बांग्लादेश की सुप्रीम कोर्ट ने जमात नेता की मौत की सजा बरकरार रखी

Last Updated 30 Aug 2016 09:36:52 PM IST

जमात-ए-इस्लामी के वरिष्ठ नेता एवं प्रमुख वित्त पोषक मीर कासिम अली को जल्द ही फांसी दी जा सकती है क्योंकि बांग्लादेश की सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान किए गए युद्ध अपराधों के मामले में उन्हें दी गई मौत की सजा को बरकरार रखा.




मीर कासिम अली
 
   
मंगलवार को प्रधान न्यायाधीश सुरेंद्र कुमार सिन्हा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने अदालत कक्ष में एक शब्द में ही फैसला सुना दिया.
   
शीर्ष न्यायाधीश ने 64 वर्षीय अली की अपील के बारे में कहा, ‘‘खारिज’’. प्रधान न्यायाधीश सुरेंद्र कुमार मुस्लिम बहुल देश में इस पद पर आसीन पहले हिंदू हैं.
   
अली को जमात का प्रमुख वित्त पोषक माना जाता है. जमात 1971 में पाकिस्तान से बांग्लादेश की आजादी के खिलाफ था.
   
फैसले के बाद अपनी संक्षिप्त टिप्पणी में अटॉर्नी जनरल महबूब ए आलम ने संवाददाताओं को बताया कि अली राष्ट्रपति से क्षमा याचना कर सकते हैं. अब यही एक अंतिम विकल्प है, जो उन्हें मौत की सजा से बचा सकता है.
   
आलम ने कहा, ‘‘यदि वह क्षमा याचना नहीं करते हैं या अगर उनकी दया याचिका खारिज हो जाती है तो उन्हें किसी भी समय मौत की सजा के लिए भेजा जा सकता है.’’
   
अली के वकील टिप्पणी के लिए तत्काल उपलब्ध नहीं थे.
   
इस फैसले ने अली को मिली मौत की सजा पर तामील का रास्ता खोल दिया है, हालांकि अभी राष्ट्रपति से रहम का विकल्प बाकी है.
   
अली मीडिया से भी जुड़े रहे हैं. शीर्ष अदालत की ओर से पूरा फैसला प्रकाशित किए जाने और अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण की ओर से उनके खिलाफ छह जून को मौत का वारंट जारी किए जाने के बाद अली ने समीक्षा याचिका दायर की थी.
   
अली के बेटे अहमद बिन कासिम को अगस्त की शुरूआत में कथित रूप से सुरक्षा बलों ने अपहृत कर लिया था.
   
वह कई मीडिया घरानों एवं मीडिया प्रतिष्ठानों के मालिक हैं जिनमें एक टीवी चैनल शामिल है जिसका प्रसारण रोक दिया गया है. वह जमात-ए-इस्लामी की केंद्रीय कार्यकारिणी परिषद के सदस्य हैं.
   
उन्हें मुक्ति संग्राम के दौरान ‘अल बद्र’ नाम का एक मिलिशिया प्रताड़ना सेल चलाने का दोषी ठहराया गया है. मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तानी सेना और उनके स्थानीय सहयोगियों ने कथित रूप से 30 लाख लोगों की निर्मम तरीके से हत्या कर दी थी.
   
बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण ने दो नवंबर 2014 को उन्हें मौत की सजा सुनाई थी. बाद में उन्होंने इस दोषसिद्धि के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के अपील विभाग में अपील की.
   
छह साल पहले युद्ध अपराध के मामलों की सुनवाई शुरू होने के बाद से अब तक जमात के तीन नेताओं और बीएनपी के एक नेता को फांसी दी जा चुकी है जबकि वृद्धावस्था की बीमारियों की वजह से दो अन्य की जेल में मौत हो गयी.
 
 
 



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