खिसकते जनाधार से कांग्रेस हलकान, राज्यों में तीसरे-चौथे नंबर पर खिसकी पार्टी
कांग्रेस में इस वक्त सबसे बड़ी चिंता यह है कि पार्टी लगातार राज्यों में तीसरे और चौथे नम्बर पर खिसकती जा रही है.
सोनिया गांधी और राहुल गांधी (फाइल फोटो) |
ताजा झटका उसे महाराष्ट्र और हरियाणा में लगा है. महाराष्ट्र और हरियाणा में कांग्रेस तीसरे नम्बर पर लुढ़क गई है. ऐसे राज्यों की संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है, जहां वह रेस से बाहर हो रही है. दिल्ली, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, झारखंड व जम्मू-कश्मीर में पार्टी पहले ही मुकाबले से बाहर है. गुजरात, मध्य प्रदेश व राजस्थान जैसे राज्यों में कांग्रेस दूसरे स्थान पर अवश्य है, लेकिन संख्या बल के मामले में सत्तासीन भाजपा के मुकाबले वह काफी बौनी है.
लोकसभा की हार के बाद भी कांग्रेस में चिंतन बैठक नहीं हुई है. वरिष्ठ नेता ऐसी बैठकों में राज्यों में कांग्रेस के खिसक रहे जनाधार पर बात करना चाहते हैं. कांग्रेस में भविष्य की चुनौतियां नाम से भी एक कमेटी रही है पर इसने भी राज्यों में तीसरे-चौथे नम्बर पर पार्टी के चले जाने पर कोई चर्चा नहीं की है. पूर्वोत्तर और उत्तर प्रदेश के राष्ट्रीय लोकदल जैसे बेहद छोटे दलों को छोड़ दें तो कांग्रेस के साथ कोई क्षेत्रीय दल भी नहीं है. कांग्रेस के महासचिव भी मानते हैं कि राज्यों में फिर से लोकप्रियता हासिल करना कांग्रेस के लिए बेहद ढेड़ी खीर साबित हो रहा है. हिंदी भाषी राज्यों में कांग्रेस के साफ हो जाने को लेकर उनकी चिंता ज्यादा है, क्योंकि इन राज्यों में कांग्रेस का संगठन बेहद जर्जर अवस्था में पहुंच गया है.
पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य अनिल शास्त्री भी कहते हैं कि जिन राज्यों में कभी कांग्रेस की लोकप्रिय सरकारें हुआ करती थीं, वहां अब पार्टी के लिए मुकाबले में आना भी मुश्किल हो चुका है. उत्तर प्रदेश और बिहार को लेकर वह ज्यादा फिक्रमंद हैं, जहां पार्टी सबसे आखिरी स्थान पर है. कांग्रेस कार्यसमिति के कई और सदस्य भी पार्टी की खराब स्थिति को लेकर चिंता जता रहे हैं.
हालांकि फिर से आधार बनाने को लेकर सबके अलग-अलग विचार हैं. कोई ब्लॉक से लेकर पार्टी के सहयोगी संगठनों तक सुधार की बात कहता है, तो कोई कहता है कि सोनिया-राहुल ऊपरी क्रम में बदलाव करके भी काफी सुधार कर सकते हैं. हालांकि संगठन चुनाव जिस ढर्रे से हो रहे हैं, उससे नहीं लगता है कि यह पार्टी को मजबूती प्रदान करेगा.
कमजोर नेता को संगठन चुनावों का प्रभारी बनाया गया. राज्यों में बड़े नेता अपने हिसाब से संगठन चुनाव कराएंगे, जिसके बारे में कहा जा रहा है कि कांग्रेस में संगठन चुनाव महज खानापूर्ति भर रहने वाले हैं. इसके जरिए न तो नए चेहरे आगे आ सकेंगे और न राज्यों में खोया जनाधार ही पार्टी फिर से हासिल कर सकेगी.
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