मोहक शिल्पकला की दास्तां पत्तदकल

Last Updated 11 Sep 2012 09:00:26 PM IST

चालुक्य साम्राज्य के दौरान पत्तदकल महत्वपूर्ण शहर हुआ करता था. अद्भुत शिल्पकला की वजह से इस शहर को विश्व धरोहर की सूची में रखा गया है.




आठवीं शताब्दी में बनवाये गये थे यहां के मंदिर

कर्नाटक का एक शहर है पत्तदकल. यह शहर उत्तरी कर्नाटक के बागलकोट जिले में मलयप्रभा नदी के किनारे बसा है. पत्तदकल ऐतिहासिक मंदिरों और भारतीय स्थापत्यकला की बेसर शैली के आरंभिक प्रयोगों वाले स्मारक समूह के लिए प्रसिद्ध है.

ये मंदिर आठवीं शताब्दी में बनवाये गये थे. यहां द्रविड़ (दक्षिण भारतीय) तथा नागर (उत्तर भारतीय या आर्य) दोनों ही शैलियों के मंदिर हैं.

यह दक्षिण भारत के चालुक्य वंश की राजधानी बादामी से 22 किमी. और एडोल शहर से मात्र 10 किमी. की दूरी पर स्थित है. एडोल को स्थापत्यकला का महाविद्यालय तो पत्तदकल को विविद्यालय कहा जाता है.

आठवीं शताब्दी में चालुक्य वंश द्वारा बनाये गये पत्तदकल के स्मारक हिंदू मंदिर वास्तुकला में बेसर शैली के प्रयोग का चरम हैं. ‘यूनेस्को’ ने 1987 में पत्तदकल को विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया. चालुक्य साम्राज्य के दौरान पत्तदकल महत्वपूर्ण शहर हुआ करता था.

राजनीतिक केंद्र और राजधानी

हालांकि उस दौरान वातापी (आज का बादामी) राजनीतिक केंद्र और राजधानी थी जबकि पत्तदकल सांस्कृतिक राजधानी थी. यहां पर राजसी उत्सव और राजतिलक जैसे कार्यक्रम हुआ करते थे.

इसके अलावा, पत्तदकल अपने अमूल्य वास्तुशिल्प और स्मारकों के लिए भी प्रसिद्ध था. 450 ई. में चालुक्य शैली का उद्भव एडोल में हुआ था.

यहां वास्तुकारों ने नागर एवं द्रविड़ समेत विभिन्न शैलियों के प्रयोग किये थे. इन शैलियों के संगम से एक अभिन्न शैली का उद्भव हुआ.

मंदिरों का शहर

पत्तदकल में कुल दस मंदिर हैं, जिनमें एक जैन धर्मशाला भी शामिल है. इन मंदिरों को घेरे हुए चबूतरे, कई पूजा स्थल और अपूर्ण आधारशिलाएं आज भी देखी जा सकती हैं. यहां पर चार मंदिर द्रविड़ शैली के, चार नागर शैली के हैं.

पापनाथ मंदिर मिश्रित शैली का है. इन दस मंदिरों में नौ भगवान शिव के और एक जैन का है जो नदी के तट पर बने हैं. धर्म ग्रंथों में इन्हें बहुत ही पवित्र स्थल माना गया है.

यहां के वीरुपक्षा मंदिर में एक शिलालेख वाला स्तंभ स्थित है जिस पर प्राचीन कन्नड़ लिपि में विक्रमादित्य द्वितीय की कांची के पल्लवों पर विजय की गाथा लिखी है.

मल्लिकार्जुन मंदिर

यहां के दोनों मुख्य मंदिर पदत्तकल-वीरूपक्ष मंदिर और मल्लिकार्जुन मंदिर को विक्रमादित्य द्वितीय की रानी ने उनकी सफलता के सम्मान में बनवाया था.

वीरूपक्ष मंदिर यहां बने सभी मंदिरों में सबसे सुंदर है. इसमें दक्षिण भारतीय शैली का प्रयोग हुआ है और यह कांची के कैलाशनाथ मंदिर के प्रतिरूप जैसा है.

इस मंदिर के 18 स्तंभों में पुराणों के दृश्यों को दर्शाती नक्काशी की गई है. इसके अलावा विभिन्न शैलियों में निर्मित यहां के अन्य मंदिर भी अपनी मोहक शिल्पकला के लिए विख्यात हैं.

प्रत्येक वर्ष जनवरी में यहां शास्त्रीय नृत्य उत्सव का आयोजन होता है, जिसमें देश भर के कलाकार भाग लेते हैं. मार्च में यहां मंदिरों का उत्सव मनाया जाता है जिनमें दो मुख्य मंदिर शामिल हैं-वीरुपक्षा मंदिर और मल्लिकाजरुन मंदिर.

 



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