सत्साहित्य से बढ़ती विचार शक्ति

Last Updated 10 Jul 2014 12:48:39 AM IST

शक्ति उस साधना को कहते हैं जिससे विजय मिलती है. यों शारीरिक बल को भी मनुष्य की योग्यता माना जाता है, किन्तु समुन्नति के मार्ग में धन-जन का न होना अवरोधक नहीं है.




धर्माचार्य पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

गौतम बुद्ध तब और शक्तिमान बने, जब उन्होंने लौकिक शक्तियों का परित्याग कर दिया. उस समय के सम्राट अशोक तक ने उनके समक्ष अपने घुटने टेके थे. अत: धन की शक्ति, जन और शारीरिक शक्तियां स्वल्प हैं, अपूर्ण हैं, इससे शक्तिशाली कहलाने का गौरव कभी नहीं मिल सकता.

संसार की सर्वश्रेष्ठ शक्ति का नाम है विचार. जैसे हमारे विचार होते हैं, वैसी ही हमारी शारीरिक स्थिति होती है. आंतरिक स्थिति का निर्माण भी विचारों के ही अनुरूप होता है. गुण, कर्म और स्वभाव की त्रिवेणी में भी विचारों का ही स्वरूप झलकता है. निश्चयात्मक विचारों से ही निर्माण शक्ति का विकास होता है.

विचारों की शक्ति अलौकिक है, किन्तु यह न भूलना चाहिए कि व्यक्ति के पतन का कारण भी उनके विचार ही होते हैं. हीन विचारों के कारण मनुष्य दुष्कर्म करता है. शक्ति का अपव्यय करता है, जिससे उसकी योग्यता फीकी पड़ जाती है. अत: उत्थान के लिए शक्तिशाली विचार ही चाहिए, ऊधर्वगामी विचार होने चाहिए.

विचार करने की योग्यता मनुष्य में सत्साहित्य के स्वाध्याय से आती है. साहित्य में वह शक्ति होती है कि समाज की रूपरेखा बदल दे. साहित्य समाज का दर्पण है. किसी भी समाज की शक्ति और योग्यता की परख उसके साहित्य से होती है. विचारों को ऊंचा उठाने वाला साहित्य यदि उपलब्ध हो सके, तो आत्मोन्नति का प्रथम प्रयास सफल समझना चाहिए.

साहित्य का अर्थ यहां उस साहित्य से है, जिससे मनुष्य में उच्च नैतिक सद्गुणों का समावेश हो. जो हमारी भावनाओं को ऊंचा उठाने की क्षमता रखता हो. जो साहित्य व्यक्ति और समाज में गति और शक्ति पैदा न कर सके, सौन्दर्य, प्रेम और समुन्नति का मार्ग दिखा न सके, वह साहित्य नहीं.  बुरे योग से बचने के लिए और अपनी शक्तियों को जगाने एवं अपनी सहायता आप करने के लिए हमें विचारवान बनना चाहिए.

इसके लिए दूसरे साधनों की उतनी आवयकता नहीं है, जितनी ज्ञान-साधना की जरूरत है. इसको पूरा करने के लिए साहित्य की शरण लेनी पड़ेगी. ऐसा साहित्य खोजना पड़ेगा जिससे ज्ञान संवर्धन हो और आत्मा का परिष्कार हो. साहित्य हमारी शक्ति का उद्रेक है. हमें साहित्य द्वारा अपनी प्रतिभा जगाने का कार्य करना चाहिए.
- गायत्री तीर्थ शांतिकुंज, हरिद्वार



Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment