस्किन.

बिना देश के आज दो करोड़ से ऊपर रोमा पश्चिम एशिया, यूरोप, अमेरिका और आस्ट्रेलिया आदि देशों में बिखरे पड़े हैं. उनमें अनेक लोग अच्छे लेखक, कवि और कलाकार हैं पर उनका कोई अपना देश नहीं है. उन्होंने अपनी सामुदायिक पहचान केवल भाषा और परम्पराओं के आधार पर बचायी हुई है. रोमा लोग गर्व से कहते है कि वे जहां खड़े हैं, वहीं उनका देश रोमानिस्तान है.

रोमानिया और बुल्गारिया जैसे यूरोपीय देशों में रोमा समुदाय की आबादी करीब 12 प्रतिशत है. रूस, स्लोवाकिया, हंगरी, सर्बिया, स्पेन और फ्रांस में रोमा की अच्छी खासी आबादी है. तुर्की में साढ़े 27 लाख रोमा हैं.

अमेरिका में दस लाख और ब्राजील में आठ लाख रोमा रहते हैं. इससे पहले 2001 में रोमा सम्मेलन का आयोजन किया गया था.



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