धर्म को टकराव की वजह नहीं बनाया जा सकता: राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी

Last Updated 25 Jan 2015 08:38:48 PM IST

धर्म को टकराव की वजह नहीं बनाने की बात पर जोर देते हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि अलग-अलग समुदायों के बीच सहनशीलता और सद्भाव की भावना की हिफाजत किए जाने की जरूरत है.




राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी (फाइल)

भारत के 66वें गणतंत्र दिवस की पूर्वसंध्या पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने महात्मा गांधी का कथन याद दिलाते हुए हुए कहा, ‘‘धर्म एकता की ताकत है. हम इसे टकराव का कारण नहीं बना सकते.’’ उन्होंने कहा, ‘‘भारत की प्रज्ञा हमें सिखाती है- एकता ताकत है, प्रभुता कमजोरी है.’’
    
राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘भारतीय संविधान लोकतंत्र की पवित्र पुस्तक है. यह ऐसे भारत के सामाजिक-आर्थिक बदलाव का पथप्रदर्शक है, जिसने प्राचीन काल से ही बहुलता का सम्मान किया है, सहनशीलता का पक्ष लिया है और अलग-अलग समुदायों के बीच सद्भाव को बढ़ावा दिया है.’’
    
उन्होंने कहा, ‘‘बहरहाल, इन मूल्यों की हिफाजत बेहद सावधानी और मुस्तैदी से किए जाने की जरूरत है.’’
    
राष्ट्रपति की टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब कुछ दक्षिणपंथी पार्टियां ‘घर वापसी’ का मुद्दा उठाकर, महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे का महिमा-मंडन कर, हिंदुओं की जनसंख्या बढ़ाने के लिए महिलाओं को 10-10 बच्चे पैदा करने की नसीहत देकर विवाद पैदा कर रहे हैं और कुछ मंत्री भी अल्पसंख्यकों के बारे में अनुचित बयान देते रहे हैं.
    
प्रणब ने कहा, ‘‘लोकतंत्र में निहित स्वतंत्रता कभी-कभी उन्मादपूर्ण प्रतिस्पर्धा के रूप में एक ऐसा नया कष्टप्रद परिणाम सामने ले आती है जो हमारी परंपरागत प्रकृति के विरुद्ध है. वाणी की हिंसा चोट पहुंचाती है और लोगों के दिलों को घायल करती है. गांधी जी ने कहा था कि धर्म एकता की ताकत है. हम इसे टकराव का कारण नहीं बना सकते.’’
    
भारत को अक्सर ‘‘सौम्य शक्ति’’ करार दिए जाने पर राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘भारत की सौम्य शक्ति के बारे में बहुत कुछ कहा जाता है. परंतु इस तरह के अंतरराष्ट्रीय परिवेश में, जहां बहुत से देश धर्म आधारित हिंसा के दलदल में फंसते जा रहे हैं, भारत की सौम्य शक्ति का सबसे शक्तिशाली उदाहरण धर्म एवं राज-व्यवस्था के बीच संबंधों की हमारी परिभाषा में निहित है.’’
    
प्रणब ने कहा, ‘‘हमने सदैव धार्मिक समानता पर अपना भरोसा जताया है, जहां हर धर्म कानून के सामने बराबर है तथा प्रत्येक संस्कृति दूसरे में मिलकर एक सकारात्मक गतिशीलता की रचना करती है. भारत की प्रज्ञा हमें सिखाती है- एकता ताकत है, प्रभुता कमजोरी है.’’
    
आतंकवाद की समस्या पर प्रणब ने यह कहते हुए पाकिस्तान पर परोक्ष रूप से निशाना साधा कि भारत अपने उन दुश्मनों की ओर से गाफिल रहने का जोखिम नहीं उठा सकता जो समृद्ध और समतापूर्ण देश बनने की दिशा में हमारी प्रगति में बाधा पहुंचाने के लिए किसी भी सीमा तक जा सकते हैं.
    
राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘विभिन्न देशों के बीच टकराव ने सीमाओं को खूनी हदों में बदल दिया है तथा आतंकवाद को बुराई का उद्योग बना दिया है. आतंकवाद तथा हिंसा हमारी सीमाओं से घुसपैठ कर रहे हैं. यद्यपि शांति, अहिंसा तथा अच्छे पड़ोसी की भावना हमारी विदेश नीति के बुनियादी तत्त्व होने चाहिए, परंतु हम ऐसे शत्रुओं की ओर से गाफिल रहने का जोखिम नहीं उठा सकते जो समृद्ध और समतापूर्ण भारत की ओर हमारी प्रगति में बाधा पहुंचाने के लिए किसी भी सीमा तक जा सकते हैं.’’
    
उन्होंने कहा कि हमारे पास, अपनी जनता के विरुद्ध लड़ाई के सूत्रधारों को हराने के लिए ताकत, विश्वास तथा दृढ़ निश्चय मौजूद है. सीमारेखा पर युद्ध विराम का बार-बार उल्लंघन तथा आतंकवादी आक्रमणों का, कारगर कूटनीति तथा अभेद्य सुरक्षा प्रणाली के माध्यम से समेकित जवाब दिया जाना चाहिए. विश्व को आतंकवाद के इस अभिशाप से लड़ने में भारत का साथ देना चाहिए.
    
अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर राष्ट्रपति ने कहा कि 2015 उम्मीदों का साल है और प्रमुख आर्थिक संकेतक भी बहुत आशाजनक हैं.
   
उन्होंने कहा कि वित्तीय वर्ष 2014-15 की पहली दोनों तिमाहियों में पांच प्रतिशत से अधिक की विकास दर की प्राप्ति, 7-8 प्रतिशत की उच्च विकास दर की दिशा में शुरुआती बदलाव के स्वस्थ संकेत हैं.
   
महात्मा गांधी के विचारों पर जोर देते हुए प्रणब ने कहा कि 26 जनवरी 1929 को कांग्रेस के अधिवेशन में राष्ट्रपिता के नेतृत्व में ‘पूर्ण स्वराज’ का आह्वान किया गया था. उन्होंने कहा कि गांधीजी ने 26 जनवरी, 1930 को पूरे देश में स्वतंत्रता दिवस के रूप में राष्ट्रव्यापी समारोहों का आयोजन किया था. उसी दिन से देश तब तक हर वर्ष इस दिन स्वतंत्रता संघर्ष को जारी रखने की शपथ लेता रहा जब तक हमने इसे प्राप्त नहीं कर लिया.
   
राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘ठीक बीस वर्ष बाद, 1950 में, हमने आधुनिकता के अपने घोषणापत्र, संविधान को अंगीकार किया. यह विडंबना थी कि गांधी जी दो वर्ष पूर्व शहीद हो चुके थे परंतु आधुनिक विश्व के सामने भारत को आदर्श बनाने वाले संविधान के ढांचे की रचना उनके ही दर्शन पर की गई थी.’’
   
प्रणब ने कहा, ‘‘इसका सार चार सिद्धांतों पर आधारित है:- लोकतंत्र, धर्म की स्वतंत्रता, लैंगिक समानता तथा गरीबी के जाल में फंसे लोगों का आर्थिक उत्थान. इन्हें संवैधानिक दायित्व बना दिया गया था. देश के शासकों के लिए गांधी जी का मंत्र सरल और शक्तिशाली था, कि जब भी आप किसी शंका में हों..तब उस सबसे गरीब और सबसे निर्बल व्यक्ति का चेहरा याद करें जिसे आपने देखा हो और फिर खुद से पूछें..क्या इससे भूखे और आध्यात्मिक क्षुधा से पीड़ित लाखों लोगों के लिए स्वराज आएगा. समावेशी विकास के माध्यम से गरीबी मिटाने का हमारा संकल्प उस दिशा में एक कदम होना चाहिए.’’
   
राष्ट्रपति ने कहा कि हमें हमारे शैक्षणिक संस्थानों में सर्वोच्च गुणवत्ता के लिए प्रयास करना चाहिए ताकि हम निकट भविष्य में 21वीं सदी के ज्ञान क्षेत्र के अग्रणियों में अपना स्थान बना सकें.
   
उन्होंने कहा, ‘‘मैं, विशेषकर, यह आग्रह करना चाहूंगा कि हम पुस्तकों और पढ़ने की संस्कृति पर विशेष जोर दें, जो ज्ञान को कक्षाओं से आगे ले जाती हैं तथा कल्पनाशीलता को तात्कालिकता और उपयोगितावाद के दबाव से आजाद करती हैं. हमें, आपस में एक दूसरे से जुड़ी हुई असंख्य विचारधाराओं से संपन्न सृजनात्मक देश बनना चाहिए.’’
   
राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘हमारे युवाओं को ऐसे ब्रह्मांड का, प्रौद्योगिकी तथा संचार में पारंगतता की दिशा में नेतृत्व करना चाहिए, जहां आकाश सीमारहित पुस्तकालय बन चुका है तथा आपकी हथेली में मौजूद कंप्यूटर में महत्त्वपूर्ण अवसर आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं. 21वीं सदी भारत की मुट्ठी में है.’’

अध्यादेश भरोसा तोड़ता है
 

अध्यादेश का मार्ग अपनाने को लेकर सरकार को आगाह करने के बाद राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने साफ लहजों में कहा कि बिना चर्चा के कानून बनाने से जनता का विश्वास टूटता है.

उन्होंने कहा, ‘‘बिना चर्चा कानून बनाने से संसद की कानून निर्माण की भूमिका को धक्का पहुंचता है. इससे, जनता द्वारा व्यक्त विश्वास टूटता है. यह न तो लोकतंत्र के लिए अच्छा है और न ही इन कानूनों से संबंधित नीतियों के लिए अच्छा है.’’
    
मुखर्जी ने पहले कहा था कि अध्यादेश विशिष्ट उद्देश्यों के लिए होते हैं और यह असाधारण परिस्थिति में विशेष स्थिति का सामना करने के लिए है.

उनकी यह टिप्पणी मोदी सरकार द्वारा नौ अध्यादेश जारी किए जाने की पृष्ठभूमि में आयी थी. सरकार द्वारा जारी अध्यादेशों में बीमा क्षेत्र में एफडीआई सीमा बढ़ाने और कोयला खदानों की ईनीलामी से जुड़े अध्यादेश शामिल थे.



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