स्वतंत्रता का पाठ

Last Updated 26 Jul 2014 12:13:20 AM IST

मेरी एक ही शिक्षा है-अखंड बनो; सहज बनो और अपनी सहजता को समग्रता से जीओ.




आचार्य रजनीश ओशो

इसकी फिक्र ही मत करो कि यह किसी शास्त्र के अनुकूल बैठती है कि नहीं. क्योंकि जिसने शास्त्र रचा, वह और ढंग का आदमी रहा होगा. उसने शास्त्र अपने हिसाब से रचा है लेकिन लोग उल्टी स्थिति में पड़े हैं. कोई मनु के हिसाब से जी रहा है. कोई महावीर के हिसाब से जी रहा है. कोई बुद्ध के हिसाब से जी रहा है. कोई कृष्ण के हिसाब से जी रहा है. लेकिन ध्यान रखो, तुम्हें अगर कृष्ण के कपड़े फिट नहीं आते हैं, तो क्या करोगे. हाथ-पैर काटोगे क्या अपने! एक यहूदी कथा है- एक पागल सम्राट था. उसके पास एक सोने का बिस्तर था; हीरे-जवाहरात जड़ा. सके घर जब भी कोई मेहमान होता तो वह उसको उसी बिस्तर पर लिटाता. वह पागल आदमी था, इसलिए अगर मेहमान बिस्तर से लंबा साबित होता, तो वह उसके हाथ-पैर कटवा बिस्तर के बराबर कर के रहता. अगर छोटा होता, तो उसने पहलवान रख छोड़े थे, जो उसके उसके हाथ-पैर खींच उसको लंबा करते. आदमी के लिए बिस्तर नहीं है; आदमी बिस्तर के लिए है. वह बिल्कुल शास्त्रीय बात कह रहा था.

यही तो सारे धर्म कर रहे हैं-तुम्हें शास्त्रों के अनुसार होना चाहिए. अगर तुम थोड़े लंबे हो, तो काटो. थोड़े छोटे हो, तो खींचो. तुम्हारी जिंदगी मुश्किल में पड़ जाएगी. तुम्हें सिर्फ अपने अनुसार होना है. परमात्मा ने तुम जैसा कोई दूसरा नहीं बनाया. कुछ तो देखो. कुछ तो समझो. कुछ तो पहचानो. परमात्मा ने तुम जैसा कोई आदमी न पहले बनाया है और न फिर बनाएगा. वह दोहराता नहीं. वह प्रत्येक व्यक्ति को अनूठा बनाता है.

तुम किसी के अनुसार, किसी ढांचे के अनुसार, जी नहीं सकते. जीओगे तो मुश्किल में पड़ोगे. जीओगे तो कष्ट पाओगे. अपनी ज्योति से जीओ. बुद्ध ने अंतिम क्षण में यही कहा था-अप्प दीपो भव-अपने दीए खुद बनो. मेरे ऊपर यही सबसे बड़ा लांछन है; सबसे बड़ी आलोचना है-कि मैं अपने संन्यासियों को आचरण नहीं सिखाता. मैं उन्हें अपने कपड़े नहीं दे सकता. क्योंकि किसी को छोटे पड़ेंगे, किसी को लंबे पडेंगे. किसी को ढीले पड़ेंगे.

किसी को चुस्त पड़ेंगे. मैं सिर्फ उन्हें भीतर का दीया जलाने की कला सिखाता हूं. फिर वे अपने कपड़े खुद काटें; बनाएं. अपना आचरण खुद निर्मित करें. अपनी रोशनी में जीएं. आचरण नहीं मैं-अंतस देता हूं. और तुम अब तक आचरण ही के अनुसार जीए हो. तुम्हारे गुरुओं ने तुम्हें अंतस नहीं दिया-आचरण देने की कोशिश की है. वे तुम्हें एक ढर्रा दे देते हैं कि ऐसा करो. चाहे तुम्हें रुचे, चाहे न रुचे.
साभार : ओशो वर्ल्ड फाउंडेशन, नई दिल्ली



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