जान बचाने के लिए गर्भपात करा सकती है पीड़िता

Last Updated 28 Jul 2015 09:34:59 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार के कारण गर्भवती हुई गुजरात की एक नाबालिग लड़की को बड़ी राहत प्रदान करते हुए कहा कि पीड़िता की जान बचाने के लिए जरूरी होने पर उसका गर्भपात कराया जा सकता है.




सुप्रीम कोर्ट

शीर्ष अदालत ने गुजरात उच्च न्यायालय के उस फैसले को पलटते हुए यह व्यवस्था दी, जिसमें 14-वर्षीया पीड़िता को गर्भपात कराने की अनुमति देने से यह कहते हुए इन्कार कर दिया गया था कि वह 23 सप्ताह की गर्भवती है और संबंधित कानून के प्रावधानों के तहत 20 सप्ताह से अधिक समय के बाद गर्भपात नहीं कराया जा सकता.

मेडिकल एंड प्रीगनेंसी टर्मिनेशन एक्ट, 1971 के प्रावधानों के तहत गर्भाधान के 20 सप्ताह से अधिक अवधि के बाद गर्भपात कराना गैर-कानूनी करार दिया गया है. दसवीं कक्षा की छात्रा के माता-पिता ने उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए कहा था कि बलात्कार के कारण गर्भ में ठहरे बच्चे को जन्म देने के लिए किसी नाबालिग को मजबूर नहीं किया जा सकता, खासकर ऐसी स्थिति में जब वह मानसिक और शारीरिक रूप से बच्चे को जन्म देने में सक्षम न हो. पीड़तिा के माता-पिता ने बेटी का गर्भपात कराने की अनुमति मांगी थी.

शीर्ष अदालत ने पीड़तिा के स्वास्थ्य एवं गर्भ की जांच 30 जुलाई को अहमदाबाद में कराने के लिए चार वरिष्ठ प्रसूति रोग विशेषज्ञों की एक समिति गठित की, जिसमें उस चिकित्सक को भी शामिल किये जाने को कहा गया है, जिसने एक सप्ताह पहले गर्भपात की सलाह दी थी.

डॉ. ऋद्धि शुक्ला ने पीड़िता की जांच के बाद गत 25 जुलाई को एक रिपोर्ट में कहा था कि बच्चे के जन्म से उस नाबालिग लड़की की मानसिक और शारीरिक स्थिति को गम्भीर खतरा है.

गौरतलब है कि गत फरवरी में टायफाइड के इलाज के दौरान एक डॉक्टर ने लड़की के साथ बलात्कार किया था, जिसके कारण वह गर्भवती हो गई थी. गर्भपात की अर्जी एक निचली अदालत ने ठुकरा दी थी, जिसे उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी, लेकिन वहां से भी पीड़तिा को राहत नहीं मिली थी.

लड़की के माता-पिता ने कल मुख्य न्यायाधीश एच एल दत्तू की खंडपीठ के समक्ष मामले का विशेष उल्लेख किया था, जिसने आज याचिका की सुनवाई करने पर सहमति जताई दी थी.
 



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