ब्रिटिश काल की तोपों से दी जाती है 21 तोपों की सलामी

Last Updated 26 Jan 2015 08:15:59 PM IST

बारिश की रिमझिम फुहारों के बीच जब गणतंत्र दिवस का उत्सव दिल्ली में राजपथ पर शुरू हुआ तो राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ के 52 सेकेंड के साथ कदमताल सा करती 21 तोपों की सलामी से आकाश गूंज उठा.




तोप (file photo)

भारतीय गणतंत्र की गौरव गाथा का जयघोष करती ये ऐतिहासिक तोपें ब्रिटिश काल की हैं.

गणतंत्र दिवस पर जिन तोपों से राजपथ पर सलामी दी जाती है वह भारतीय सेना में ब्रिटिश काल से हैं. अंग्रेजों के जमाने में इनसे युद्ध भी लड़ा जाता था, लेकिन अब यह सिर्फ रस्मी परंपराओं को निभाने के काम आती है.

एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी ने ‘भाषा’ को बताया, ‘‘देश में अब ऐसी सिर्फ सात तोप ही बची हैं और इन्हें बड़े नाजों से संभाल कर रखा गया है. यह दिल्ली कैंट की 871 फील्ड रेजीमेंट का हिस्सा हैं और यही रेजीमेंट हमेशा इन तोपों से सलामी की रस्म को पूरा करती है.’’

उन्होंने बताया कि इन तोपों को दिल्ली में ही रखा जाता है और जब भी सलामी की रस्म निभानी होती है तो इन्हें वहां ले जाया जाता है.

इन तोपों से साल में सिर्फ दो बार स्वतंत्रता दिवस पर लाल किला और गणतंत्र दिवस पर राजपथ पर 21 तोपों की सलामी दी जाती है.

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के शहीदी दिवस 30 जनवरी को भी इन तोपों से सलामी दी जाती है जिन्हें दिल्ली में कई अलग-अलग स्थानों पर दागा जाता है.

सेना के एक अधिकारी ने बताया, ‘‘30 जनवरी को राजघाट, विजय चौक, बुद्धा जयंती पार्क और नेहरू पार्क इत्यादि स्थानों से भी इन ऐतिहासिक तोपें दागी जाती हैं. उस दिन 21 तोपों की सलामी नहीं होती बल्कि मौन धारण करने के लिए प्रारंभ और अंत की घोषणा करने के लिए इन्हें दागा जाता है.’’

इसके अलावा जब भी राष्ट्रपति भवन में किसी राष्ट्राध्यक्ष को सलामी गारद दिया जाता है तब भी इन्हीं तोपों से 21 सलामी दी जाती है. 

इन तोपों से 21 सलामी दिए जाने के बारे में कई कहानियां हैं, किन्तु सेना के अधिकारी ने बताया कि 21 बार सलामी दिया जाना विभर में सलामी देने का सर्वोच्च सम्मान है. इससे ज्यादा बार सलामी देने की परंपरा पूरे वि में कहीं नहीं है.

राष्ट्रगान के 52 सेकेंडों के साथ तोपों की सलामी की लयबद्धता को बनाए रखने के लिए इन सातों तोपों में प्रत्येक तीन तीन राउंड फायर करती है. दो सलामियों के बीच का अंतर लगभग 2.25 सेकेंड होता है.

अधिकारी ने बताया, ‘‘21 तोपों की सलामी के लिए खाली तोप दागी जाती है. इ’धन से भरी कार्टेज से दबाव बनता है जिससे धमक पैदा होती है. इसमें 25 पावडर गन का प्रयोग किया जाता है.’’

आधुनिक होती सेना की आयुध पण्राली के बीच भी ब्रिटिशकाल की इन तोपों से सलामी दिए जाने का कारण बताते हुए सैन्य अधिकारी ने बताया कि भले ही यह तोपें पुरानी हों लेकिन सलामी देने के लिए यह सवरेत्तम हैं क्योंकि इनकी धमक ना तो बहुत ज्यादा हैं और ना ही बहुत धीमी, बल्कि सलामी के लिए इनकी धमक एकदम सटीक है.’’

अब आने वाली 30 जनवरी को फिर एक बार अंग्रेजों के जमाने की इन तोपों की धमक सुनाई देगी, लेकिन उस दिन इनसे उस समय उत्साह नहीं अपितु शोक प्रतिबिंबित होगा.
 



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