इजरायल संवेदनशील धार्मिक स्थलों पर मेटल डिटेक्टर का इस्तेमाल बंद करेगा
इजरायल के मंत्रियों ने यरूशलेम के अत्यधिक संवेदनशील धर्मस्थलों पर मेटल डिटेक्टर के इस्तेमाल को बंद करने का निर्णय लिया है. नई सुरक्षा व्यवस्था के बाद वहां व्यापक स्तर पर हिंसा हुई थी.
इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू (फाइल फोटो) |
मेटल डिटेक्टरों को हटाए जाने को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी दबाव बनाया गया था और चेतावनी दी गई थी कि इससे अशांति का माहौल बन सकता है और हिंसा इजरायल तथा फलस्तीन क्षेत्र से बाहर तक फैल सकती है.
प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के कार्यालय की ओर से जारी एक बयान में कहा गया कि इजरायल सुरक्षा मंत्रिमंडल ने सुरक्षा निकायों द्वारा दिए उन अनुरोधों को स्वीकार कर लिया है जिनमें सुरक्षा निरीक्षण के लिए मेटल डिटेक्टर के स्थान पर आधुनिक सुरक्षा तकनीकों एवं अन्य माध्यमों का इस्तेमाल किए जाने की बात कही गई थी.
आदेश के बारे में पता चलते ही सैकड़ों फलस्तीनी हरम अल-शरीफ मस्जिद (यहूदी इसे टेम्पल माउंट के रूप में पहचानते हैं) के परिसर के प्रवेश द्वार के पास जश्न मनाने के लिए एकत्रित हुए.
अत्याधुनिक तकनीक के बारे में मंत्रिमंडल की ओर से तत्काल कोई विस्तृत जानकारी नहीं दी गई. हालांकि इस सप्ताह की शुरूआत में प्रवेश द्वार पर कैमरे लगा दिए गए थे. अभी यह साफ नहीं है कि मुस्लिम श्रद्धालु इसे स्वीकार करेंगे या नहीं.
इस्लामिक वक्फ संगठन के शेख रईद दाना ने कहा कि, यह आम लोगों से जुड़ा आंदोलन है. हम वक्फ के तौर पर आम लोगों की सुनेंगे. अगर वे सुरक्षा उपायों के लिए हां कहेंगे तो हां, अगर वे ना कहेंगे तो ना.
इजरायल ने 14 जुलाई को हुए हमले के बाद यरूशलेम में धार्मिक स्थल के प्रवेश द्वार पर मेटल डिटेक्टर लगाए थे. इनमें अल-अक्सा मस्जिद और डोम ऑफ द रॉक शामिल थे. उस हमले में दो पुलिस कर्मी मारे गए थे.
फलस्तीन का कहना था कि इन सुरक्षा उपायों के बल पर इजरायल उस स्थान पर अपना नियंतण्रस्थापित करना चाहता है. उन्होंने विरोध दर्ज करवाने के लिए परिसर के अंदर प्रवेश नहीं किया बल्कि बाहर सड़कों पर ही नमाज पढ़ी थी.
इजरायल अधिकारियों का कहना था कि मेटल डिटक्टर इसलिए आवश्यक हैं क्योंकि 14 जुलाई के हमलावरों ने स्थल पर हथियारों की तस्करी की थी, जिनका इस्तेमाल बाद में उन्होंने अधिकारियों को गोली मारने के लिए किया. इन सुरक्षा कदमों को लेकर हिंसा शुरू हो गई थी, जिनमें पांच फलस्तीनी मारे गए थे.
इस निर्णय से पहले नेतान्याहू और जॉर्डन के बादशाह अब्दुल्ला द्वितीय के बीच इसे लेकर बातचीत हुई थी. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शीर्ष राजदूत जेसन ग्रीनब्लैट भी संकट पर बातचीत करने के लिए इजरायल आए थे और संयुक्त राष्ट्र में पश्चिम एशिया के राजदूत ने भी हिंसा के और बढ़ने की चेतावनी दी थी.
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